होली पर कोरोना का साया: प्राकृतिक रंगों की ओर लोगों का बढ़ रहा रुझान, 'पलाश' की बढ़ी मांग

Edited By Umakant yadav, Updated: 27 Mar, 2021 06:54 PM

holi increasing trend towards natural colors increased demand for  palash

रंगो के उत्सव ‘होली'' में फूलों से प्राकृतिक रंग बनाने की शिथिल पड़ गई परंपरा के प्रति एक बार फिर से लोगों का रुझान बढ़ता दिख रहा है। होली के आगमन को लेकर पूरे देश में तैयारियां शुरू हो चुकी है। प्रकृति ने इसकी तैयारी वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही कर...

चतरा: रंगो के उत्सव ‘होली' में फूलों से प्राकृतिक रंग बनाने की शिथिल पड़ गई परंपरा के प्रति एक बार फिर से लोगों का रुझान बढ़ता दिख रहा है।   होली के आगमन को लेकर पूरे देश में तैयारियां शुरू हो चुकी है। प्रकृति ने इसकी तैयारी वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही कर ली है।

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चतरा जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित सिमरिया प्रखंड के जंगलों में खिलखिला रहे पलाश के मादक फूल बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं और जंगलों का भीतरी वातावरण इन दिनों ऐसा लग रहा है मानो पेड़ में किसी ने दहकते अंगारे लगा रखे हों। आमतौर पर वसंत ऋतु के समय ये केसरिया रंग के फूल खिलने लगते हैं और होली के आसपास जहां इन फूलों की रंगिनियत चरम पर आकर इठलाते हुए जंगल की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे हैं वहीं वीरान जंगल में यह अग्नि की दहक का भी आभास कराते हैं।   
           
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सामाजिक कार्यकर्ता सुशांत पाठक बताते हैं कि विगत कई वर्षों से इन फूलों से प्राकृतिक रंग बनाने की शिथिल पड़ गई परंपरा के प्रति एक बार फिर से लोगों का रुझान बढ़ता दिख रहा है और इसके औषधीय गुणों को लोग समझने लगे हैं। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के दहशत के कारण होली पर लोग केमिकल युक्त रंग-गुलाल खेलने से परहेज के कारण पलाश के फूल की डिमांड बढ़ रही है। 

सिमरिया के स्थानीय निवासी शशिभूषण सिंह तथा सबानो पंचायत के मुखिया इमदाद हुसैन बताते हैं कि पलाश के फूल से बने रंग प्राकृतिक होते हैं और इससे किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता। इस बार कोरोना वायरस को देखते हुए एक ओर जहां लोग केमिकल रंग का उपयोग करने से बच रहे हैं, वहीं होली का पर्व मनाने का भी उत्साह है। ऐसे में लोग अब पुरानी परंपरा की ओर लौट रहे हैं और पलाश के फूल का संग्रह कर इससे प्राकृतिक रंग तैयार कर होली का पर्व मनाने की योजना में कई ग्रामीण एवं परिवार मन बना रहे हैं। लिहाजा पलाश की मांग बढ़ गई है।              

होली के मद्देनजर ग्रामीण पलाश के फूल एकत्रित करते हुए बाजार में बेचकर आर्थिक फायदा ले रहे हैं। बताते हैं कि पलाश औषधीय गुणों से भी भरपूर होता है और व्यावसायिक द्दष्टिकोण से भी इसका काफी उपयोग है। पलाश के फूलों के अलावा इसके पत्ते से बने दोने और पत्तल कभी वर्ग विशेष की आजीविका के प्रमुख साधन भी रहे हैं। वर्तमान दौर में रासायनिक रंगों से होली का पर्व मनाया जा रहा हो, लेकिन एक समय था जबकि हमारे पूर्वज पलाश के फूल से ही रंगोत्सव मनाया करते थे। विलुप्त होती जा रही हर्बल रंगों की होली की परम्परा को फिर से लोग जीवंत कर अतीत की याद ताज़ा कर रहे हैं। 

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