Lok Sabha Elections: काराकाट में उपेन्द्र कुशवाहा, राजाराम सिंह और पवन सिंह में ‘किंग' बनने की जंग

Edited By Nitika, Updated: 29 May, 2024 01:51 PM

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बिहार की कारकाट संसदीय सीट पर राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी (भाकपा-माले) प्रत्याशी राजाराम सिंह में होने वाली चुनावी जंग के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बागी...

 

पटनाः बिहार की कारकाट संसदीय सीट पर राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी (भाकपा-माले) प्रत्याशी राजाराम सिंह में होने वाली चुनावी जंग के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बागी भोजपुरी सिनेमा के पावर स्टार पवन सिंह के सियासी रणभूमि में उतरे जाने से राजनीतिक लड़ाई रोचक हो गई है। धान का कटोरा कहे जाने वाले काराकाट, भोजपुरी और मगही की मिश्रित संस्कृति वाला यह इकलौता संसदीय क्षेत्र है, जिसे सोन की धार दो हिस्सों में बांटती है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के बैनर तले रालोमो अध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा काराकाट से चुनावी समर में उतरे।

इंडिया गठबंधन के घटक भाकपा-माले ने यहां पूर्व विधायक राजाराम सिंह को प्रत्याशी बना दिया। भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार पवन सिंह को भाजपा ने पश्चिम बंगाल के आसनसोल से प्रत्याशी बनाया था, लेकिन उन्होंने आसनसोल से चुनाव लड़ने से मना कर दिया। पवन सिंह ने भाजपा से बगावत कर दी और निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर काराकाट की सियासी रणभूमि में उतर आए। पवन सिंह के निर्दलीय उतरने से काराकाट की सियासी लड़ाई रोचक बन गई है। काराकाट संसदीय क्षेत्र वर्ष 2009 में अस्तित्व में आया। यह क्षेत्र चावल उत्पादन के लिए जाना जाता है। इस क्षेत्र में लगभग 400 राइस मिलें हैं, इसलिए इसे ‘धान का कटोरा' कहा जाता है। इसके पूर्व यह विक्रमगंज लोकसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। विक्रमगंज लोकसभा क्षेत्र में वर्ष 1962 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के रामसुभग सिंह ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के शिवपूजन शास्त्री को शिकस्त दी।

इससे पूर्व रामसुभग सिंह वर्ष 1952 में शाहाबाद साउथ, वर्ष 1957 में सासाराम से सांसद बने थे। वर्ष 1967 में वह बक्सर संसदीय सीट से सांसद बने। वह केंद्रीय खाद्य और कृषि राज्य मंत्री, केंद्रीय सामाजिक सुरक्षा और कुटीर उद्योग मंत्री, केंद्रीय रेल राज्य मंत्री, केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री, केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री, केंद्रीय रेल मंत्री भी रहे। वर्ष 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के शिवपूजन शास्त्री सांसद बने। वर्ष 1971 में कांग्रेस के शिवपूजन शास्त्री ने फिर जीत हासिल की। वर्ष 1977 में भारतीय लोकदल के राम अवधेश सिंह ने पूर्व सांसद कांग्रेस प्रत्याशी रामसुभग सिंह को पराजित कर दिया। वर्ष 1980 में इंदिरा कांग्रेस के तपेश्वर सिंह ने जनता पार्टी (सेक्लयूलर) के राम अवधेश सिंह को पराजित कर दिया। तपेश्वर सिंह को सहकारिता सम्राट कहा जाता है। वह नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (नफेड) और बिस्कोमान समेत कई सहकारी संघ के अध्यक्ष थे। उन्होंने विक्रमगंज में इंदु तपेश्वर सिंह महिला महाविद्यालय की स्थापना की है।

वर्ष 1984 में कांग्रेस के तपेश्वर सिंह ने लोकदल के राम अवधेश सिंह को फिर मात दी। वर्ष 1989 में जनता दल प्रत्याशी कोचस के पूर्व मुखिया राम प्रसाद सिंह ने कांग्रेस के तपेश्वर सिंह को पराजित किया। इंडियन पीपुल्स फ्रंट (वर्तमान में भाकपा माले) के बच्चन सिंह तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 1991 में जनता दल के राम प्रसाद सिंह फिर सांसद बने। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व सांसद तपेश्वर सिंह की पत्नी इंदु देवी को पराजित किया। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के गोपाल नारायण सिंह तीसरे नंबर पर रहे। भाजपा के सिंह राज्यसभा सांसद और प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं। राम प्रसाद सिंह वर्ष 1999 में आरा के सांसद भी रहे हैं। वर्ष 1996 में जनता दल की कांति सिंह ने समता पार्टी के वशिष्ठ नारायण सिंह को शिकस्त दी।

वशिष्ठ नारायण सिंह जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद भी रहे हैं। भाकपा माले के बच्चन सिंह तीसरे जबकि बहुजन समाज पार्टी के महाबली सिंह चौथे नंबर पर रहे। वर्ष 1998 में समता पार्टी के वशिष्ठ नारायण सिंह ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की कांति सिंह को पराजित कर दिया। वर्ष 1999 में बाजी पलट गई। राजद की कांति सिंह ने जदयू के वशिष्ठ नारायण सिंह को पराजित कर दिया। वर्ष 2004 में पूर्व सांसद तपेश्वर सिंह के पुत्र जदयू प्रत्याशी अजीत सिंह ने राजद प्रत्याशी पूर्व सांसद राम प्रसाद सिंह को मात दी। वर्ष 2007 में सीवान में सड़क दुर्घटना में अजीत सिंह का निधन हो गया। सिंह के निधन के बाद वर्ष 2008 में विक्रमगंज संसदीय सीट पर उपचुनाव करवाए गए।

पूर्व सांसद अजीत सिंह की पत्नी जदयू प्रत्याशी मीना सिंह ने राजद प्रत्याशी पूर्व विधायक अशोक कुमार कुशवाहा को पराजित किया। मीना सिंह वर्ष 2009 में आरा की सांसद रही हैं। वर्ष 2008 में परिसीमन के बाद विक्रमगंज लोकसभा क्षेत्र विलोपित हो गया। इस संसदीय सीट में भोजपुर जिले के पीरो के अलावा रोहतास जिले का काराकाट, बिक्रमगंज, नोखा, दिनारा एवं डेहरी विधान सभा क्षेत्र शामिल थे। नए परिसीमन के बाद बिक्रमगंज की जगह काराकाट लोकसभा क्षेत्र का गठन हुआ, जिसमें रोहतास जिले का नोखा, डेहरी, काराकाट तथा औरंगाबाद जिले का गोह, ओबरा, नवीनगर विधानसभा क्षेत्र शामिल किया गया। वर्ष 2009 में काराकाट संसदीय सीट पर हुये पहले आम चुनाव में जदयू के महाबली सिंह ने राजद की कांति सिंह को पराजित किया।

कांग्रेस के अवधेश कुमार सिंह तीसरे जबकि भाकपा माले के राजाराम सिंह चौथे नंबर पर रहे। वर्ष 2014 में राजग में शामिल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री राजद प्रत्याशी कांति सिंह को मात दे दी। जदयू के महाबली सिंह तीसरे नंबर, जबकि भाकपा माले के राजाराम सिंह पांचवे नंबर पर रहे। वर्ष 2019 में जदयू के महाबली सिह ने रालोसपा के उपेन्द्र कुशवाहा को पराजित कर दिया। भाकपा माले के राजाराम सिंह तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 2024 के आम चुनाव में काराकाट सीट से जदयू ने अपने निवर्तमान सांसद महाबली सिंह को बेटिकट कर दिया है। राजग में सीटों में तालमेल के तहत काराकाट सीट राष्ट्रीय लोक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा को मिली है। भाकपा माले ने यहां राजाराम सिंह को प्रत्याशी बनाया है। वह 1995 और 2000 में औरंगाबाद जिले के ओबरा से दो बार विधायक भी रह चुके हैं।

काराकाट संसदीय सीट पर उपेन्द्र कुशवाहा और राजाराम सिंह की चुनावी जंग दो बार हो चुकी हैं। इस बार भी उपेन्द्र कुशवाहा और राजाराम सिंह आमने-सामने हैं। इन सबके बीच भोजपुरी सिनेमा के पावर स्टार कहे जाने वाले पवन सिंह ने काराकाट सीट से निर्दलीय उम्मीदवार उतरकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। पवन सिंह राजग के अधिकृत प्रत्याशी के उपेन्द्र कुशवाहा विरुद्ध काराकाट से चुनाव लड़ रहे हैं। इसी को लेकर पवन सिंह को भाजपा ने निष्काषित कर दिया है। उपेन्द्र कुशवाहा ने वर्ष 2014 में काराकाट संसदीय सीट से चुनाव जीता था, उस समय वह राजग में शामिल थे, हालांकि उस चुनाव में जदयू, राजग से अलग थी। जदयू के महाबली सिंह तीसरे नंबर पर चले गये थे। वर्ष 2019 में कुशवाहा, राजग से नाता तोड़ महागठबंधन में शामिल हो गए, तब उन्हें जदयू के महाबली सिंह ने पराजित कर दिया। भाकपा माले के राजा राम सिंह तीसरे नंबर पर रहे थे। इस बार के चुनाव में सियासी समीकरण बदल गए हैं।

उपेन्द्र कुशवाहा एक बार फिर राजग के खेमे में आ गए और उसी के सहारे अपनी चुनावी वैतारणी पार करने में लगे हैं, वहीं भाकपा माले इस बार इंडिया गठबंधन में शामिल है। वामदल एकजुट है और उसे राजद के साथ ही कांग्रेस का भी समर्थन प्राप्त है। हालांकि इस बार उपेन्द्र कुशवाहा को भाजपा के साथ ही जदयू का भी समर्थन मिलेगा। जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और चिराग पासवान की पार्टी लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) का भी समर्थन उनके साथ है। उपेन्द्र कुशवाहा वर्ष 2000 में पहली बार जन्दाहा से विधायक बने। उपेंद्र कुशवाहा लोकसभा, राज्य सभा, विधान परिषद और विधान सभा के सदस्य रह चुके हैं। भाजपा के बागी पवन सिंह ने काराकाट के निर्दलीय प्रत्याशी उतरने से रालोमो प्रत्याशी उपेन्द्र कुशवाहा और भाकपा माले के राजाराम सिंह दोनों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है।

काराकाट सीट से पवन सिंह की मां प्रतिमा देवी ने भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन किया था, हालांकि उन्होने बाद में नामांकन वापस ले लिया।काराकाट लोकसभा क्षेत्र बिहार में एक ऐसा चुनावी समर क्षेत्र बन गया है, जिसमें राजनीति के बड़े धुरंधरों को टक्कर देने के लिए भोजपुरी के गायक-अभिनेता पवन सिंह उतर चुके हैं। पवन सिंह के गाए गीत भोजपुरी भाषी और मगही इलाके के घर-घर में बजा करते हैं। उनके कार्यक्रमों में भारी संख्या में भीड़ देखने को मिलती है। पवन सिंह के लोकप्रिय सॉन्ग‘तू लगावेलू जब लिपिस्टिक-हिलेला आरा डिस्ट्रिक्ट'के बिना भोजपुरी का सांस्कृतिक कार्यक्रम पूरा नहीं होता। निर्दलीय प्रत्याशी पवन सिंह ने अपने चुनावी प्रचार में फिल्मी सितारों का जमावड़ा लगा दिया है।भोजपुरी स्टार अरविंद अकेला कल्लू काराकाट में पवन सिंह के साथ घूम रहे हैं। पवन सिंह की जनसभा में भोजपुरी के बड़े स्टार काजल राघवानी, पाखी हेगड़े, आस्था सिंह, रितेश पांडे, अनुपमा यादव, सिल्की राज समेत कई कलाकार जुटे थे।पवन सिंह की जनसभा में भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार खेसारी लाल यादव भी पहुंचे। जनसभा को संबोधित करते हुए पवन सिंह ने वादा किया कि जीतने के बाद काराकाट में फिल्म सिटी बनाएंगे। काराकाट में अपना घर बनाऊंगा, जनता की सेवा करूंगा। काराकाट की जनता का साथ रहा तो सांसद बनने से मुझे कोई नहीं रोकेगा। उन्होंने कहा कि माई-बहिन के आशीर्वाद मिली त हम जरूर जीत जाइम, जनता-जनार्दन हमार भगवान हवन, हमरा के आपन बेटा समझ के वोट दे के जिताईजा। पहले काराकाट का चर्चा कितना कम था। हमारा चुनाव के घोषणा से सभी का हेलीकॉप्टर आने लगा।

पवन सिंह ने दावा करते हुए कहा कि उनका चुनावी अभियान बहुत अच्छा चल रहा है। उन्होंने कहा कि मैं काराकाट में लड़ाई करने नहीं आया हूं। चुनावी माहौल है और मुझे हर जगह से आशीर्वाद मिल रहा है। मैं लड़ाई की बात ही नहीं करूंगा। जैसे जनता का आशीर्वाद मिल रहा है, वैसे सबका आशीर्वाद मिलेगा। खेसारी लाल यादव ने कहा कि एक जून को आप सब अपने एक-एक कीमती वोट देकर पवन भैया को विजयी बनाकर संसद में भेजें, जिससे आपका बेटा,आपका भाई सदन में जाकर आपकी आवाजों को उठाएं। एक दु लाख से ना... हिंदुस्तान में सबसे अधिक वोट से पवन सिंह के जितावे के बा। हमार भैया के जितावे के बा... इ काराकाट के विकास करिहन, जिनका गाना देश ही नहीं विदेश में भी बजता हो, यदि वह काराकाट के सांसद बने तो सोचिए काराकाट को कितनी ऊंचाई तक पहुंचा देंगे। नेता तो बहुत मिलते हैं, लेकिन पवन सिंह जैसे बेटा बहुत कम मिलते हैं। पवन सिंह जीतेंगे तो पूरा भोजपुरी समाज जीतेगा।

काराकाट संसदीय सीट में यादव, कुशवाहा और राजपूत वोटरों की संख्या आस-पास है। तीनों जातियों के यहां लगभग दो से तीन लाख वोट हैं। मुसलमान, वैश्य, ब्राह्मण और भूमिहार मतदाता भी अच्छी खासी संख्या में हैं। बाकी वोटरों में अति पिछड़ों जातियों की सबसे बड़ी हिस्सेदारी हैं। दलित वोटर भी ठीक संख्या में हैं। वैश्य, चंद्रवंशी, मल्लाह, अतिपिछड़ा वर्ग और दलित आदि परिणाम को निर्णायक मोड़ देते रहे हैं। रालोमो, भाकपा माले और निर्दलीय प्रत्याशी पवन सिंह तीनों अपने कोर वोटरों को एकजुट करने में लगे हैं। यह क्षेत्र कुशवाहा बहुल है, दोनों प्रमुख गठबंधन के उम्मीदवार इसी समुदाय के हैं। मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने वाले पवन सहिं राजपूत हैं। सेंधमारी के प्रयास में सभी प्रत्याशी दिन-रात लगे हुए हैं। डेहरी में पीएम मोदी की सभा के दिन ही पवन सिंह ने जनसभा में फिल्मी सितारों को उतारकर उन्होंने अपनी मजबूत उपस्थिति का संकेत दिया था।देखना दिलचस्प होगा पवन सिंह भीड़ को वोट में कितना बदल पाते हैं।

मनोज तिवारी, रवि किशन हो या फिर दिनेश लाल निरहुआ सांसद है, लेकिन वे सभी अपने पहले चुनाव मे हार का स्वाद चख चुके हैं। देखने वाली बात होगी कि पवन सिंह इस मिथक को तोड़ेंगे या फिर इस ट्रैक रिकॉर्ड उनका भी नाम जुड़ा जाएगा। राजग के कोर वोट में बिखराव को रोकने के लिए उपेंद्र कुशवाहा के समर्थन में डेहरी में पीएम मोदी तो दाउदनगर में अमित शाह आ चुके हैं। राजपूत नेताओं को काराकाट में जनसंपर्क करने को कहा गया है। काराकाट में हुए पिछले दो लोकसभा चुनावों में मिले वोटों का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि उपेंद्र कुशवाहा के फिक्स वोट हैं, जो उन्हें हर हाल में मिलते ही हैं। भाकपा माले प्रत्याशी राजाराम सिंह के पक्ष में राजद नेता तेजस्वी यादव और विकासशील इंसान पार्टी सुप्रीमों मुकेश सहनी और भाकपा माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य की कई प्रखंडों में सभा हो चुकी है। माले जूलूस निकाल वोटरों को एकजुट करने में जुटा है। मतदाता यह भांपने में लगे हैं कौन कितना वजनी है। कोर वोटरों को एकजुट रखने और वोट की सेंधमारी करने में जो सफल होगा, वही काराकाट का बादशाह बनेगा।

पहले ऐसा समझा जा रहा था कि उपेंद्र कुशवाहा को ही हराने के लिए पवन सिंह को काराकाट में भाजपा ने उतारा है, लेकिन नरेंद्र मोदी ने रैली करके स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा मजबूती के साथ उपेंद्र कुशवाहा के साथ है। अब मोदी की रैली होने के बाद भाजपा के के लाभार्थी वोट और कट्टर भाजपा समर्थकों के वोट तो पवन सिंह को मिलने से रहे, हां अपनी जाति के राजपूत वोट उन्हें जरूर मिलेंगे, इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती। उपेंद्र कुशवाहा को यह नुकसान तो झेलना पड़ेगा। पवन सिंह निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं और उनके सामने उपेंद्र कुशवाहा जैसा कद्दावर नेता है, जिसके साथ पीएम नरेंद्र मोदी और केन्द्रीय गृहमंत्री शाह भी साथ हैं। दोनों ने उपेन्द्र कुशवाहा के लिए सभा करके यह भी जता दिया है कि किसी साजिश के तहत पवन सिंह को यहां नहीं लाया गया। भाजपा पूरी तरह से उपेंद्र कुशवाहा के साथ है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काराकाट लोकसभा क्षेत्र के तहत रोहतास जिले के डेहरी में राजग की की चुनावी रैली को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि यह सांसद बनाने का नहीं, बल्कि पीएम बनाने का चुनाव है। पीएम मोदी ने कहा कि उन्होंने गरीब लोगों को गैस सिलेंडर देने की गारंटी पूरी की। इस बार मुझे गैस सिलेंडर पर वोट भी चाहिए। काराकाट से राजग प्रत्याशी उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोमो का चुनाव चिह्न गैस सिलेंडर है। कुशवाहा को दिया हुआ वोट मोदी को मिलेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, इस चुनाव में उनका वोट बेकार नहीं जाना चाहिए। इसलिए जिसकी सरकार बनने वाली है, उसे ही वोट करिए। उपेन्द्र कुशवाहा को जिताएंगे तो केंद्र में मोदी की जीत होती। एक-एक वोट मेरा हाथ मजबूत करेगा।

पीएम मोदी ने काराकाट रैली में भोजपुरी स्टार पवन सिंह का एक बार भी जिक्र नहीं किया। काराकाट में सभा करने आए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि उपेंद्र कुशवाहा एनडीए के बड़े नेता हैं और वोटर बिना किंतु-परंतु के उनको संसद भेजें, भाजपा उनको बड़ा आदमी बनाएगी। शाह ने लोगों से काराकाट संसदीय सीट से एनडीए उम्मीदवार के लिए वोट करने का आग्रह करते हुए कहा, एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में पड़ा हर वोट मोदी को फिर से प्रधान मंत्री बनने में मदद करेगा। रालोमो उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा लगातार चुनाव प्रचार प्रसार कर रहे हैं। उन्होंने कहा है काराकाट में माहौल एकदम चकाचक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोजी जी के प्रति आकर्षण हैं। उन्होंने 10 वर्षों में काम करके बताया है। जनता की सेवा की है, इसलिए एनडीए का सब जगह चकाचक है। चारों तरफ एनडीए की लहर है। प्रधानमंत्री जी के प्रति आकर्षण है। सभी वर्गों के लोग पीएम की ओर मुखातिव हैं। 2024 की लड़ाई में एनडीए का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। नरेंद्र मोदी पर लोगों को भरोसा है, जहां पीएम मोदी की गारंटी हो वहां उनके प्रत्याशी को कोई हरा नहीं सकता है। काराकाट में कोई टक्कर ही नहीं है। जनता पूरी तरह से मोदी जी के साथ है।

कुशवाहा समाज क्वांटिटी नहीं क्वालिटी देख रहा है और उसके लिए सिर्फ राजग गठबंधन है। मैं कुशवाहा समाज का नेता नहीं हूं, मैं सभी वर्ग के लोगों की सेवा करता हूं। भाकपा माले उम्मीदवार राजाराम सिंह कुशवाहा ने कहा है कि इंडिया एलायंस-महागठबंधन के दल पूरी तरह एकजुट हैं। हमारे टक्कर में कोई नहीं है और काराकाट में चुनाव महागठबंधन जीत रहा है। उन्होंने दावा किया है कि उपेंद्र कुशवाहा और पवन सिंह लड़ाई के मैदान में भी नहीं हैं। पवन सिंह शो करने वाले हैं। शो करते हैं। परदे पर दिखते है। धरातल पर नहीं दिखते हैं। चुनावी धरातल पर भी जनता उन्हें टिकने नहीं देगी। महागठबंधन का चुनाव जीतना तय है लेकिन जनता को एनडीए के तिकड़मों पर ध्यान रखना है। वे आसानी से नहीं मानने वाले लोग है। हर तिकड़म आजमाएंगे, जिनसे जनता को सावधान रहना है। देश में लोकतंत्र और संविधान का सवाल है। पहला एजेंडा लोकतंत्र और संविधान बचाने का है। दूसरा एजेंडा खेती को कॉर्पोरेट से बचाना है, खेती किसानों के हाथ में रहनी चाहिए। तीसरा एजेंडा है कि ऐसी सरकार को चाहिए वो नौजवान जो पीढ़ी के लिए, सम्मानजनक रोजगार की व्यवस्था कर सके। इसके साथ ही देश मे महंगाई कम हो, लोगों में एकता भाईचारा हो। फसलों को वाजिब दाम मिले।

काराकाट लोकसभा सीट पर चुनावी समीकरण समय के साथ-साथ रंग बदलते जा रहा है। शुरुआती दौर में काराकाट लोकसभा का चुनाव उपेंद्र कुशवाहा और राजाराम सिंह के बीच था, लेकिन भोजपुरी के स्टार गायक पवन सिंह की इंट्री ने उपेंद्र कुशवाहा की लड़ाई को थोड़ा कठिन बना दिया और काराकाट लोकसभा की लड़ाई त्रिकोणीय राह पर आ गया। अब असदुद्दीन ओवैसी ने काराकाट में अपनी पार्टी ऑल इंडिया मजलिस ए इतेहादुल मुसलमिन के टिकट पर प्रियंका भारती को उतार कर खेल को दिलचस्प बना दिया है। वह नासरीगंज पश्चिम की जिला पार्षद हैं। निषाद समाज से आने वाली प्रियंका भारती का अपना वोट बैंक है। काराकाट लोकसभा में निषाद मतों की संख्या करीब 1.5 लाख है। ओवैसी की पार्टी के होने के चलते प्रियंका चौधरी कुछ मुस्लिम वोट भी मिल सकते हैं। हालांकि इसके बावजूद उपेंद्र कुशवाहा का जितना नुकसान पवन सिंह के राजपूत वोट कर रहे हैं उतना नुकसान भाकपा माले के राजा राम कुशवाहा का मुसलमान नहीं करेंगे। रालोमो प्रत्याशी उपेंद्र कुशवाहा तीसरी बार काराकाट से चुनाव लड़ रहे हैं। एक बार उन्हें जीत और एक बार हार भी मिली है। भाकपा माले प्रत्याशी राजाराम सिंह यहां चौथी बार चुनाव लड़ रहे हैं और तीनों बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा है। निर्दलीय प्रत्याश पवन सिंह पहली बार लोकसभा के रण में उतरे हैं।दो बार के काराकाट के सांसद महाबली सिंह चुनावी परिदृश्य से ओझल हैं। काराकाट संसदीय क्षेत्र में सभी प्रत्याशी सियासी फसल काटने के लिए दम लगा रहे हैं। परिसीमन के बाद इस सीट पर 2009 से अब तक हुए तीन चुनावों में राजग उम्मीदवार ने जीत हासिल की है, महागठबंधन का यहां खाता नहीं खुला है।

राजग की जीत में हमेशा असरदार राजपूत जाति के वोटर रहे हैं। ऐसे में चुनावी दंगल के निर्दलीय कूदे पवन सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा की टेंशन बढ़ा रखी है। इलाके में पवन सिंह के फिल्मी लटके-झटके का जादू युवाओं के सर चढ़कर बोल रहा है। काराकाट क्षेत्र में कुनबों की चर्चा और जीत-हार का जोड़-घटाव, गुणा-भाग हर खेमे के लोगों की जुबां पर है। माना जा रहा है कि जो खास कुनबों को साधेगा, वही जीत का सेहरा अपने सर पर बांधेगा। जिस इलाके में खास कुनबे का दबदबा है, वहां उस कुनबे के नेताओं को घुमाया जा रहा है, मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए मनुहार किया जा रहा है। काराकाट यादव तथा कुशवाहा बहुल संसदीय क्षेत्र है। वही सवर्ण एवं मुस्लिम वोटर की यहां अच्छी खासी संख्या है। अति पिछड़ा में मल्लाह की वोट काफी है। दलित-महादलित वोटर भी यहां निर्णायक भूमिका में होते हैं। इस सीट से कुशवाहा तथा यादव तथा राजपूत जाति के वोटर ही यहां अपनी अपनी राजनीतिक साधते रहे हैं। काराकाट लोकसभा से भाकपा माले उम्मीदवार राजा राम कुशवाहा और रालोमो के राष्टीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के आमने-सामने हो जाने से राजग के कोर वोट कुशवाहा में भी सेंधमारी का डर कायम हो गया है। हालंकि कुशवाहा को भाजपा का कैडर वोट माना जाता है। अब वह वाम दलों से कितना प्रभावित होता है, यह तो परिणाम के बाद पता चलेगा। लेकिन फिलहाल कुशवाहा मतों में विभाजन की आशंका तो है ही।

काराकाट संसदीय सीट के अंतर्गत छह विधानसभा सीटें हैं। काराकाट लोकसभा क्षेत्र दो जिला रोहतास और औरंगाबाद में फैला है। रोहतास जलिे में डेहरी, नोखा और काराकाट विधानसभा क्षेत्र आते हैं। औरंगाबाद जिले में गोह, ओबरा और नबीनगर विधानसभा क्षेत्र शामिल है। डेहरी, नोखा, गोह, ओबरा और नबीनगर में राजद का जबकि काराकाट में भाकपा माले का कब्जा है। सभी छह विधानसभा क्षेत्र में इंडिया गठबंधन का कब्जा है, राजग का किसी सीट पर कब्जा नहीं है। देखना दिलचस्प होगा कि काराकाट की सियासी लड़ाई में भाकपा माले के राजाराम सिंह ‘राजा' बनते हैं, या फिर रालोमो के उपेन्द्र कुशवाहा या फिर फिर पवन सिंह यहां अपना ‘पावर' चला पाते हैं। काराकाट संसदीय सीट पर सभी प्रत्याशी जीत के लिये जोर-आजमाइश कर रहे हैं। काराकाट की आम जनता पर जिसका ‘पावर' चलेगा वहीं काराकाट का ‘किंग' बनेगा।

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