बिहार की जनता ने अब तक हुए लोकसभा चुनाव में 15 निर्दलीय को गले लगाया, बनाया सांसद

Edited By Nitika, Updated: 10 Apr, 2024 04:27 PM

people of bihar embraced 15 independents

बिहार में अब तक हुए लोकसभा चुनाव में आम जनता ने विभिन्न राजनीतिक दल के राजनेताओं के साथ ही 15 निर्दलीय प्रत्याशियों को भी गले लगाया और उन्हें संसद तक पहुंचाया है।

 

पटनाः बिहार में अब तक हुए लोकसभा चुनाव में आम जनता ने विभिन्न राजनीतिक दल के राजनेताओं के साथ ही 15 निर्दलीय प्रत्याशियों को भी गले लगाया और उन्हें संसद तक पहुंचाया है। भारतीय चुनावी तंत्र में निर्दलीय उम्मीदवारों की भूमिका हमेशा से एक महत्वपूर्ण और चर्चित विषय रहा है। ये उम्मीदवार, जो किसी भी राजनीतिक दल के बैनर तले नहीं लड़ते, अपने आप को चुनावी अखाड़े में उतरते हैं और विभिन्न सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर अपनी निष्पक्ष और स्वतंत्र राय रखते हैं।

चुनाव से पूर्व, निर्दलीय उम्मीदवारों का प्रमुख लक्ष्य होता है समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुंचना और उनके मुद्दों को समझना। वे अक्सर उन मुद्दों को उठाते हैं जो प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा उपेक्षित रहते हैं। इसके अलावा, वे राजनीति में नैतिकता और पारदर्शिता के प्रतीक के रूप में उभरते हैं। चुनाव के बाद, निर्दलीय उम्मीदवारों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, खासकर जब कोई भी पार्टी स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं कर पाती। ऐसे में, निर्दलीय उम्मीदवार सरकार गठन में किंगमेकर की भूमिका निभा सकते हैं। वे समझौते की स्थिति में, सरकार के निर्माण या गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। निर्दलीय उम्मीदवार सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम करते हैं। हालांकि, निर्दलीय उम्मीदवारों को अपने अभियान और प्रचार में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

राजनीतिक दलों के समर्थन और संसाधनों के बिना, उन्हें अपनी पहचान बनाने और जनता तक पहुंचने में अधिक प्रयास करना पड़ता है। फिर भी, उनकी उपस्थिति और योगदान भारतीय राजनीति की विविधता और गतिशीलता को दर्शाता है। वर्ष 1952 में बिहार में हुए लोकसभा चुनाव में 49 निर्दलीय प्रत्याशी ने सांसद बनने का सपना संजोए चुनाव लड़ा लेकिन इनमें से एक ही संसद तक पहुंचने में सफल रहे। शाहाबाद उत्तर पश्चिम सीट से डुमरांव महाराज कमल सिंह निर्दलीय चुने गए। वर्ष 1957 में 60 निर्दलीय प्रत्याशी ने अपनी किस्मत आजमाई लेकिन इस बार भी केवल एक निर्दलीय सांसद बनने में सफल रहे। बक्सर सीट से डुमरांव महाराज कमल सिंह फिर निर्वाचित हुए। वर्ष 1962 के चुनाव में 34 निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी मैदान में सांसद बनने के इरादे से उतरे लेकिन आम जनता ने किसी को सांसद बनने का अवसर नहीं दिया। वर्ष 1967 के आम चुनाव में 99 निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी समर में उतरे लेकिन चार को ही सफलता मिली। नवादा से सूर्य प्रकाश नारायण पुरी, चतरा से विजया राजे, हजारीबाग से रामगढ़ के राजा बसंत नारायण सिंह और सिंहभूम से के विरूआ के सर जीत का सेहरा सजा। बिहार में अब तक हुए लोकसभा चुनाव में चार से अधिक निर्दलीय के सिर जीत का सेहरा नहीं सजा है।

चतरा लोकसभा सीट वर्ष 1957 में अस्तित्व में आई। यहां की पहली सांसद छोटानागपुर संताल परगना जनता पार्टी (सीएसपीजेपी) की प्रत्याशी रामगढ़ राजघराने की महारानी विजया राजे थी। चतरा लोकसभा सीट से रामगढ़ के राजा बसंत नारायण सिंह की पत्नी विजया राजे लगातार तीन बार सांसद बनीं। विजया राजे पहली बार 1957 में सीएसपीजेपी से सांसद चुनी गई थीं। वर्ष 1962 में विजया राजे ने स्वतंत्र पार्टी से चुनाव लड़ा और जीती। इसके बाद विजया राजे वर्ष 1967 में निर्दलीय चुनाव लड़ी और विजयी रहीं। चतरा लोकसभा सीट से विजया राजे लगातार तीन बार सांसद बनीं। इसका रिकॉर्ड भी आज तक नहीं टूटा है। विजया राजे वर्ष 1957 से 1967 तक तीन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी को हरा कर सांसद बनी थी। विजया राजे का हेलीकॉप्टर चुनाव प्रचार में आता था, जिसे देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ती थी। 1971 में कांग्रेस के डॉ शंकर दयाल सिंह ने जनता पार्टी उम्मीदवार विजया राजी को हरा कर सांसद बने थे। वर्ष 1968 पर मधेपुरा सीट पर हुए आम चुनाव में दिग्गज समाजवादी नेता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और मंडल आयोग के अध्यक्ष रहे बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल (बीपीमंडल) ने बतौर निर्दलीय प्रत्याशी जीत हासिल की थी। वर्ष 1971 में 183 निर्दलीय प्रत्याशी ने चुनावी रणभूमि में अपना भाग्य आजमायां लेकिन जनता ने केवल एक प्रत्याशी को संसद तक पहुंचाया। खूंटी से निराल एनम होरो ने जीत दर्ज की।

वर्ष 1977 में आपातकाल के बाद हुए चुनाव में 188 निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी समर में अपना भाग्य आजमाने के इरादे से उतरे। दिग्गज वामंपथी नेता और मार्क्सवादी समन्वय समिति (एमसीसी के संस्थापक एके राय ने वर्ष 1977 मे बतौर निर्दलीय धनबाद से चुनाव जीता था। आपातकाल के दौरान उनके नारे, मेरी राय, आपकी राय, सबकी राय-एके राय ने उन्हें जीत दिलाई। वर्ष 1980 में हुये लोकसभा चुनाव में 391 निर्दलीय प्रत्याशी सासंद बनने के इरादे से चुनावी संग्राम में उतरे लेकिन दो को ही विजय मिली। शिबू सोरेन दुमका और एके राय एक बार फिर धनबाद से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर विजयी बनें। वर्ष 1984 के चुनाव में 492 निर्दलीय प्रत्याशी ने अपना भाग्य आजमाया लेकिन जीत का सेहरा केवल एक उम्मीदवार के सिर सजा। गोपालगंज से काली प्रसाद पांडेय ने जीत हासिल की। वर्ष 1989 में 429 निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी मैदार में उतरे लेकिन किसी का साथ आम जनता ने नहीं दिया। वर्ष 1991 में 875 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनावी रणभूमि में अपनी किस्मत आजमायी इसमें केवल एक उम्मीदवार पूर्णिया संसदीय सीट से राजेश रंजन उफर् पप्पू यादव को सांसद बनने का सौभाग्य मिला। वर्ष 1996 में 1103 में से एक निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिली। बेगूसराय सीट से रामेन्द्र कुमार सांसद बने। वर्ष 1998 में 179 निर्दलीय प्रत्याशी में से किसी को जीत नहीं मिली। वर्ष 1999 में 187 निर्दलीय प्रत्याशी में से एक ही जीत दर्ज करने में सफल रहे। पूर्णिया संसदीय सीट से एक बार फिर राजेश रंजन उफर् पप्पू यादव बतौर निर्दलीय प्रत्याशी लोकसभा पहुंचने में सफल हुए। वर्ष 2000 के रण में 200 निर्दलीय प्रत्याशी जीत के इरादे से उतरे लेकिन किसी को जीत मय्यसर नहीं हुई। वर्ष 2009 के आम चुनाव में केवल दो निर्दलीय प्रत्याशी सांसद बनने में सफल रहे।

बांका से दिग्विजय सिंह और सीवान से ओम प्रकाश याादव ने बतौर निर्दलीय जीत हासिल की। गिद्धौर राजघराने के दिग्विजय सिंह को वर्ष 2009 में हुये लोकसभा चुनाव मे जदयू ने टिकट नहीं दिया। दिग्विजय सिंह इस चुनाव में बतौर निर्दलीय प्रत्याश उतरे और उन्होने राजद प्रत्याशी जय प्रकाश नारायण यादव को पराजित किया। जदयू प्रत्याशी दामोदर रावत तीसरे नंबर और कांग्रेस प्रत्याशी गिरधानी यादव चौथे नंबर पर रहे। दिग्विजय सिंह की जीत की खुशी बहुत दिनों तक नहीं रही, उनका जल्द ही निधन हो गया। बांका सीट दिग्विजय सिंह की पत्नी पुतुल कुमारी वर्ष 2010 में निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। हाल के कुछ वर्षों की तुलना में धन और राजनीतिक दल का प्रभाव अधिक प्रभावी हो गया है। निर्दलीय उम्मीदवारों के भारतीय लोकतंत्र में चुनाव जीतने का सिलसिला वर्ष 2010 में हुए उपचुनाव के बाद थम गया। इसके बाद बिहार में हुए लोकतंत्र के महापर्व लोकभा चुनाव में वर्ष 2014 और वर्ष 2019 में कोई भी निर्दलीय जीतकर संसद नहीं पहुंचा है। वर्ष 1952 से वर्ष 2019 तक बिहार में अब तक हुए लोकसभा चुनाव में केवल 15 निर्दलीय प्रत्याशी के सिर जीत का सेहरा सजा है। जीतने वाले निर्दलीय कभी बगावत तो कभी अपनी निजी साख के सहारे सांसद बने।

बिहार में अब तक हुए लोकसभा चुनाव में जीते तीन निर्दलीय प्रत्याशी में सर्वाधिक दो-दो बार डुमरांव महाराज कमल सिंह, वामपंथी नेता एके राय और राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव शामिल है। दिलचस्प बात है कि इस बार के चुनाव में भी पप्पू यादव निर्दलीय प्रत्याशी पूर्णिया संसदीय सीट से अपनी किस्मत आजमां रहे हैं। वहीं 12 अन्य जीते निर्दलीय में सूर्य प्रकाश नारायण पुरी, विजया राजे, बिंदेश्वर प्रसाद मंडल, बसंत नारायाण सिंह, के विरूआ, निरला एनम होरो, शिबू सोरेन, काली प्रसाद पांडेय,रामेन्द्र कुमार, दिग्विजय सिंह, ओम प्रकाश यादव, पुतुल कुमारी शामिल हैं।
 

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!