3 साल तक आश्रम में रहे, आदिवासियों व गरीबों को शिक्षित करने के लिए खोला स्कूल...ऐसे की शिबू सोरेन ने ग्रामीणों की मदद

Edited By Khushi, Updated: 06 Aug, 2025 02:33 PM

stayed in the ashram for 3 years  opened a school to educate the tribals

धनबाद: झारखंड के धनबाद जिले के टुंडी में स्थित पोखरिया आश्रम में 1970 के दशक की शुरुआत में शिबू सोरेन के लिए खाना बनाने वाली बहामुनी मुर्मू (68) ने आदिवासियों और वंचितों के उत्थान के लिए उनके शुरुआती संघर्ष को याद किया।

धनबाद: झारखंड के धनबाद जिले के टुंडी में स्थित पोखरिया आश्रम में 1970 के दशक की शुरुआत में शिबू सोरेन के लिए खाना बनाने वाली बहामुनी मुर्मू (68) ने आदिवासियों और वंचितों के उत्थान के लिए उनके शुरुआती संघर्ष को याद किया।

सोरेन ने टुंडी के पोखरिया गांव में आदिवासियों और गरीबों को शिक्षित करने के लिए एक रात्रिकालीन स्कूल भी खोला था। मुर्मू ने कहा, “गुरुजी (शिबू सोरेन) लगभग तीन साल तक आश्रम में रहे। उसके बाद उन्होंने आना बंद कर दिया। मैं आश्रम में उनके लिए खाना बनाती थी। उनका खान-पान बहुत साधारण था, आमतौर पर रोटी-सब्जी खाते थे।” मुर्मू अपने परिवार के साथ आज भी आश्रम में रहती हैं। वह आश्रम की देखभाल का जिम्मा संभालती हैं। उन्होंने याद किया कि ‘गुरुजी' ने ग्रामीणों के बीच लालटेन, चाक और स्लेट बांटीं ताकि आदिवासी बच्चे रात में पढ़ाई कर सकें। मुर्मू के कमरे में शिबू सोरेन की एक बड़ी-सी तस्वीर लगी हुई है। उन्होंने बताया, “गुरुजी खुद भी ग्रामीणों को रात में पढ़ाते थे, क्योंकि वे दिन में खेतों में काम करते थे।”

पोखरिया में रहने वाली फूलमणि देवी (67) ने कहा कि सोरेन से मिलने के लिए लोग दूर-दूर से आश्रम आते थे। फूलमणि के मुताबिक, “गुरुजी ने कुदाल सहित अन्य कृषि उपकरण वितरित किए और युवाओं को खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया।” उन्होंने बताया कि सोरेन ने गांव में ‘धनकटनी' आंदोलन शुरू किया था। फूलमणि ने कहा, “पहले, जब किसान कर्ज नहीं चुका पाते थे, तो साहूकार उनकी फसल जब्त कर लेते थे। सोरेन ने फैसला किया कि किसानों को अपनी धान की फसल साहूकारों को देने के बजाय खुद ही उनकी कटाई कर लेनी चाहिए।” 

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