Edited By Diksha kanojia, Updated: 23 Nov, 2021 02:11 PM
सूबे की मुख्य विपक्षी दल भाजपा के प्रवक्ता कुणाल षाड़ंगी ने सोमवार को शिक्षक नियुक्ति नियमावली के उस प्रावधान को जोड़ने पर कड़ा ऐतराज जताया है जिसमें राज्य सरकार ने झारखंड से मैट्रिक, इंटर पास होने को अनिवार्य किया है।
रांचीः झारखंड राज्य के हाई स्कूल और प्लस टू विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए तैयार नियमावली को विभागीय स्तर पर मंजूरी मिलने के बाद विरोध और आलोचना तेज हो गई है।
सूबे की मुख्य विपक्षी दल भाजपा के प्रवक्ता कुणाल षाड़ंगी ने सोमवार को शिक्षक नियुक्ति नियमावली के उस प्रावधान को जोड़ने पर कड़ा ऐतराज जताया है जिसमें राज्य सरकार ने झारखंड से मैट्रिक, इंटर पास होने को अनिवार्य किया है। भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अगुआई वाली यूपीए गठबंधन सरकार को घेरने की तैयारी में है। षाड़ंगी ने शिक्षक नियुक्ति नियमावली में झारखंड से मैट्रिक, इंटर होना अनिवार्य करने के मसले पर सरकार को दो टूक में जवाब देते हुए कहा कि सरकार को नियोजन नीतियों में तुष्टिकरण से परहेज़ करनी चाहिए और लार्जर पब्लिक इंटरेस्ट को ध्यान में रखनी चाहिए।
षाड़ंगी ने कहा कि नियोजन नीतियों में सरलता रहनी चाहिए ना कि अड़ियलपन। उन्होंने झारखंड सरकार और शिक्षा मंत्री जगन्नाथ महतो को लगे हाथों सुझाव भी दे डाला कि अनावश्यक मुकद्दमेबाजी बढ़ाने वाली उबाऊ नियम बनाने से अब झारखंड सरकार को परहेज करनी चाहिए। सरकार के खिलाफ उच्च न्यायालय में केस की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है, इसका खराब असर सरकार की सेहत पर पड़ना लाजमी है। भाजपा प्रदेश प्रवक्ता ने कहा कि राज्य के बाहर के स्कूलों से पढ़ाई पूरी करने वाले युवा जो झारखंडी हैं, उनके बारे में भेद करने का सरकार का निर्णय भी कानूनी तौर पर वैध नहीं।
कुणाल षाड़ंगी ने भोजपुरी, मगही, अंगिका, मैथिली सरीखे भाषाओं को जेएसएससी और जेटेट से हटाए जाने के नियम को भी असंवैधानिक और अपरिपक्व बताया। कहा कि राज्य की बड़ी आबादी के लिए उक्त भाषाएं ही उनकी मातृभाषा है। हर वर्ग के भाषा, संस्कृति का सम्मान करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। झारखंड सरकार को संवैधानिक मूल्यों पर कुठाराघात करने से परहेज करना चाहिए। उन्होंने सरकार के विधि विभाग से इन नियमावलियों को लेकर सरकार के मंत्रियों तक उचित परामर्श और मंतव्य देने का आग्रह किया है ताकि भविष्य में ऐसे विभेदकारी नियमावली तैयार करने से झारखंड सरकार परहेज करे।