Edited By Harman, Updated: 05 Aug, 2025 03:09 PM

‘दिशोम गुरु' के नाम से जाने जाने वाले वरिष्ठ आदिवासी नेता शिबू सोरेन के निधन के एक दिन बाद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर की है। इस पोस्ट के माध्यम से उन्होंने अपने पिता को याद करते हुए उनसे जुड़ी कई बातें साझा की।...
Shibu Soren Death: ‘दिशोम गुरु' के नाम से जाने जाने वाले वरिष्ठ आदिवासी नेता शिबू सोरेन के निधन के एक दिन बाद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर की है। इस पोस्ट के माध्यम से उन्होंने अपने पिता को याद करते हुए उनसे जुड़ी कई बातें साझा की। साथ ही इस पोस्ट में उन्होंने बताया कि शिबू सोरेन को लोग दिशोम गुरू क्यों कहते और इसका मतलब क्या है?
झारखंड की आत्मा का स्तंभ चला गया-हेमंत सोरेन
हेमंत ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स' पर लिखा, ‘‘मैं अपने जीवन के सबसे कठिन दिनों से गुजर रहा हूं। मेरे सिर से सिर्फ पिता का साया नहीं गया बल्कि झारखंड की आत्मा का स्तंभ चला गया।'' उन्होंने कहा कि उनके पिता का संघर्ष कोई किताब नहीं समझा सकती। सोरेन ने झारखंड को ‘‘झुकने नहीं देने'' का वादा किया और शोषितों एवं गरीबों के लिए काम करके अपने पिता के सपनों को साकार करने का संकल्प लिया। उन्होंने अपने पिता को याद करते हुए लिखा, ‘‘आपने जो सपना देखा, अब वह मेरा वादा है। मैं झारखंड को झुकने नहीं दूंगा। आपके नाम को मिटने नहीं दूंगा। आपका संघर्ष अधूरा नहीं रहेगा।''
‘बाबा' वह मेरे पथप्रदर्शक थे-सीएम हेमंत
सीएम हेमंत ने कहा, ‘‘मैं उन्हें सिर्फ ‘बाबा' नहीं कहता था। वह मेरे पथप्रदर्शक थे, मेरे विचारों की जड़ें थे और उस जंगल जैसी छाया थे जिसने हजारों-लाखों झारखंडवासियों को धूप और अन्याय से बचाया।'' उन्होंने अपने पिता की ‘‘बहुत साधारण'' शुरुआत का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘ (मेरे बाबा) नेमरा गांव के उस छोटे से घर में जन्मे जहां गरीबी थी, भूख थी पर हिम्मत थी। बचपन में ही उन्होंने (शिबू सोरेन ने) अपने पिता को खो दिया। जमींदारी के शोषण ने उन्हें एक ऐसी आग दी जिसने उन्हें पूरी जिंदगी संघर्षशील बना दिया।'' हेमंत ने कहा कि उन्होंने अपने पिता को हल चलाते हुए, लोगों के बीच बैठते हुए देखा और वह सिर्फ भाषण नहीं देते थे बल्कि लोगों का दुःख जीते थे।
‘बाबा, आपको लोग दिशोम गुरु क्यों कहते हैं?' बेटे हेमंत के पूछने पर शिबू सोरेन ने दिया ये जवाब
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘बचपन में जब मैं उनसे पूछता था: ‘बाबा, आपको लोग दिशोम गुरु क्यों कहते हैं?' तो वे मुस्कुराकर कहते: ‘क्योंकि बेटा, मैंने सिर्फ उनका दुख समझा और उनकी लड़ाई अपनी बना ली।' यह उपाधि न किसी किताब में लिखी गई थी, न संसद ने दी। यह झारखंड की जनता के दिलों से निकली थी।'' उन्होंने कहा कि ‘दिशोम' का मतलब समाज और ‘गुरु' का मतलब रास्ता दिखाने वाला होता है और ‘‘सच कहूं तो बाबा ने हमें सिर्फ रास्ता नहीं दिखाया, हमें चलना सिखाया।''
हेमंत ने आगे कहा, ‘‘बचपन में मैंने उन्हें सिर्फ संघर्ष करते देखा, बड़े बड़ों से टक्कर लेते देखा। मैं डरता था पर बाबा कभी नहीं डरे। वह कहते थे: ‘अगर अन्याय के खिलाफ खड़ा होना अपराध है, तो मैं बार-बार दोषी बनूंगा।' बाबा का संघर्ष कोई किताब नहीं समझा सकती। वह उनके पसीने में, उनकी आवाज में और उनकी चप्पल से ढकी फटी एड़ी में था।'' मुख्यमंत्री ने कहा कि जब झारखंड राज्य बना तो उनके पिता का सपना साकार हुआ लेकिन उन्होंने सत्ता को कभी उपलब्धि नहीं माना। उन्होंने कहा, ‘‘आज बाबा नहीं हैं पर उनकी आवाज मेरे भीतर गूंज रही है। मैंने आपसे लड़ना सीखा बाबा, झुकना नहीं। मैंने आपसे, बिना किसी स्वार्थ के, झारखंड से प्रेम करना सीखा।'' हेमंत ने कहा कि भले ही अब उनके पिता जीवित नहीं हैं लेकिन झारखंड की हर चीज में उनकी छाप और मौजूदगी है। उन्होंने कहा, ‘‘बाबा, अब आप आराम कीजिए। आपने अपना धर्म निभा दिया। अब हमें चलना है, आपके नक्शे-कदम पर।''