पटना HC की नीतीश सरकार को फटकार- शराबबंदी के गलत क्रियान्वयन से बिहार के लोगों की जान जोखिम में

Edited By Nitika, Updated: 19 Oct, 2022 12:45 PM

patna hc strong comment on prohibition of liquor

बिहार के पटना उच्च न्यायालय ने कहा कि बिहार के लोगों की जान जोखिम में इसलिए पड़ी है क्योंकि राज्य सरकार अपने बहुचर्चित शराबबंदी कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने में विफल रही है।

पटनाः बिहार के पटना उच्च न्यायालय ने कहा कि बिहार के लोगों की जान जोखिम में इसलिए पड़ी है क्योंकि राज्य सरकार अपने बहुचर्चित शराबबंदी कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने में विफल रही है। न्यायमूर्ति पूर्णेंदु सिंह की एकल पीठ ने उक्त टिप्पणी करते हुए सरकार की ढिलाई के प्रतिकूल परिणामों यथा शराब से जुड़ी त्रासदियों में तेजी, नशीली दवाओं की लत, अवैध शराब के कारोबार में नाबालिगों का शामिल होना और जब्त बोतलों के अनुचित विनाश से उत्पन्न पर्यावरण के खतरे पर भी बात की।

गौरतलब है कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा प्रदेश की महिलाओं से किए गए वादे के अनुसार, अप्रैल 2016 में जदयू नीत सरकार ने राज्य में शराब की बिक्री और खपत पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया। पीठ ने मुजफ्फरपुर जिले के एक निवासी की जमानत याचिका को निस्तारित करते हुए उक्त टिप्पणी की। अदालत ने पाया कि समय-समय पर संशोधित बिहार निषेध और उत्पाद अधिनियम 2016 के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने में राज्य मशीनरी की विफलता से राज्य के नागरिकों का जीवन जोखिम में है। अदालत ने शराबबंदी लागू होने के बाद हो रही बड़ी संख्या में जहरीली शराब की त्रासदी को सबसे चिंताजनक परिणाम के रूप में रेखांकित किया। साथ ही राज्य सरकार को नकली शराब के सेवन से बीमार होने वालों के इलाज के लिए मानक संचालन प्रोटोकॉल विकसित करने में विफल रहने पर फटकार लगाई।

अदालत ने कहा कि अवैध शराब में मिथाइल होता है, जिसमें से पांच मिली लीटर किसी को अंधा करने के लिए पर्याप्त होता है तथा 10 मिली लीटर अक्सर घातक होता है और यह विचार व्यक्त किया कि ऐसे मरीजों के इलाज के लिए अलग स्वास्थ्य केंद्र होने चाहिए और इसका संचालन विशेष रूप से प्रशिक्षित लोगों द्वारा किया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी टिप्पणी करते हुए कहा कि शराब के अलावा अवैध दवाओं का बड़े पैमाने पर उपयोग चिंता का एक और कारण है और राज्य भर में नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने में विफल होने के लिए सरकार की खिंचाई की।

अदालत ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि चरस, गांजा और भांग की मांग शराबबंदी के बाद से बढ़ गई और अधिकांश नशा करने वाले 25 साल से कम उम्र के तथा कुछ तो 10 साल से भी कम उम्र के थे। नौकरशाही में भ्रष्टाचार पर अदालत ने कहा कि पुलिस, आबकारी और परिवहन विभागों के अधिकारियों के लिए शराब प्रतिबंध का मतलब बड़ा पैसा है। गरीबों के खिलाफ दर्ज मामलों की तुलना में किंगपिन/ सिंडिकेट ऑपरेटरों के खिलाफ दर्ज मामलों की संख्या कम है। अधिकांश गरीब जो इस अधिनियम के प्रकोप का सामना कर रहे हैं, वे दिहाड़ी मजदूर और अपने परिवार में कमाने वाले अकेले सदस्य हैं। अदालत द्वारा राज्य सरकार की कांच या प्लास्टिक से बनी कुचली हुई शराब की बोतलों से चूड़ियां बनाने की नवीन नीति की कुछ प्रशंसा की गई।

अदालत ने हालांकि बोतलों में निहित शराब के संबंध में पर्यावरण के अनुकूल नीति की आवश्यकता पर जोर दिया और बताया कि जिन स्थानों पर इसे नष्ट किया जाता है, वहां के इलाकों में भूमिगत जल और मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो गई है। पूर्ण शराबबंदी वाले राज्य में शराब की तस्करी का एक नया तरीका नाबालिगों को काम पर रखने पर भी अदालत द्वारा चिंता व्यक्त की गई और कहा गया कि तस्कर जानते हैं कि उनके (बच्चे) पकड़े जाने पर उनका ट्रायल जुवेनाइल कोर्ट (किशोर अदालत) में होगा और वे कुछ महीनों में छूट जाएंगे।

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