Edited By Ajay Chandigarh, Updated: 06 Jul, 2023 11:06 PM
बताया जाता है की उर्दू की शुरुआत हिंदुस्तान से हुई थी, जिसे बापू महात्मा गांधी द्वारा भी सराहा जाता था। उर्दू को तहज़ीब की ज़बान का ओनवान भी हासिल है।
बताया जाता है की उर्दू की शुरुआत हिंदुस्तान से हुई थी, जिसे बापू महात्मा गांधी द्वारा भी सराहा जाता था। उर्दू को तहज़ीब की ज़बान का ओनवान भी हासिल है।
बिहार के शेखपुरा ज़िला के रहने वाले सय्यद अमजद हुसैन फ़िलहाल “अख़्तर ओरेनवी: बिहार में उर्दू साहित्य के निर्माता” शीर्षक से एक पुस्तक लिख रहे हैं जिसका प्रकाशन अगले 14 जुलाई को होना है। इस किताब को अख़्तर ओरेनवी के जीवनी पर लिखा जा रहा है। अख़्तर ओरेनवी की किताब “बिहार में उर्दू ज़बान-ओ-अदब का इरतक़ा” बहुत नामी किताब रही है जिसे उर्दू पढ़ने वाले लोग ज़रूर पढ़ते हैं।
ख़त्म हो रहा है उर्दू का चलन
युवा लेखक सय्यद अमजद हुसैन बताते हैं, उर्दू में बिहार के कई शायर हुए थे। जिसमें शाद अज़ीमाबादी बिहार के बड़े शायर हुए थे। उन जैसे सैकड़ों शायर हुए थे। आज के दौर में उर्दू का चलन ख़त्म होते जा रहा है सभी क्षेत्र का अपना अलग भाषा होने के कारण उर्दू का चलन ख़त्म होते जा रहा है। बिहार का चलन आज के वक़्त में सिर्फ़ बिहार के बंगाल बॉर्डर की तरफ़ है बाक़ी इलाक़ों में नहीं बचा है।
क्यों है उर्दू की ज़रूरत?
उर्दू को तहज़ीब की ज़बान कहा जाता है, जिस ज़बान में मिठास झलकती है। उर्दू भाषा की शुरुआत बारहवीं शताब्दी में उत्तरी भारत के दिल्ली इलाक़े से हुआ था।
कौन हैं युवा लेखक सय्यद अमजद हुसैन?
बिहार में रुचि की कमी नहीं है, बिहार हमेशा से महान लोगों का जनक रहा है। शून्य की खोज से लेकर अशोक सम्राट और शेर शाह सूरी जैसे बादशाह हुए हैं। इसी बिहार के शेखपुरा ज़िला के जमुआरा गाँव में जन्मे सय्यद अमजद हुसैन हैं जिन्होंने मात्र 18 वर्ष की आयु में लेखनी में अपना नाम बनाया है। अमजद की पढ़ाई डीपीएस शेखपुरा और एसएडीएन कॉन्वेंट स्कूल शेखपुरा से हुई है। वह अभी मौलाना अबुल कलाम आज़ाद यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नॉलजी, पश्चिम बंगाल में पढ़ाई कर रहे हैं।