Bihar Lok Sabha Election: संसदीय जीवन का सफर Hajipur से नहीं बल्कि Sasaram से शुरू करना चाहते थे Ramvilas

Edited By Nitika, Updated: 12 May, 2024 02:36 PM

ramvilas wanted to start the journey of parliamentary life from sasaram

‘धरती से गूंजे आसमान, हाजीपुर में रामविलास पासवान' जैसे नारों के बीच बिहार की हाजीपुर लोकसभा सीट से वर्ष 1977 में अपनी शानदार संसदीय पारी शुरू कर विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले और आठ बार इस सीट से जीत हासिल करने वाले दलितों के करिश्माई नेता रामविलास...

 

पटनाः ‘धरती से गूंजे आसमान, हाजीपुर में रामविलास पासवान' जैसे नारों के बीच बिहार की हाजीपुर लोकसभा सीट से वर्ष 1977 में अपनी शानदार संसदीय पारी शुरू कर विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले और आठ बार इस सीट से जीत हासिल करने वाले दलितों के करिश्माई नेता रामविलास पासवान हाजीपुर से नहीं बल्कि सासाराम से चुनाव लड़ना चाहते थे।

बिहार के खगड़िया जिले के शहरबन्नी गांव में जमुना दास और सिया देवी के आंगन में जन्में रामविलास पासवान कोसी कॉलेज और पटना विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी कर वर्ष 1969 में पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) बने। पुलिस की नौकरी में मन नही लगा तो राजनीति में आने का बड़ा फैसला कर लिया। पासवान ने पहली बार वर्ष 1969 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर अलौली सुरक्षित विधानसभा सीट से चुनाव जीता और यहीं से उनके राजनीतिक जीवन की दिशा निर्धारित हो गई। पासवान के पिता नहीं चाहते थे कि वे राजनीति में अपना भविष्य आगे देखें। वह चाहते थे यदि रामविलास राजनीति में ही आना चाहते हैं तो कांग्रेस से चुनाव लड़े। वह संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी को जेल जाने वाली पार्टी मानते थे। पासवान के पिता ने उन्हें पुलिस की नौकरी जॉइन करने के लिए कह दिया था। हालांकि पासवान ने अपने पिता की मर्जी के खिलाफ राजनीति में ही आगे जाने का फैसला किया।

वर्ष 2016 में राम विलास पासवान ने अपने ट्विटर हैंडल से अपने जीवन की एक अनोखी घटना शेयर की थी, ‘‘जब वह डीएसपी के एग्जाम में पास हुए उसी समय वह विधायक भी बन गए थे। तब उनके एक दोस्त ने उनसे पूछा कि गवर्नमेंट बनना चाहते हो या फिर सर्वेंट! इसके बाद पासवान राजनीति में आ गए।'' उन दिनों पासवान अपने दो-तीन साथियों के साथ ट्रेन में जा रहे थे। अलौली विधानसभा के विधायक रहे मिश्री सदा भी ट्रेन में बैठे हुए थे। पासवान ने उन्हें नमस्कार कहा और अपनी सीट पर बैठ गए। पासवान उस समय बड़ा नाम नहीं थे इसलिए किसी ने उन्हें पहचाना भी नहीं। मिश्री सदा अपने समर्थकों के साथ बातचीत कर रहे थे। पासवान भी उनकी बातें सुन रहे थे। एक कांग्रेसी कार्यकर्ता मिश्री सदा को बता रहे थे कि इस बार अलौली से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से किसी ‘पासवान' नाम के लड़के को टिकट देने का फैसला किया है। हाल ही में डीएसपी बना है, ‘कल का लौंडा' है और आपको चुनौती दे रहा है।'

मिश्री सदा ने इस पर हंसते हुए कार्यकर्ता से कहा था, ‘चलो पिछली बार 40 हजार वोट से जीते थे और इस बार 80 हजार वोट से जीत जाएंगे।' पासवान को यह कटाक्ष बहुत बुरा लगा। वह हर हाल में अलौली विधानसभा से चुनाव लड़कर मिश्री सदा को इसका जवाब देना चाहते थे। उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से टिकट मिलने के बाद गांव-गांव साइकिल से प्रचार शुरू किया। लगातार विधायक चुनते आ रहे मिश्री सदा को पासवान ने करीब 906 वोटों के अंतर से शिकस्त दी थी। पासवान के बाद उनके अनुज पशुपति कुमार पारस ने अलौली सीट से उनकी विरासत को संभाला और वर्ष 1977, 1985, 1990, 1995, 2000, फरवरी 2005,अक्टूबर 2005 के चुनाव में भी जीत हासिल की। बिहार की सियासत के बेताज बादशाह कहे जाने वाले दलित नेता रामविलास पासवान को देश के छह प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का मौका भी मिला। वह विश्वनाथ प्रताप सिंह, एचडी देवेगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ. मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी की सरकार में मंत्री रहे। वह दो बार राज्यसभा सांसद भी बने। पासवान ने वर्ष 1977 में हाजीपुर से अपने संसदीय जीवन की शुरुआत की और यहां कांग्रेस के किले को ढहा दिया।

हाजीपुर के लोगों ने उन्हें रिकॉर्ड मतों से जिताया था। उनका नाम गिनीज बुक आफ द वल्डर् रिकॉर्ड में दर्ज हो गया। उन्हें 89.3 प्रतिशत वोट मिले थे। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी को मात्र 8.47 प्रतिशत वोट से ही संतोष करना पड़ा था। बाद में 1989 में उन्होंने खुद अपने ही रिकॉर्ड को यहां से तोड़ा था। हाजीपुर संसदीय सीट पर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाकर अपने संसदीय पारी का आगाज करने वाले पासवान यहां से चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं थे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर चले आंदोलन में पासवान जेल से छूटकर आए थे। उन्होंने एक बार बताया था कि उस वक्त हाजीपुर में उनकी किसी से जान-पहचान नहीं थी। यहां के लिए वे बिल्कुल नए थे। उनकी चाहत तब सासाराम से चुनाव लड़ने की थी। जनता पार्टी ने सासाराम से बाबू जगजीवन राम को उम्मीदवार बनाया था। तब जयप्रकाश नारायण ने पासवान से कहा था कि उन्हें हाजीपुर से चुनाव लड़ना है। जेपी ने उन्हें 1977 में हाजीपुर से नामांकन करने का आदेश दिया। इसी बीच रामसुंदर दास को सिंबल दे दिया गया। इसके बाद श्री पासवान निश्चिंत हो गए। सोचा, ठीक ही हुआ। वैसे भी वे यहां से चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे फिर एक दिन अचानक जेपी का बुलावा आया। वहां गए तो पूछा गया कि नामांकन किया कि नहीं। उन्होंने बताया कि रामसुंदर दास को टिकट दे दिया गया है। जेपी यह सुनकर गुस्से में आ गए। जेपी ने तुरंत कर्पूरी ठाकुर से बात की। जेपी ने रामविलास को आदेश दिया कि वह तुरंत नामांकन करें। उन दिनों जेपी के पीए थे इब्राहिम, जेपी ने उनसे कहा कि आप एक पोस्टर जारी करो कि जनता पार्टी का उम्मीदवार कौन है, मैं नहीं जानता हूं, लेकिन जेपी का उम्मीदवार राम विलास पासवान है। जेपी की नाराजगी का आभास ऊपर तक लोगों को हो गया। रामविलास को चुनाव लड़ने का सिंबल मिल गया।

बिहार की सियासत के बेताज बादशाह कहे जाने वाले रामविलास पासवान ने वर्ष 1977 के लोकसभा चुनाव में हाजीपुर सीट पर भारतीय लोक दल (बीएलडी) के टिकट पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस उम्मीदवार बालेश्वर राम को सवा चार लाख से ज़्यादा मतों से हराकर पहली बार लोकसभा में पैर रखा था। पासवान का नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ वल्डर् रिकॉर्ड्स में शामिल हो गया। रामविलास पासवान नाम सारे देश के लोगों ने 1977 के चुनाव के बाद सुना। खबर यह थी कि बिहार की एक सीट पर किसी नेता ने इतने ज़्यादा अंतर से चुनाव जीता है। पासवान ने बताया था कि 1977 में हाजीपुर से चुनाव जीतने का उन्हें कोई भरोसा नहीं था। उनके खिलाफ तब के राजनीति के दिग्गज चुनावी मैदान में थे। जब रिजल्ट आया तो उन्हें भरोसा ही नहीं हुआ। उसके बाद वे जो यहां के हुए तो बस यहीं के होकर ही रह गए। हाजीपुर राम विलास पासवान के लिये सुरक्षित सीट बन गयी।हाजीपुर से उनका रिश्ता 44 वर्षों तक रहा। पासवान भी खुद को पूरे जीवन हाजीपुर की धरती को अपनी मां कहकर ही संबोधित करते थे। राम विलास पासवान ने आठ बार हाजीपुर से चुनाव जीता। बिहार में सर्वाधिक नौ बार लोकसभा का चुनाव जीतने का कीर्तिमानराम विलास पासवान के नाम दर्ज है, वहीं पूर्व उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम के नाम आठ बार चुनाव जीतने का कीर्तिमान नाम दर्ज है। राम विलास पासवान सासाराम से अपना पहला संसदीय चुनाव लड़ना चाहते थे। सासाराम को पहले शाहाबाद नाम से जाना जाता था। यहां से जगजीवन राम लगातार आठ बार जीते। राजनीति में रामविलास पासवान ने 70 के दशक में कदम रखा था और फिर सियासत की बुलंदी साल दर साल चढ़ते गए। राम विलास पासवान ने बिहार के हाजीपुर संसदीय सीट को अपनी कर्मभूमि बनाया था।हाजीपुर में जातीय एवं दलीय राजनीति से इतर उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई। दो बार यहां से उन्हें हार का भी सामना पड़ा।

वर्ष 2009 में रामविलास पासवान को हार से झटका जरूर लगा था, लेकिन उन्होंने खुद को हाजीपुर से जोड़े रखा। हार के बाद हाजीपुर के मीनापुर में पासवान की पहली सभा हुई थी, जहां पासवान की आंखों में आंसू छलक आए थे। उन्होंने उस समय कहा था कि लोगों को संबोधित करते हुए कहा था, बच्चे से गलती हो जाती है तो थप्पड़ मार देना चाहिए, लेकिन इतनी बड़ी सजा नहीं देनी चाहिए। मैंने हाजीपुर को अपनी मां माना है और इस धरती एवं यहां के लोगों का कर्ज वे मरते दम तक नहीं चुका पाएंगे। 2014 के चुनाव में उन्होंने हाजीपुर से एक बार फिर से जीत दर्ज करने में कामयाब रहे। इस तरह से उन्होंने अपने आखिरी वक्त तक हाजीपुर से अपने आपको जोड़े रखा। वर्ष 1977 में पहले चुनाव के लिए राम विलास पासवान ने जिस परिवार से चुनाव कार्यालय के लिए जगह ली थी, वो उनके जीत का लक्की साइन बन गया। हाजीपुर के डाकबंगला रोड पर है इंदुभूषण ठाकुर का घर। इस घर का और इसके मालिक इंदुभूषण का राम विलास पासवान की लगातार चुनावी जीत से एक संयोग जुड़ा है। वर्ष 1977 के पहले चुनाव से लेकर 2014 के चुनाव तक कुल 10 चुनावी साल में आठ बार रामविलास पासवान को जो जीत मिली,उस समय राम विलास पासवान का प्रधान चुनाव कार्यालय इंदुभूषण सिंह के घर में रहा। वर्ष 1984 और 2009 के साल में चुनाव कार्यालय इंदुभूषण सिंह के घर की जगह घर के पास के ही एक दूसरे मकान में बनाया गया, लेकिन इन दोनों चुनावों में राम विलास पासवान चुनाव हार गए। हाजीपुर लोकसभा सीट वर्ष 1957 में अस्तित्व में आई थी।

वर्ष 1957 में हुए चुनाव में कांग्रेस के राजेश्वर पटेल विजयी बने। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के राम सुंदर दास तीसरे नंबर पर रहे। यह रामसुंदर दास का हाजीपुर में पहला चुनाव था। इससे पूर्व पटेल ने मुजफ्फरपुर -दरभंगा सीट से वर्ष 1952 में कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की। वर्ष 1962 के चुनाव में भी उन्होंने ही बाजी मारी। वर्ष 1967 में भी कांग्रेस के वाल्मीकी चौधरी सासंद बने। वर्ष 1971 के चुनाव में कांग्रेस (संगठन) के दिग्विजय नारायण सिंह के सिर जीत का सेहरा बंधा। सिंह आधुनिक बिहार के दानवीर, महापुरुष बाबू लंगट सिंह के पौत्र थे। इससे पूर्व दिग्विजय नारायण सिंह ने वर्ष 1952 में मुजफ्फरपुर नार्थ ईस्ट, वर्ष 1957 में पुपरी, वर्ष 1962 और वर्ष 1967 में मुजफ्फरपुर लोकसभा क्षेत्र से जीत हासिल की थी। राम विलास पासवान ने जनता पार्टी (सेक्यूलर) के टिकट से वर्ष 1980 में एक बार फिर हाजीपुर से चुनाव जीते। जनता पार्टी के मेदनी पासवान दूसरे जबकि इंदिरा कांग्रेस की श्यामा कुमारी तीसरे नंबर पर रही। वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में सहानुभूति लहर के दौरान पासवान ने भारतीय लोकदल के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें कांग्रेस के राम रतन राम ने पराजित कर दिया। पहली बार राम विलास पासवान को हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद राम विलास पासवान ने वर्ष 1985 में उत्तर प्रदेश के बिजनौर सीट से उपचुनाव लड़ा। इस सीट से 1984 में कांग्रेस के गिरधारी लाल जीते थे। उनके निधन के चलते हुए उपचुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने लोकदल के टिकट पर रामविलास पासवान को मैदान में उतारा था। इस चुनाव में यह नारा चुनाव में काफी पॉपुलर हुआ, धरती गूंजे आसमान... रामविलास पासवान। बिजनौर का उपचुनाव यादगार रहा था। इस चुनाव में कांग्रेस नेत्री पूर्व उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम की बिटिया मीरा कुमार ने राम विलास पासवान को हराकर अपना राजनैतिक सफर शुरू किया।

इस उपचुनाव में मायावती ने भी अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। निर्दलीय प्रत्याशी मायावती तीसरे नंबर पर रही। नीचे धरती, ऊपर आसमां हर तरफ रामविलास रामविलास पासवान'नारे के पीछे भी एक कहानी भी है। पटना के गांधी मैदान में लालू प्रसाद यादव एक रैली कर रहे थे। तब लालू प्रसाद यादव और राम विलास पासवान एक साथ थे। इस रैली में रामविलास पासवान को आने का निमंत्रण दिया गया। जब लालू मंच से भाषण दे रहे थे, तभी रामविलास पासवान का हेलिकॉप्टर लैंड करने लगा। सभा में मौजूद सभी लोगों की निगाहें हेलिकॉप्टर पर अटक गईं, तभी लालू प्रसाद यादव ने कहा, ऊपर आसमान, नीचे पासवान। बाद में लोगों ने इस नारा को‘नीचे धरती, ऊपर आसमान हर तरफ रामविलास रामविलास पासवान' कर दिया। यह नारा उन दिनों खूब चर्चित हुआ था। वर्ष 1989 में पासवान हाजीपुर में जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते। इस बार की जीत 1977 की जीत से भी बड़ी थी। इस बार उन्होंने कांग्रेस के महावीर पासवान को पांच लाख चार हजार 448 वोटों से हराया था।

वर्ष 1991 में जनता दल के टिकट पर पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास विजयी बनें। जनता पार्टी के दशई चौधरी दूसरे जबकि कांग्रेस प्रत्याशी संजीव प्रसाद टोनी तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 1991 में राम विलास पासवान ने रोसड़ा संसदीय सीट से चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी। वर्ष 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव में पासवान जनता दल के टिकट पर हाजीपुर से सांसद चुने गये। वर्ष 1996 में राम विलास पासवान ने समता पार्टी प्रत्याशी पूर्व मुख्यमंत्री राम सुंदर दास को पराजित किया। वर्ष 1998 में पासवान ने समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) प्रत्याशी राम सुंदर दास को फिर मात दी। वर्ष 1999 में राम विलास पासवान जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के टिकट पर हाजीपुर से लोकसभा पहुंचे थे। उन्होंने राजद प्रत्याशी पूर्व मंत्री रमई राम को पराजित किया। समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) प्रत्याशी राम सुंदर दास तीसरे नंबर पर रहे। इसके बाद वर्ष 2000 में राम विलास पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना की और वर्ष 2004 के चुनाव में वह सांसद बने।

लोजपा प्रत्याशी पासवान ने जदयू के छेदी पासवान को पराजित किया। समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) प्रत्याशी राम सुंदर दास चौथे नंबर पर रहे। वर्ष 2009 में राम विलास पासवान को हार का मुंह देखना पड़ा। जदयू प्रत्याशी राम सुंदर दास ने लोजपा के रामविलास पासवान को पटखनी दे दी। लेकिन, वर्ष 2014 के चुनाव में राम विलास पासवान ने फिर से वापसी की और लोकसभा पहुंचे। लोजपा प्रत्याशी राम विलास पासवान ने कांग्रेस के संजीव प्रसाद टोनी को शिकस्त दी। जदयू प्रत्याशी राम सुंदर दास तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 2019 के हाजीपुर आम चुनाव में स्वास्थ्य कारणों से राम विलास पासवान ने हाजीपुर से चुनाव नहीं लड़ा और अपने भाई पशुपति पारस को चुनाव लड़ाया। पशुपति कुमार पारस ने लोजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रत्याशी पूर्व मंत्री शिवचंद्र राम को पराजित किया। राम विलास पासवान ने जयप्रकाश नारायण की छत्रछाया में हाजीपुर से अपना पहला संसदीय चुनाव लड़ा था। यह भी संयोग है कि जय प्रकाश नारायण और राम विलास पासवान का निधन एक ही दिन 08 अक्टूबर को हुआ। 08 अक्टूबर 1979 को जय प्रकाश नारायण वहीं राम विलास पासवान का निधन 08 अक्टूबर 2020 को हुआ। वैशाली का इतिहास बेहद गौरवशाली है। एक तरफ इसे दुनिया का पहला गणतंत्र होने का सौभाग्य प्राप्त है, तो दूसरी तरफ भगवान महावीर और गौतम बुद्ध की धरती के तौर भी ख्याति प्राप्त है। हाजीपुर की पहचान यहां के विश्व प्रसिद्ध केलों से है। 12 अक्टूबर 1972 को वैशाली जिला बना। इससे पहले वैशाली मुजफ्फरपुर का हिस्सा हुआ करती थी। हाजीपुर पटना से सटा हुआ है, इसके पास गंगा और गंदक नदियां बहती हैं। गंगा नदी पर महात्मा गांधी सेतु बना हुआ है जो कि पटना और हाजीपुर को जोड़ता है। हाजीपुर से तीन किमी दूर सोनपुर शहर है। यहां पर हर साल सोनपुर पशु मेला लगता है कि जो कि पूरे भारत में प्रसिद्ध है।ऐसा कहा जाता है कि जैन धर्म के संस्थापक भगवान महावीर का जन्म यहीं हुआ।

हाजीपुर संसदीय सीट पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान प्रत्याशी हैं, वहीं इंडिया गठबंधन की ओर से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रत्याशी पूर्व मंत्री शिवचंद्र राम चुनावी रणभूमि में उतरे हैं। हाजीपुर लोकसभा सीट को लेकर लोजपा (रामविलास) के चिराग पासवान और उनके चाचा राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) प्रमुख पशुपति पारस दोनों ने दावा ठोका था। काफी खींचतान के बाद यह सीट चिराग पासवान के पाले में ही गई। राजग में टिकट बंटवारे से नाराज होकर पशुपति पारस ने राजग का दामन छोड़ केन्द्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। पारस खुद इस बार भी हाजीपुर से चुनाव लड़ना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने अंतिम क्षणों तक जी जान से कोशिशें की। उनकी लाख कोशिशों के बावजूद राजग ने चिराग पासवान को हाजीपुर से उम्मीदवार बनाया। पारस भले ही इस बार हाजीपुर से चुनाव नहीं लड़ रहे, लेकिन उन्होंने राजग उम्मीदवार चिराग पासवान के पक्ष में चुनाव प्रचार करने का ऐलान किया था। पशुपति पारस ने कहा है कि वह चिराग पासवान के लिए चुनावी प्रचार करने के लिए तैयारी हैं। यदि चिराग प्रचार के लिए बुलाते हैं तो वह हाजीपुर अवश्य जाएंगे और उनके लिए जनता से वोट मांगेंगे। पारस ने कहा है कि पहले जो बातें हुईं, उसे भुलाकर वे भतीजे की सहायता के लिए तैयार हैं लेकिन वह ऐसा तब करेंगे जब उन्हें चिराग पासवान बुलाएंगे। अब देखने की बात है कि पारस के राजग के साथ रहने की घोषणा के बावजूद उनके समर्थकों का रूख क्या होता है। लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 सीटों में हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र काफी हॉट सीट मानी जा रही है। चिराग पासवान इस सीट पर जीत के लिए आश्वस्त भी हैं और काफी मेहनत भी कर रहे हैं।

वहीं राजद की ओर से दावा किया जा रहा है कि इस बार हाजीपुर लोकसभा से इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार की जीत होगी। चिराग पासवान और शिवचंद्र राम दोनों के बीच कांटे की टक्कर है।राजनीति के जानकारों का मानना है कि इसमें कोई दो राय नहीं कि चिराग पासवान को अपने वोटर्स के अलावा अन्य जातियों का वोट भी उन्हें मिल सकता है, क्योंकि उनके पिता स्वर्गीय राम विलास पासवान ने वैशाली के लोगों के लिए काफी काम किया है, अब जबकि पहली बार उनका बेटा अपनी जमीन से चुनाव लड़ रहा है तो लोग हाथों हाथ जरूर लेंगे। राजद के लोकसभा प्रत्याशी शिवचंद्र राम ने बाहरी और भीतरी का मुद्दा उठाकर सियासी चाल चल दी है, ऐसे में चिराग के सामने चुनौती कम नहीं है। शिवचंद्र राम का कहना है कि बाहरी हटाओ हाजीपुर का बेटा लाओ, हाजीपुर में घर के बेटा शिवचंद्र राम को आशीर्वाद मिल रहा है, सभी जाति धर्म के लोगों का आशीर्वाद हमें मिलेगा। हाजीपुर संसदीय क्षेत्र की महान जनता ने नारा दे दिया है कि बाहरी हटाओ हाजीपुर के बेटा को लाओ। शिवचंद्र राम ने कहा है कि हाजीपुर के लोग पिछले 47 साल से एक ही परिवार को झेल रहे हैं। हाजीपुर की लड़ाई स्पष्ट है।हाजीपुर को जितना आगे बढ़ना चाहिए था, वह नहीं बढ़ सका।इस चुनाव में जनता मोदी सरकार को हटाने का मन बना चुकी है।

वहीं चिराग पासवान ने हाजीपुर को अपने रग रग में समाया हुआ बताकर शिवचंद्र राम के आरोपों का काउंटर किया है, साथ ही उन्होंने इमोशनल काडर् भी चला है। चिराग ने कहा है कि हाजीपुर को मेरे पिता ने अपनी मां माना ही लेकिन हकीकत में एक मां की तरह मुझे संरक्षण और सम्मान दिया। यदि मैं हाजीपुर के लिए बाहरी हूं तो मुझे नहीं पता कि बाहरी या अपनी की क्या परिभाषा होती है। चिराग पासवान इस बात पर जोर देते हुए कि शहर के साथ उनका रिश्ता खून के रिश्तों से परे है। जमुई के सांसद और लोजपा (रामविलास) के अघ्यक्ष चिराग पासवान अपने पिता दिवंगत राम विलास पासवान की विरासत आगे ले जाने के लिये हाजीपुर से चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा है कि यदि उनके पिता आज जीवित होते तो उन्होंने मुझे चुनाव चिन्ह दिया होता, लेकिन अब वह नहीं रहे। मैंने उनका आशीर्वाद लिया है और उनकी कर्मभूमि को एक नई पहचान देने के लिए हर संभव प्रयास करूंगा। मैं अपने पिता के हर उस सपने को पूरा करूंगा, जो उन्होंने हाजीपुर के लोगों के लिए देखा था। हाजीपुर लोकसभा सीट चिराग पासवान के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है। राजद उम्मीदवार शिवचंद्र राम को मुस्लिम यादव (माय समीकरण और अतिपिछड़ों के अलावा अपने स्वजातीय मतदाताओं पर भरोसा है। चिराग पासवान के साथ राजग की ताकत और जनाधार है। जदयू के साथ होने से पिछड़ा वोट में भी चिराग के समर्थक बड़ी संख्या में सेंधमारी का दावा करते हैं लेकिन इस सीट पर जीत-हार में ऊंची जातियां अहम भूमिका निभाती हैं।

हाजीपुर (सु) सीट के तहत छह विधानसभा क्षेत्रों में राघोपुर, महुआ, राजापाकड़ (सु), हाजीपुर, लालगंज और महनार शामिल हैं। इसमें हाजीपुर और लालगंज पर भाजपा का कब्जा है। राघोपुर, महुआ एवं महनार में राजद और राजापाकड़ सुरक्षित विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। राघोपुर विधानसभा क्षेत्र राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव का गढ़ है।राघोपुर से 1995 से लेकर अब तक लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और अभी वर्तमान में तेजस्वी यादव विधायक हैं। हाजीपुर संसदीय सीट से लोजपा (रामविलास), राजद, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) समेत 14 प्रत्याशी चुनावी मैदान में है। अब हाजीपुर की सियासी धरती पर 1977 के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है कि ‘नीचे धरती, ऊपर आसमान हर तरफ रामविलास पासवान' नारा नहीं गूंजेगा। हाजीपुर की सरजमीं में 20 मई को चुनाव है। राम विलास की विरासत को सहेजने वाले उनके पुत्र चिराग पासवान हैं, धरती भी है, आसमान भी है, नहीं है तो सिर्फ राजनीतिक जगत के सशक्त हस्ताक्षर राम विलास पासवान।

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