23.82 लाख वेतन लौटाने वाले असंतुष्ट शिक्षक के खाते में महज 970 रुपए, ऐसे हुआ खुलासा

Edited By Nitika, Updated: 08 Jul, 2022 02:53 PM

only 970 rupees in the account of disgruntled teacher

बिहार का एक युवा शिक्षाविद पिछले दो साल और नौ महीनों में वेतन के तौर पर प्राप्त 23.82 लाख रुपए लौटाना चाहता है। इसके बाद से यह शिक्षक काफी सुर्खियों में आ गया था। वहीं शिक्षक द्वारा विश्वविद्यालय को दिए चैक की जांच की गई तो पता चला कि शिक्षक के खाते...

 

मुजफ्फरपुरः बिहार का एक युवा शिक्षाविद पिछले दो साल और नौ महीनों में वेतन के तौर पर प्राप्त 23.82 लाख रुपए लौटाना चाहता है। इसके बाद से यह शिक्षक काफी सुर्खियों में आ गया था। वहीं शिक्षक द्वारा विश्वविद्यालय को दिए चैक की जांच की गई तो पता चला कि शिक्षक के खाते में महज 970 रुपए हैं।

बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय अंतर्गत आने वाले मुजफ्फरपुर के नितीश्वर सिंह महाविद्यालय में हिंदी साहित्य पढ़ाने वाले 33 वर्षीय ललन कुमार ने कहा कि उनकी अंतरात्मा कॉलेज में छात्रों की कम उपस्थिति के कारण बिना विद्यार्थियों को पढ़ाए उक्त अवधि का वेतन लेने की इजाजत नहीं देती। विश्वविद्यालय के ‘प्रो वाइस चांसलर' आर के ठाकुर ने कहा कि उन्होंने ललन द्वारा दिए गए 23.82 लाख रुपए के चेक को लेने से इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत वह इस आदर्शवादी कदम के लिए अनुमति दे सकें। ललन को 2019 में बीपीएससी द्वारा आयोजित परीक्षा पास करने के बाद सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने कहा, ‘‘मैं जबरन अधिकारियों को राशि स्वीकार करने के लिए नहीं कह सकता अपनी भावना के अनुसार मैंने यह कदम उठाया है।'' उन्होंने कहा कि शुरुआत में उन्हें उस समय निराशा हाथ लई थी जब शीर्ष 20 की सूची में शामिल होने के बावजूद उनका बेहतर कॉलेज में पदस्थापन नहीं किया गया।

ललन का कहना है कि उन्हें यह देखकर बहुत दुख हुआ कि उनसे खराब प्रदर्शन करने वाले कई लोगों का विश्वविद्यालय के स्नातक विभाग में पदस्थापन हुआ। उन्होंने कहा, ‘‘प्रभावशाली अकादमिक रिकार्ड के बावजूद मुझे बेहतर कॉलेज में सेवा देने का मौका नहीं मिला। मैं दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध प्रतिष्ठित हिंदू कॉलेज का छात्र रहा हूं। मैंने जेएनयू से स्नातक भी किया है।'' ठाकुर ने स्वीकार किया कि ललन द्वारा एक बेहतर कॉलेज में स्थानांतरण की मांग को लेकर पूर्व में कई आवेदन किए गए हैं। उन्होंने कहा कि ललन के अनुरोध पर गौर किया जा सकता था लेकिन तबादलों की समिति की पिछले कुछ वर्षों में कोविड-19 महामारी के कारण बैठक नहीं हुई है। हालांकि यह आश्चर्य की बात है कि उन्होंने इससे पहले कभी भी छात्रों के कक्षाओं में नहीं आने का मुद्दा नहीं उठाया।

ठाकुर ने युवा सहायक प्रोफेसर के छात्रों की अनुपस्थिति के आरोप के बारे में कहा, ‘‘उनके कॉलेज के प्राचार्य को अपनी टिप्पणी भेजने के लिए कहा गया है। हम कोई कार्रवाई तभी कर सकते हैं, जब वह इस बात की पुष्टि करें।'' कॉलेज के प्राचार्य मनोज कुमार का कहना है कि ललन कुमार को पहले उनसे बात करनी चाहिए थी। उन्होंने कहा,‘‘ ललन ने सीधे प्रतिकुलपति से संपर्क कर उन्हें चेक सौंप दिया और मुझे अखबार की रिपोर्ट से पूरे प्रकरण के बारे में पता चला।'' उन्होंने कहा कि वह ललन की बेहतर जगह पर सेवाएं देने की इच्छा से अवगत हैं लेकिन उन्होंने ललन के इस आरोप को खारिज कर दिया कि उनके कॉलेज में शायद ही कोई छात्र पढ़ने आता है।

मनोज ने कहा, ‘‘हमारे कॉलेज में सैकड़ों छात्र हिंदी पढ़ते हैं या तो मुख्य विषय के रूप में या सहायक के रूप में। किसी भी शिक्षक के लिए यह असंभव है कि उसके पास पढ़ाने के लिए पर्याप्त छात्र न हों। महामारी के दौरान भी शैक्षणिक कार्य ऑनलाइन जारी रहे।'' इस बीच अकादमिक हलकों में कई लोग ललन के इस कदम को ‘‘ब्लैकमेल की रणनीति'' के रूप में देखते हैं और मानते हैं कि यदि उनके इस कदम को स्वीकार किया गया तो यह एक उदाहरण बन सकता है। भविष्य में और भी लोग ऐसे तरीकों का सहारा ले सकते हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने पुष्टि की है कि उसी कॉलेज में पढ़ाने वाले अरुण कुमार ने भी अपना वेतन वापस करने के लिए प्रो वीसी को ‘‘इसी तरह की पेशकश'' वाला पत्र लिखा है।

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