Edited By Nitika, Updated: 27 Oct, 2022 06:20 PM
बिहार में छठ का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार को 'महापर्व' कहा जाता है। बताया जाता है कि छठ व्रत के साथ कई मंदिरों और जगहों की महत्ता जुड़ी हुई है। इस व्रत को सबसे कठिन व्रत माना जाता है।
मुंगेर: बिहार में छठ का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार को 'महापर्व' कहा जाता है। बताया जाता है कि छठ व्रत के साथ कई मंदिरों और जगहों की महत्ता जुड़ी हुई है। इस व्रत को सबसे कठिन व्रत माना जाता है।
कहा जाता है कि रामायण काल के दौर में सीता माता ने पहला छठ पूजन बिहार के मुंगेर जिले के गंगा तट पर संपन्न किया था। इसके प्रमाण स्वरूप यहां आज भी माता सीता के अस्तचलगामी सूर्य और उदयमान सूर्य को अर्घ्य देते चरण चिह्न मौजूद हैं। इसके अतिरिक्त सीता के चरणों पर कई वर्षों से खोज कर रहे प्रसिद्ध पंडित कौशल किशोर पाठक का कहना है कि आनंद रामायण में 3 पेजों में सीता चरण और मुंगेर के बारे में वर्णन किया गया है।
आनंद रामायण में बताया जाता है कि माता सीता ने बबुआ घाट पर छठ पूजन किया था और तभी से इस स्थान को सीता चरण मंदिर के नाम से जाना जाता है, जो आज भी माता सीता के छठ पर्व की कहानी को दोहराता हैं। कहा जाता है कि जब प्रभु राम बनवास पूरा करके अयोध्या वापस लौटे, तो उन्होंने रामराज्य के लिए राजसूर्य यज्ञ करने का निर्णय लिया था। यज्ञ शुरू करने से पहले उन्हें वाल्मीकि ऋषि ने कहा कि मुद्गल ऋषि के आए बिना यह राजसूर्य यज्ञ सफल नहीं हो सकता। इसके बाद श्रीराम और सीता माता मुद्गल ऋषि के आश्रम गए, जहां पर मुद्गल ऋषि ने ही माता सीता को यह सलाह दी थी कि वह छठ व्रत पूरा करें।
कहा जाता है कि श्रीराम ने रावण का वध किया था लेकिन रावण एक ब्राह्मण था, इसलिए राम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा था। इस पाप से मुक्त होने के लिए श्रीराम और सीता माता मुंगेर आए, जहां पर ऋषि मुद्गल ने कष्टहरणी घाट में ब्रह्महत्या मुक्ति यज्ञ करवाया और माता सीता को अपने आश्रम में रहने का आदेश दिया क्योंकि महिलाएं यज्ञ में भाग नहीं ले सकती थी। माता सीता ने ऋषि मुद्गल के आश्रम में रहकर ही उनके निर्देश पर व्रत किया और सूर्य उपासना के दौरान अस्ताचलगामी सूर्य को पश्चिम दिशा की ओर उदीयमान सूर्य को पूरब दिशा की ओर अर्घ्य दिया। इतना ही नहीं आज भी मंदिर के गर्भ गृह में माता सीता के पैरों के निशान मौजूद हैं। यह मंदिर का गर्भ गृह साल के छह महीने गंगा के गर्भ में समाया रहता है और गंगा का जलस्तर घटने पर 6 महीने ऊपर रहता है।माना जाता है कि मंदिर के प्रांगण में छठ करने से लोगों की मनोकामना पूर्ण होती है।