चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं नीतीश बाबू, कुर्मी-कोइरी वोट बैंक के जरिए देंगे BJP-RJD को मात

Edited By Nitika, Updated: 11 Dec, 2020 11:55 AM

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बिहार में सत्ता में आने के बाद से जेडीयू और बीजेपी के नेता एक दूसरे की टांग खींचने में लगे हैं। बीजेपी को जब से चुनाव में ज्यादा सीटें आई हैं, तब से एनडीए के भीतर पावर बारगेन में नीतीश कुमार की हैसियत घट गई है।

 

जालंधर(विकास कुमार): बिहार में सत्ता में आने के बाद से जेडीयू और बीजेपी के नेता एक दूसरे की टांग खींचने में लगे हैं। बीजेपी को जब से चुनाव में ज्यादा सीटें आई हैं, तब से एनडीए के भीतर पावर बारगेन में नीतीश कुमार की हैसियत घट गई है। वैसे वक्त के तकाजे के मुताबिक अब नीतीश कुमार जेडीयू को मजबूत करने में जुट गए हैं।

नीतीश कुमार की शख्सियत ऐसी है कि ज्यादा देर तक किसी का दवाब वे बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। इसलिए पटना के सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा है कि नीतीश बाबू और बीजेपी अंदरखाने चुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के बाद बिहार में बड़ा सियासी उलटफेर देखने को मिल सकता है। इधर वक्त की नजाकत को भांप कर नीतीश बाबू सबसे पहले जनता दल य़ूनाइटेड के सोशल बेस को बढ़ाने में जुट गए हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही नीतीश कुमार ने एक खामोशी की चादर सी ओढ़ ली है। वे किसी भी तरह की बयानबाजी से बचते नजर आ रहे हैं, लेकिन अंदरखाने वे काफी एक्टिव हो गए हैं। जेडीयू के कमजोर प्रदर्शन के बाद से ही नीतीश कुमार एक तरह से आत्म मंथन कर रहे हैं। इस मंथन में वे हार के मूल कारणों को तलाश कर उसका समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं। नीतीश कुमार की चिंता वाजिब ही है क्योंकि चुनाव दर चुनाव जेडीयू की सीटों की संख्या में कमी आई है।
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चुनावी आंकड़ों से यही पता चलता है कि 2010 के चुनाव के बाद जेडीयू के वोट शेयर में लगातार गिरावट आई है। 2015 के चुनाव में जहां जेडीयू को 16.8 फीसदी वोट मिला था। वही 2020 के चुनाव में जेडीयू के वोट शेयर में थोड़ी और गिरावट आई है। 2020 के चुनाव में नीतीश कुमार का वोट शेयर घट कर 15.39 फीसदी रह गया है। साफ है कि नीतीश कुमार ने ये भांप लिया है कि जमीन पर जनता दल यूनाइटेड का संगठन कमजोर हुआ है। साथ ही जेडीयू का आधार वोट बैंक भी सिकुड़ता जा रहा है। इसलिए नीतीश कुमार ने पार्टी की कमजोरियों को दूर करने की कोशिशों को तेज कर दिया है।

मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के कुछ दिनों के बाद ही नीतीश बाबू ने उपेंद्र कुशवाहा को बुलावा भेजा। उपेंद्र कुशवाहा वक्त के साथ नीतीश कुमार से दूर हो गए थे। कोईरी वोटरों को नीतीश कुमार से दूर करने में उपेंद्र कुशवाहा की बड़ी भूमिका थी। नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को विधान परिषद के जरिए कैबिनेट में शामिल होने का ऑफर दिया है। बताया जा रहा है कि कुशवाहा भी अभी इस ऑफर को स्वीकार कर चुके हैं। अगर कुशवाहा, नीतीश कुमार के साथ आ गए तो यकीन मानिए जेडीयू का वोट बेस बढ़ जाएगा। आंकड़ों के मुताबिक बिहार में कुर्मी जाति की आबादी 4 फीसदी तो कोईरी जाति की आबादी 8 फीसदी है। लव कुश के समीकरण के नाम से मशहूर दोनों जातियों की आबादी को जोड़ दिया जाए तो ये 12 फीसदी हो जाता है। ये 12 फीसदी वोट ही नीतीश कुमार की पुरानी ताकत थी, जिसे वे फिर से हासिल करने के लिए बेताब हैं।

वहीं वृषिन पटेल और नागमणि से भी जेडीयू के नेता संपर्क में हैं। उन्हें जेडीयू में एक बार फिर से शामिल करा कर लव कुश समीकरण को मजबूत किया जा सकता है। वहीं नरेंद्र सिंह जैसे अपने पुराने साथी से भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बातचीत का सिलसिला शुरू कर दिया है। कुशवाहा के बाद नरेंद्र सिंह से नीतीश बाबू की मुलाकात को पुराने साथियों को जोड़ने की जेडीयू की मुहिम का हिस्सा माना जा रहा है। नरेंद्र सिंह के बेटे सुमित कुमार सिंह चकाई सीट से निर्दलीय चुनाव जीत कर आए हैं। सुमित कुमार सिंह नीतीश सरकार को समर्थन कर रहे हैं।
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साफ है कि नीतीश कुमार अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिए एक ठोस पहल की है। उन्हें ये लगता है कि अगर बीजेपी का दबाव बढ़ता गया तो उन्हें भी अपनी मजबूती दिखा कर बारगेन करने की कोशिश करनी पड़ेगी। अगर लव कुश का गठजोड़ फिर से हो गया तो बीजेपी के लिए भी नीतीश कुमार को कमजोर करना आसान नहीं होगा। वहीं अगर जेडीयू और बीजेपी के बीच तनाव बढ़ेगा तो फिर चुनाव में नीतीश कुमार मजबूती से विरोधियों से लोहा लेंगे, हालांकि ये कयास लगाए जा रहे हैं कि बंगाल के चुनाव के बाद बीजेपी बिहार में नीतीश कुमार पर दबाव बढ़ा देगी। इसलिए नीतीश कुमार अभी से जेडीयू को मजबूत करने में लग गए हैं। नीतीश कुमार अगर कुर्मी कोईरी वोटरों के साथ अति पिछड़े वोटरों को जोड़ कर रखते हैं तो इससे बीजेपी की ताकत पर नकेल कसना तो आसान होगा ही। साथ ही तेजस्वी यादव के सीएम बनने के ख्वाब को भी चकनाचूर किया जा सकता है। अब वक्त ही बताएगा कि नीतीश बाबू अपने इस मकसद में कितने कामयाब हो पाएंगे।

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