Edited By Nitika, Updated: 28 Apr, 2024 12:18 PM
बिहार में पटना व्यवहार न्यायालय स्थित निगरानी की एक विशेष अदालत ने पटना चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल (पीएमसीएच) में 45 वर्ष पूर्व हुए दवा घोटाले के एक अभियुक्त को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया।
पटनाः बिहार में पटना व्यवहार न्यायालय स्थित निगरानी की एक विशेष अदालत ने पटना चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल (पीएमसीएच) में 45 वर्ष पूर्व हुए दवा घोटाले के एक अभियुक्त को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया।
निगरानी के विशेष न्यायाधीश मोहम्मद रुस्तम ने मामले में सुनवाई के बाद पीएमसीएच में वार्ड अटेंडेंट कक्षपाल के रूप में पदस्थापित ललन राम को सबूतों की कमी के कारण बरी किए जाने का अपना निर्णय सुनाया। अभियुक्त ललन राम के वकील नरेश शर्मा ने बताया की वर्ष 1979 में इस मामले की प्राथमिकी निगरानी ब्यूरो ने दर्ज की थी। इस मामले में कुल 11 अभियुक्त थे। इस मामले में वर्ष 1995 में 10 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए गए थे। मामले की सुनवाई के दौरान सात अभियुक्तों की मृत्यु हो गई जबकि तीन अभियुक्तों को इस मामले में भगोड़ा घोषित किया गया था।
एकमात्र अभियुक्त ललन राम के खिलाफ मुकदमा लंबित था। उन्होंने आगे बताया कि मामले की सुनवाई के दौरान अभियोजन की ओर से आरोप साबित करने के लिए 16 गवाहों का बयान न्यायालय में कलमबंद करवाया गया लेकिन सुनवाई के दौरान इस मामले में जब्त किए गए उन सामानों जिनमें पीएमसीएच की मोहर लगी दवाइयां शामिल थी और जिनके आधार पर इस मामले में आरोप पत्र दायर किया गया था को न्यायालय में प्रस्तुत करने में अभियोजन असफल रहा। साथ ही अभियोजन ऐसा साक्ष्य भी प्रस्तुत नहीं कर सका, जिससे कि इस अभियुक्त के खिलाफ आरोप सिद्ध हो सके।
शर्मा ने बताया कि इस मामले के अभियुक्त के खिलाफ आरोप था कि उसने अन्य अभियुक्तों के साथ मिलकर पीएमसीएच में आए मरीजों को दवाओं की अनुपलब्धता बताकर उन्हें बाजार से फर्जी पर्ची देकर दवाइयों की खरीद के लिए मजबूर किया जाता था। इसके साथ ही पीएमसीएच की मोहर लगी दवाइयों को बाजार में बेच दिया जाता था। शिकायत मिलने पर निगरानी ने जांच की थी और पीएमसीएच की मोहर लगी दवाइयां खरीद कर उसे भी जब्त किए जाने का दावा किया था लेकिन सुनवाई के दौरान ऐसी कोई दवाई को न्यायालय में प्रस्तुत नहीं कर सका था।