सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 'बिहार सरकार को अनुसूचित जातियों की सूची में छेड़छाड़ करने का कोई अधिकार नहीं'

Edited By Swati Sharma, Updated: 17 Jul, 2024 11:54 AM

the government has no right to tamper with the list of scheduled castes

उच्चतम न्यायालय ने बिहार सरकार की 2015 की उस अधिसूचना को रद्द कर दिया है, जिसके तहत उसने अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) से 'तांती-तंतवा' जाति को हटाकर अनुसूचित जातियों की सूची में 'पान/सावासी' जाति के साथ मिला दिया था।

नई दिल्ली/पटनाः उच्चतम न्यायालय ने बिहार सरकार की 2015 की उस अधिसूचना को रद्द कर दिया है, जिसके तहत उसने अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) से 'तांती-तंतवा' जाति को हटाकर अनुसूचित जातियों की सूची में 'पान/सावासी' जाति के साथ मिला दिया था।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि राज्य सरकार के पास संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जातियों की सूची में छेड़छाड़ करने का कोई अधिकार या क्षमता नहीं है। पीठ ने कहा कि अधिसूचना के खंड-1 के तहत निर्दिष्ट अनुसूचित जातियों की सूची में केवल संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा ही संशोधन या परिवर्तन किया जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 341 के अनुसार न तो केंद्र सरकार और न ही राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित कानून के बिना धारा-एक के तहत जारी अधिसूचना में कोई संशोधन या परिवर्तन कर सकते हैं, जिसमें राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों के संबंध में जातियों को निर्दिष्ट किया गया हो। पीठ ने सोमवार को सुनाए अपने फैसले में कहा, ‘‘हमें यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि एक जुलाई, 2015 का संकल्प स्पष्ट रूप से अवैध और त्रुटिपूर्ण था, क्योंकि राज्य सरकार के पास संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत प्रकाशित अनुसूचित जातियों की सूची में छेड़छाड़ करने की कोई क्षमता/शक्ति नहीं थी।''

'बिहार सरकार अच्छी तरह जानती थी कि...'
शीर्ष अदालत ने कहा कि बिहार सरकार अच्छी तरह जानती थी कि उसके पास कोई अधिकार नहीं है और इसलिए उसने 2011 में 'तांती-तंतवा' को 'पान, सावासी, पंर' के पर्याय के रूप में अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करने के लिए केंद्र को अपना अनुरोध भेजा था। पीठ ने कहा, "उक्त अनुरोध स्वीकार नहीं किया गया और आगे की टिप्पणियों/औचित्य/समीक्षा के लिए वापस कर दिया गया। इसे अनदेखा करते हुए, राज्य सरकार ने एक जुलाई, 2015 को परिपत्र जारी किया।" पीठ ने फैसला सुनाया, ‘‘एक जुलाई, 2015 का विवादित प्रस्ताव रद्द किया जाता है।'' इसने कहा कि राज्य की कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण और संवैधानिक प्रावधानों के विरुद्ध पाई गई है और राज्य को उसके द्वारा की गई शरारत के लिए माफ नहीं किया जा सकता। इसने कहा, "संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत सूचियों में शामिल अनुसूचित जातियों के सदस्यों को वंचित करना एक गंभीर मुद्दा है। कोई भी व्यक्ति जो इस सूची के योग्य नहीं है और इसके अंतर्गत नहीं आता है, अगर राज्य सरकार द्वारा जानबूझकर और शरारती कारणों से ऐसा लाभ दिया जाता है, तो वह अनुसूचित जातियों के सदस्यों का लाभ नहीं छीन सकता है।"

शीर्ष अदालत ने कहा कि चूंकि उसे राज्य सरकार के आचरण में दोष मिला है, न कि 'तांती-तंतवा' समुदाय के किसी व्यक्तिगत सदस्य में, इसलिए वह यह निर्देश नहीं देना चाहती कि उनकी सेवाएं समाप्त की जा सकती हैं या अवैध नियुक्तियों या अन्य लाभों की वसूली की जा सकती है। 

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