HC में झारखंड सरकार के इस फैसले को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर

Edited By Diksha kanojia, Updated: 25 Jul, 2020 05:56 PM

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झारखंड सरकार के एम वी राव को कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) नियुक्त करने के फैसले को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है।

रांचीः झारखंड सरकार के एम वी राव को कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) नियुक्त करने के फैसले को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में नियुक्ति को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह राज्य पुलिस प्रमुखों के तय कार्यकाल और वरिष्ठता के संबंध में शीर्ष न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन है।

जानकारी के अनुसार, राव 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। उनको 16 मार्च को डीजीपी का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया। कमल नयन चौबे का नई दिल्ली के पुलिस मॉर्डनाइजेशन डिवीजन कैम्प में विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) के तौर पर तबादला किए जाने के बाद राव को नियुक्त किया गया। गिरिडीह जिले के निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता होने का दावा करने वाले प्रह्लाद नारायण सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि वह राजनीतिक हितों को संतुष्ट करने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा राज्य में ‘‘प्रभारी डीजीपी'' की नियुक्ति के संबंध में शीर्ष न्यायालय के आदेशों का घोर उल्लंघन किए जाने से व्यथित हैं।

याचिका में दावा किया गया है कि झारखंड कैडर के आईपीएस अधिकारियों में वरीय क्रम में चौथे नंबर पर आने वाले राव पहले से ही महानिदेशक (दमकल सेवा और होमगार्ड) का कार्यभार संभाल रहे हैं। वकील संचित गर्ग द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि चौबे की डीजीपी के तौर पर नियुक्ति के 10 महीने के भीतर ही उनका तबादला कर दिया गया ताकि एम वी राव को नियुक्त किया जा सके जो इस पद के हकदार नहीं हैं लेकिन जेएमएम के नेतृत्व वाली सरकार के चहेते हैं। याचिका में झारखंड सरकार को अंतरिम व्यवस्था खत्म करने और चौबे को तत्काल प्रभाव से डीजीपी के पद पर पुन: नियुक्त करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

इसमें केंद्र, झारखंड सरकार और संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को 2006 के प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार मामले में दिए आदेश का पालन करने का निर्देश देने का भी आग्रह किया गया है। उच्चतम न्यायालय ने पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह की जनहित याचिका पर पुलिस सुधारों पर कुछ निर्देश जारी किए थे जिसमें पुलिस प्रमुखों के लिए दो साल का कार्यकाल निर्धारित किया गया था और राज्यों पर कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्ति करने से रोक लगाई गई थी।

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