Edited By Diksha kanojia, Updated: 06 Feb, 2022 01:37 PM
पहले सिर्फ वनोपज आधारित आजीविका पर निर्भर अनिता सखी मंडल की महिलाओं के साथ मिल कर औषधीय पौधों और फलों की नर्सरी कर अच्छी आमदनी कर रही रही हैं। अनिता की नर्सरी के पौधे आज औषधीय वाटिका से जुड़ी सखी मंडल के दीदियों की इम्युनिटी बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं
रांचीः झारखंड में खूंटी के बिरहु बड़का टोली की अनिता सांगा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि तुलसी, गिलोय, चिरोंजी, सतावर, घोडवार आदि औषधीय पौधों की नर्सरी उनकी आजीविका का साधन बन सकता है। नवीन आजीविका किसान उत्पादक समूह की सदस्य अनिता सांगा आज 50 से अधिक औषधीय पौधों की खेती कर कर रही हैं।
पहले सिर्फ वनोपज आधारित आजीविका पर निर्भर अनिता सखी मंडल की महिलाओं के साथ मिल कर औषधीय पौधों और फलों की नर्सरी कर अच्छी आमदनी कर रही रही हैं। अनिता की नर्सरी के पौधे आज औषधीय वाटिका से जुड़ी सखी मंडल के दीदियों की इम्युनिटी बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। झारखण्ड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी के तहत औषधीय एवं सुगंधित पौधो की खेती की पहल से जुड़कर अनिता जैसी कई महिलाएं औषधीय पौध नर्सरी का संचालन कर रहीं हैं। वहीं हजारों महिलाएं अपने घरों में औषधीय वाटिका बनाकर अपने परिवार को स्वस्थ जीवन का उपहार दे रही हैं।
इस पहल से एक ओर जहां ग्रामीण महिलाओं को औषधीय पौधे सस्ते दर पर नर्सरी के माध्यम से उपलब्ध हो रहे हैं, वहीं राज्य की जनजातीय चिकित्सा पद्धति होड़ोपैथी को पुनर्जीवित कर लोगों को प्राकृतिक उत्पादों के जरिए रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने में वरदान साबित हो रहा है। औषधीय वाटिका का लक्ष्य सखी मंडल की दीदियों के जरिए पुरातन प्राकृतिक उपायों से रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना एवं रोग निवारक उपायों को बढ़ावा देना है। इससे एक ओर जहां नेचुरोपैथी एवं होड़ोपैथी को पुनर्जीवित किया जा रहा है, वहीं गांव की महिलाएं आमदनी भी कर रही हैं।
हज़ारीबाग जिले के दारु प्रखंड अंतर्गत पेटो गांव की आशा देवी पिछले डेढ़ साल से औषधीय वाटिका परियोजना से जुड़ कर न सिफर् कोरोना के कठिन समय में कारगर तुलसी , गिलोय, हरसिंगार सहित 30 से ज्यादा औषधीय पौधों की खेती कर अपने परिवार और आसपास के लोगो की मदद की, बल्कि इन औषधीय पौधों की बिक्री के जरिए कुछ आमदनी भी कर लेती हैं। झारखंड में कोरोनाकाल में औषधीय वाटिका वरदान साबित हुई है।