धनबाद न्यायाधीश हत्याकांड: अदालत ने कहा- ऐसे अपराधियों को मौत तक जेल में रखने की जरूरत

Edited By Diksha kanojia, Updated: 14 Aug, 2022 11:12 AM

court said  need to keep such criminals in jail till death

सीबीआई अदालत के विशेष न्यायाधीश रजनीकांत पाठक ने 28 जुलाई को ऑटोरिक्शा चालक लखन वर्मा और उसके सहयोगी राहुल वर्मा को 49-वर्षीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश उत्तम आनंद की हत्या का दोषी ठहराया था। न्यायाधीश पाठक ने कहा, ‘‘कोई सोच भी नहीं सकता कि झारखंड...

रांचीः केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की एक विशेष अदालत ने पिछले साल धनबाद अदालत के एक न्यायाधीश की हत्या के मामले में एक ऑटोरिक्शा चालक और उसके साथी को ‘मौत तक जेल की सजा' सुनाते हुए अपने आदेश में कहा, ‘‘ऐसे अपराधी को मृत्युपर्यंत सलाखों के पीछे रखने की जरूरत है।'' 

सीबीआई अदालत के विशेष न्यायाधीश रजनीकांत पाठक ने 28 जुलाई को ऑटोरिक्शा चालक लखन वर्मा और उसके सहयोगी राहुल वर्मा को 49-वर्षीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश उत्तम आनंद की हत्या का दोषी ठहराया था। न्यायाधीश पाठक ने कहा, ‘‘कोई सोच भी नहीं सकता कि झारखंड न्यायपालिका के एक न्यायाधीश की इस तरह से हत्या कर दी जाएगी। इस घटना ने न केवल देश की पूरी न्यायिक बिरादरी को बल्कि बड़े पैमाने पर नागरिक को झकझोर कर रख दिया।'' न्यायाधीश ने मामले में दोषियों के प्रति ‘‘नरम रुख'' अपनाने से इनकार कर दिया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश आनंद को पिछले साल 28 जुलाई की सुबह करीब पांच बजे जिला अदालत के पास रणधीर वर्मा चौक पर एक ऑटोरिक्शा ने उस वक्त टक्कर मार दी थी, जब वह टहल रहे थे। उसी दिन न्यायाधीश की मृत्यु हो गई थी।

सीबीआई की विशेष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि इस तरह की घटना के बाद न्यायिक अधिकारियों के परिवार के सदस्यों और लोगों के बीच डर का माहौल था, जो यह सोचने को मजबूर हुए कि अगर एक न्यायाधीश के साथ ऐसा हो सकता है तो आम नागरिक कितने सुरक्षित हैं। न्यायाधीश ने कहा कि हत्या के लिए केवल दो दंड का प्रावधान है- एक आजीवन कारावास और दूसरा फांसी (मृत्युदंड)। हालांकि, उन्होंने उल्लेख किया कि शीर्ष अदालत के फैसलों पर गौर करते हुए यह मामला ‘दुर्लभ से दुर्लभतम' के दायरे में नहीं आता है। न्यायाधीश ने आदेश में कहा, ‘‘मेरी राय में यदि दोषियों को उम्रकैद की सजा दी जाती है, तो उन्हें जेल नियमावली के अनुसार 14 साल या उसके बाद रिहा किया जा सकता है।''

आदेश में कहा गया, ‘‘लेकिन इस अदालत की राय में ऐसे अपराधियों को जीवनपर्यंत सलाखों के पीछे रखने की जरूरत है। अगर उन्हें रिहा किया जाता है, तो समाज को गलत संदेश जाएगा, खासकर उन लोगों के लिए जो इस तरह की घटना का गवाह रहे हैं। इसके अलावा, वे फिर से वही अपराध कर सकते हैं, क्योंकि उनके मन में मानव जीवन और देश के कानून के लिए कोई सम्मान नहीं है।'' आदेश में कहा गया है, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि मौत की सजा के बदले अंतिम सांस तक बिना किसी छूट के आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है।

इसके तहत, दोषियों-लखन कुमार वर्मा और राहुल कुमार वर्मा को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302/34 के तहत, दंडनीय अपराध के लिए प्रत्येक दोषी पर 20,000 रुपए के जुर्माने के साथ-साथ बिना किसी छूट के अंतिम सांस तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है।'' इसके अलावा दोषियों को आईपीसी की धारा 201/34 के तहत अपराध के लिए सात साल के कठोर कारावास और 10,000 रुपये के जुर्माने की सजा तथा छह महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई। आदेश में कहा गया है कि दोनों सजा साथ-साथ चलेगी और जुर्माने की आधी रकम मृतक के परिवार को दी जाएगी।

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