पाटलीपुत्र में सत्ता परिवर्तन की सुगबुगाहट हुई तेज, क्या जीतनराम मांझी डुबाएंगे नीतीश की नैया?

Edited By Nitika, Updated: 02 Jun, 2021 09:40 PM

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बिहार के राजनीतिक गलियारों में बहुत ही तेजी से घटनाक्रम बदल रहे हैं। नीतीश कुमार की सरकार पर काले बादल मंडरा रहे हैं। राजनीति के मास्टरमाइंड कहे जाने वाले लालू प्रसाद यादव को बेल मिलते ही बिहार की राजनीति में बड़ा खेल शुरू हो गया है।

 

पटनाः बिहार के राजनीतिक गलियारों में बहुत ही तेजी से घटनाक्रम बदल रहे हैं। नीतीश कुमार की सरकार पर काले बादल मंडरा रहे हैं। राजनीति के मास्टरमाइंड कहे जाने वाले लालू प्रसाद यादव को बेल मिलते ही बिहार की राजनीति में बड़ा खेल शुरू हो गया है। बताया जा रहा है कि जीतनराम मांझी नीतीश कुमार की नैया डुबो सकते हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने अपनी पार्टी हिन्दुस्तान अवाम मोर्चा (हम) की कार्यकारणी समिति की बैठक ली थी। हालांकि उन्होंने बैठक के बाद नीतीश कुमार के साथ एकजुटता प्रदर्शित की है। वहीं कांग्रेस नेता अखिलेश सिंह ने कहा है कि बिहार की मौजूदा नीतीश सरकार बस कुछ दिनों की मेहमान है। क्या था लालू प्रसाद यादव का सियासी जोड़ तोड़ का गुणा-गणित? आरजेडी के पास अभी 75 विधायक हैं। कांग्रेस के पास 19 विधायक और लेफ्ट पार्टियों के पास 16 विधायक हैं। वहीं असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के पास बिहार में 5 विधायक हैं। अगर इन पार्टियों की कुल एमएलए की संख्या को जोड़ दिया जाए तो आरजेडी नेतृत्व वाली गठबंधन के पास कुल 115 विधायक हो जाती है।

वहीं जीतनराम मांझी और मुकेश सहनी को अगर लालू यादव रिझा लेते तो उनका समर्थक करने वाले विधायकों की कुल संख्या 123 हो जाएगी। वहीं एक निर्दलीय विधायक भी बदले हालात को देखकर अगर पाला बदल कर ले तो आरजेडी के पास एमएलए की संख्या बढ़कर 124 हो जाएगी। इस लिहाज से बिहार में नीतीश कुमार की सरकार बहुमत का आंकड़ा खो देती लेकिन अभी मांझी के राजी नहीं होने से लालू प्रसाद यादव को थोड़ा और इंतजार करना होगा।

जीतनराम मांझी और मुकेश सहनी को दिया गया था बड़ा ऑफर?
बिहार की सियासी गलियारे में इस बात की चर्चा है कि जीतनराम मांझी को आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने मुख्यमंत्री पद का ऑफर दिया था। वहीं मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री पद के साथ मलाईदार मंत्रालय का भी ऑफर दिया गया है। बताया जा रहा है कि जीतनराम मांझी मुख्यमंत्री पद पर राजी हो चुके हैं लेकिन तेजस्वी और तेजप्रताप यादव किसी भी सूरत में इसे स्वीकार नहीं कर रहे थे। बताया जा रहा है कि लालू प्रसाद यादव के इस राय को तेजस्वी की टीम ही मानने के लिए तैयार नहीं थी। इसलिए बाद में मुख्यमंत्री पद का ऑफर वापस लिए जाने से मांझी ने अपना मूड बदल लिया।

बीजेपी का क्या रूख होगा?
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी से हारने के बाद बीजेपी बिहार की सत्ता को गंवाना नहीं चाहेगी। अगर बिहार में बीजेपी सत्ता से बाहर हुई तो राष्ट्रीय राजनीति में उसका कद घट जाएगा। बिहार में सरकार गिरने से आने वाले वक्त में उत्तर प्रदेश की विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी नेताओं का मनोबल गिर जाएगा। इसलिए बीजेपी हर हालत में नीतीश कुमार की सत्ता को कायम रखना चाहेगी।

क्या यू-टर्न लेने के लिए उचित वक्त की तलाश में हैं मांझी?
राजनीतिक गलियारे में उठे कयासों पर जीतनराम मांझी ने फिलहाल विराम लगा दिया है।बुधवार को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में हम अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने ये स्पष्ट तौर पर कहा कि वे एनडीए में हैं और एनडीए में ही रहेंगे। मांझी ने कहा कि एनडीए में रहते हुए गरीबों के मुद्दों पर हम अनुरोध पूर्वक आवाज उठाते रहेंगे। इधर, हम प्रवक्ता दानिश रिजवान ने कहा कि मांझी पहले ही कह चुके हैं कि वो आखिरी सांस तक नीतीश कुमार के साथ रहेंगे,ऐसे में खयाली पुलाव पकाने वाले और मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाले नींद से जग जाएं।

खैर राजनीति संभावनाओं का खेल है। जीतनराम मांझी ने अभी नीतीश कुमार के साथ एकजुटता प्रदर्शित कर लालू यादव की चाल को विफल कर दिया है। वैसे भी एक बार लालू प्रसाद यादव बिहार में आ गए तो वे नीतीश कुमार से पुराना हिसाब-किताब बराबर करने की पूरी कोशिश करेंगे।

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