Edited By Khushi, Updated: 23 Aug, 2024 12:21 PM
झारखंड में सरायकेला-खरसावां जिले के सोनारी हवाई अड्डे से उड़ान भरने के बाद लापता हुए 2 सीट वाले विमान के दूसरे पायलट का शव भी चांडिल डैम से बरामद कर लिया गया है। नेवी और NDRF के संयुक्त अभियान से 56 घंटे बाद दोनों शव को चांडिल डैम से निकाल लिया गया...
जमशेदपुर: झारखंड में सरायकेला-खरसावां जिले के सोनारी हवाई अड्डे से उड़ान भरने के बाद लापता हुए 2 सीट वाले विमान के दूसरे पायलट का शव भी चांडिल डैम से बरामद कर लिया गया है। नेवी और NDRF के संयुक्त अभियान से 56 घंटे बाद दोनों शव को चांडिल डैम से निकाल लिया गया है।
बता दें कि बीते गुरुवार को ही एनडीआरएफ की टीम ने सुबह 9 बजे पहला शव बरामद कर लिया था जिसे 11 बजे बाहर निकाला गया था। बरामद शव ट्रेनी पायलट शुब्रा दीप दत्ता का था और दूसरा शव शाम 5 बजे निकाला गया। बरामद किया गये दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए सरायकेला अस्पताल भेज दिया गया है। रेस्क्यू ऑपरेशन को लीड कर रही चांडिल एसडीओ शुभ्रा रानी ने बताया कि शव बरामद होने के बाद एयर क्राफ्ट के बरामद होने तक सर्च ऑपरेशन जारी रहेगा। वही एनडीआरएफ के डिप्टी कमांडेंट ने कहा हमने अपना काम कर दिया है जो बड़ी चुनौती थी।
ट्रेनी के कैप्टन जीत शत्रु आनंद मूल रूप से पटना के जक्कनपुर थाना क्षेत्र में मीठापुर पुरंदरपुर गांव के निवासी हैं। उनकी उम्र सिर्फ 30 साल है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कैप्टन जीत शत्रु आनंद महज तीन दिन पहले सोनारी स्थित अलकेमिस्ट एविएशन प्रा.लि. से जुड़े थे। उनके पिता राम बालक प्रसाद आरपीएएफ से सेवानिवृत्त हैं। उनके बड़े भाई का नाम किशोर आनंद हैं। उन्होंने एविएशन कंपनी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि 20 अगस्त को सुबह 11.30 के करीब एयरक्राफ्ट का एटीसी से संपर्क टूट गया था, लेकिन एविएशन वालों ने शाम चार बजे के बाद इसकी सूचना जिला प्रशासन को दी। उनका आरोप है कि एविएशन वालों ने एयरक्राफ्ट लापता होने की सूचना उनके परिवार को भी नहीं दी। इसकी जानकारी पटना में एक परिचित ने दी थी। यह सूचना मिलते ही वह अपनी मां के साथ सोनारी एयरपोर्ट स्थित एविएशन के दफ्तर में पहुंचे। तब वहां ट्रेनी पायलट सुब्रोदीप के परिजनों को ऑफिस में जाने नहीं दिया जा रहा था। उन्होंने कहा कि हद तो ये है कि एविएशन कंपनी के लोगों ने न कोई सूचना दी और न ही किसी तरह की मानवीय मदद की। जिला प्रशासन के किसी कर्मी की मदद से उनका परिवार चांडिल डैम तक पहुंचा। यहां के ट्रेनिंग विमानों में सुरक्षा का कोई व्यवस्था नहीं था। न ही पैराशूट ही था अगर होता तो जान बच जाती।