Edited By Diksha kanojia, Updated: 18 Aug, 2022 10:32 AM
न्यायमूर्ति यू. यू. ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने झारखंड के मुख्यमंत्री सोरेन पर शेल कंपनियों के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग और खनन पट्टे देने में अनियमितता का आरोप लगाने वाली जनहित याचिकाओं की उच्च न्यायालय में चल रही सुनवाई पर रोकने का आदेश दिया।...
रांचीः उच्चतम न्यायालय ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ झारखंड उच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिकाओं की कार्यवाही पर बुधवार को रोक लगा दी।
न्यायमूर्ति यू. यू. ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने झारखंड के मुख्यमंत्री सोरेन पर शेल कंपनियों के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग और खनन पट्टे देने में अनियमितता का आरोप लगाने वाली जनहित याचिकाओं की उच्च न्यायालय में चल रही सुनवाई पर रोकने का आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के समक्ष सोरेन के खिलाफ दायर जनहित याचिकाएं विचार करने योग्य है या नहीं, इस मुद्दे पर राज्य सरकार द्वारा दायर याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से पूछा कि अगर उसके पास मजबूत सबूत हैं तो वह एक जनहित याचिका के बहाने इस मामले में क्यों पड़ी हुई है।
शीर्ष अदालत ने ‘सीलबंद लिफाफे में सबूत' को स्वीकार करने से भी इनकार करते हुए इसकी बजाय प्रवर्तन निदेशालय को कहा कि वह प्रथम द्दष्टया मामला स्थापित करे। झारखंड सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, मुख्यमंत्री सोरेन की ओर से वकील मुकुल रोहतगी और ईडी का पक्ष अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू ने रखा। संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा, ‘‘आदेश सुरक्षित है। चूंकि यह मामला इस अदालत के पास है, इसलिए उच्च न्यायालय जनहित याचिकाओं पर आगे की कार्यवाही नहीं करेगा।'' सरकार का पक्ष रखते हुए सिब्बल ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील पेश करते हुए कहा कि जनहित याचिकाएं विचार करने योग्य हैं या नहीं, इस पर सवाल इस अदालत की ओर से अभी फैसला नहीं आया है। इतना ही नहीं, ईडी ने कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की, बल्कि मामले में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।
सिब्बल ने यह भी दावा किया कि जनहित याचिका झारखंड उच्च न्यायालय के जनहित याचिका के नियमों के अनुरूप नहीं है। मुख्यमंत्री का पक्ष रख रहे रोहतगी ने कहा कि इस मामले में उच्च न्यायालय की कोई प्रथम द्दष्टया संतुष्टि नहीं है। शीर्ष अदालत ने बचाव पक्ष के वकील की से पेश इस तथ्य पर भी गौर किया कि सोरेन के पास 0.88 एकड़ जमीन उनके मुख्यमंत्री का पद ग्रहण करने से पहले की थी। ऐसा नहीं है कि संपत्ति के लिए सोरेन ने मुख्यमंत्री कार्यालय का दुरुपयोग किया था। प्रवर्तन निदेशालय का पक्ष रख रहे राजू ने कहा कि भ्रष्टाचार से संबंधित मामले में तकनीकी खामियां आड़े नहीं आनी चाहिए तथा याचिकाओं को तकनीकी आधार पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए।