नीतीश कुमार: बिहार के चाणक्य बने चंद्रगुप्त

Edited By Updated: 08 Nov, 2015 01:10 PM

nitish kumar in bihar became chanakya chandragupta

अक्सर बिहार की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले नीतीश कुमार ने फिर से अपनी रणनीति का लोहा मनवा दिया है और विधानसभा चुनाव में भारी जीत दर्ज कर वह एक बार फिर से प्रदेश के चंद्रगुप्त बनने जा रहे हैं।

पटना: अक्सर बिहार की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले नीतीश कुमार ने फिर से अपनी रणनीति का लोहा मनवा दिया है और विधानसभा चुनाव में भारी जीत दर्ज कर वह एक बार फिर से प्रदेश के चंद्रगुप्त बनने जा रहे हैं। ‘बिहार के चाणक्य’ के अपने नाम को साबित करते हुए नीतीश ने वर्ष 2014 के लोकसभा सभा में भारी पराजय झेलने के बाद अपने चिर प्रतिद्वंद्वी राजद प्रमुख लालू प्रसाद के साथ हाथ मिलाकर राजनीतिक पंडितों को हैरत में डाल दिया था। विधानसभा चुनाव के आज आ रहे परिणामों के अनुसार नीतीश की यह लगातार तीसरी जीत है। 
 
‘दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है’ इस सदियों पुरानी कहावत का अनुसरण करते हुए लोकसभा चुनाव में राज्य की 40 सीटों में से मात्र दो सीटों पर जीत हासिल करने के बाद जनता दल यू नेता नीतीश कुमार ने अपने कट्टर दुश्मन नरेन्द्र मोदी रूपी तूफान को रोकने के लिए लालू से गलबहियां डालीं । लोकसभा चुनाव की हार के बाद नीतीश ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते हुए जीतन राम मांझी को सत्ता की कमान सौंप दी थी। राज्य की राजनीति में दोस्त से दुश्मन बने लालू और नीतीश ने अपने अपने मतभेदों को भूलाकर 40 साल पुराने छात्र आंदोलन के जमाने के गठबंधन को फिर से खड़ा किया। 
 
इसी छात्र आंदोलन को वरिष्ठ समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने हिंदुस्तान की राजनीति में बड़े बदलावकारी आंदोलन का रूप दिया था। उस आंदोलन की सीढ़ी पर चढ़कर 1977 के लोकसभा चुनाव में पहली बार कूदे लालू की किस्मत रंग लायी और वह चुनाव जीत गए। लेकिन उनके साथी नीतीश कुमार को 1985 में राज्य विधानसभा चुनाव में पहली बार जीत हासिल करने में आठ साल लग गए जो उस समय तत्कालीन बिहार कालेज आफ इंजीनियरिंग (आज के एनआईटी पटना) में इलैक्ट्रोनिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। 1985 से पहले नीतीश दो बार चुनाव हार गए थे। नीतीश कुमार ने 1989 में बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता पद के लिए लालू का समर्थन किया। इसके बाद 1990 में बिहार में जनता दल के सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए नीतीश ने फिर लालू के कंधे पर हाथ रखा जिन्होंने प्रधानमंत्री वी पी सिंह के नामित उम्मीदवारों राम सुंदर दास तथा रघुनाथ झा को चुनौती दी थी। 
 
बारा से 198 में लोकसभा चुनाव जीतने वाले नीतीश कुमार ने अपनी नजरें राज्य की राजनीति से हटाकर अब दिल्ली पर केंद्रित कर दी थीं और वह 1991 , 196 , 198 और 199 के लोकसभा चुनाव में भी विजयी रहे। नीतीश ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कृषि मंत्री और 199 में कुछ समय के लिए रेल मंत्री का पदभार संभाला। लेकिन 199 में पश्चिम बंगाल के घैसाल में ट्रेन हादसे में करीब 300 लोगों के मारे जाने की घटना के बाद नीतीश ने रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। सौम्य और स्पष्टवादी नीतीश कुमार वर्ष 2001 में फिर से रेल मंत्री बने और 2004 तक इस पद की कमान संभाली। इस दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के इस विशाल उपक्रम में बड़े सुधार लाने का श्रेय उन्हें दिया जाता है। इसमें इंटरनेट टिकट बुकिंग और तत्काल बुकिंग शामिल है। 
 
रेल भवन में उनके आसीन रहने के दौरान ही फरवरी 2002 में गोधरा ट्रेन कांड हुआ जिसने जल्द ही गुजरात को सांप्रदायिक आग के लपेटे में ले लिया। दिल्ली में सत्ता के गलियारों में नीतीश अपने राजनीतिक और प्रशासनिक कौशल को मांजने में लगे रहे और इस कारण वह लालू से दूर होते चले गए। पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए लालू द्वारा अपनी ही जाति के शरद यादव का समर्थन किए जाने के कारण 1994 में नीतीश कुमार समाजवादी आंदोलन के प्रमुख स्तंभ जार्ज फर्नांडिस के साथ जनता दल से बाहर निकल गए और उन्होंने समता पार्टी का गठन किया जिसने 1996 के आम चुनाव से पूर्व भाजपा के साथ हाथ मिला लिया।
 
इसके बाद आने वाले समय में शरद यादव को भी जनता दल में हाशिये पर डाल दिया गया और लालू ने पार्टी को पूरी तरह अपने कब्जे में ले लिया। बाद में शरद यादव की अगुवाई वाले जनता दल, समता पार्टी तथा कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े की लोकशक्ति पार्टी का आपस में विलय हो गया और 2003 में एक नया दल जनता दल यूनाइटेड अस्तित्व में आ गया। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में राजग की हार के चलते नीतीश ने फिर से अपना ध्यान बिहार पर केंद्रित किया जहां राबड़ी देवी की सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से गिर रहा था।  

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