Edited By Khushi, Updated: 20 Aug, 2025 02:19 PM

रांची: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने आरोप लगाया कि राज्य में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) नीत सरकार आदिवासियों की जमीन हड़प रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता चंपई सोरेन ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए आरोप लगाया कि...
रांची: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने आरोप लगाया कि राज्य में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) नीत सरकार आदिवासियों की जमीन हड़प रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता चंपई सोरेन ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए आरोप लगाया कि प्रस्तावित 1,000 करोड़ रुपये की रिम्स-2 अस्पताल परियोजना के लिए रांची के नागरी क्षेत्र में जबरन भूमि अधिग्रहण किया गया है।
चंपई ने आरोप लगाया, ‘‘मैंने 24 अगस्त को किसानों द्वारा किए जा रहे 'हल जोतो, रोपा रोपो' (खेत जोतो, पौधे लगाओ) विरोध प्रदर्शन में शामिल होने का निर्णय लिया है। इन किसानों की जमीन सरकार द्वारा जबरदस्ती अधिग्रहित की गई थी। किसानों को अपनी जमीन पर बाड़ लगाकर खेती करने से रोक दिया गया।'' उन्होंने दावा किया कि जमीन के मालिकों को न तो अधिग्रहण का नोटिस दिया गया और न ही मुआवजा दिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘सरकार जमीन का दस्तावेज दिखाने को भी तैयार नहीं है। मैं अस्पताल परियोजना के खिलाफ नहीं हूं। रांची में कई एकड़ बंजर या अप्रयुक्त जमीन है जहां अस्पताल बनाया जा सकता है।'' चंपई ने दावा किया कि इस मामले में भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013, छोटानागपुर काश्तकारी (सीएनटी) अधिनियम और ग्राम सभा नियमों का पालन नहीं किया गया है।
चंपई ने आरोप लगाया कि राज्य में आदिवासियों पर ‘‘हमला'' हो रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘उनकी जमीनें छीनी जा रही हैं और अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे आदिवासियों की हत्या की जा रही है। कई विधानसभा चुनाव लड़ चुके और बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करने वाले सूर्या हांसदा को गिरफ्तार कर एक मुठभेड़ में मार दिया गया क्योंकि वह एक आदिवासी थे।'' पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि 1770 में बाबा तिलका मांझी के समय से लेकर सिदो-कान्हू, भगवान बिरसा मुंडा और बाद में दिसोम गुरु शिबू सोरेन तक आदिवासी नेताओं ने जल, जंगल, जमीन के लिए अथक संघर्ष किया है। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन हमारे समाज को क्या मिला? हमें इस जमीन का मालिक कहा जाता है, लेकिन कड़वा सच यह है कि आज हम राशन कार्ड से मिलने वाले पांच किलोग्राम चावल पर निर्भर हैं। हम बैठे-बैठे इसका इंतजार कर रहे हैं। ये हालात बदलने ही चाहिए।''