कलाम को याद कर बोले एस सिद्धार्थ: अगर शिक्षक संकल्प लें, तो हर बच्चा बन सकता है कल का राष्ट्रपति

Edited By Ramanjot, Updated: 27 Jul, 2025 08:58 PM

dr s siddharth education message

शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस सिद्धार्थ ने रविवार को पूर्व राष्ट्रपति डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि पर बिहार के शिक्षक समुदाय के नाम प्रेरणा संदेश जारी किया है।

पटना: शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस सिद्धार्थ ने रविवार को पूर्व राष्ट्रपति डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि पर बिहार के शिक्षक समुदाय के नाम प्रेरणा संदेश जारी किया है। उन्होंने अपने पत्र में शिक्षकों से आग्रह किया है कि वे न केवल अपने बच्चों को विषय का बोध कराएं, बल्कि बच्चों के मन में उत्सुकता, जिज्ञासा और स्वप्न देखने की शक्ति भरें। आज का छात्र कल का वैज्ञानिक, कल का नीति निर्माता, मिसाइल मैन, राष्ट्रपति और कल का अब्दुल कलाम होगा, यदि उसे एक सशक्त, संवेदनशील और प्रेरणादायक शिक्षक का साथ मिल जाए।

उन्होंने लिखा है प्रिय शिक्षकगण, हम भारत रत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि पर उनके महान जीवन, विचार और कार्यों को कृतज्ञता के साथ स्मरण करते हैं। यह हमारे लिए केवल एक श्रद्धांजलि का दिन नहीं बल्कि प्रत्येक शिक्षक के लिए आत्मावलोकन का एक अवसर है। डॉ. कलाम जीवन भर एक शिक्षक बने रहना चाहते थे। वे मानते थे कि राष्ट्र निर्माण का सबसे सशक्त माध्यम विद्यालय है, और सबसे महत्वपूर्ण शिल्पकार "शिक्षक"। उन्होंने कहा था, “शिक्षण एक पवित्र पेशा है, जो चरित्र के साथ व्यक्ति के भविष्य का निर्माण करते हैं। यदि लोग मुझे एक शिक्षक के रूप में याद करते हैं तो यह मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान होगा।“

वे हर छात्र से मिलते समय उसके सपनों के बारे में पूछते थे और हर शिक्षक से अपेक्षा रखते कि वह सिर्फ ज्ञान का वाहक नहीं, बल्कि चरित्र और दृष्टिकोण का निर्माता बने। वे शिक्षक को केवल पाठ पढ़ाने वाला नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा को गढ़ने वाला मानते थे। डॉ. सिद्धार्थ ने अपने पत्र में लिखा है कि शिक्षा में गुणवत्ता को प्रतिस्थापित करने हेतु अनेक प्रयासों के माध्यम से हम एक बार फिर बिहार को ज्ञान, संस्कृति और मूल्यों की धरती के रूप में प्रतिष्ठित करने के मार्ग पर अग्रसर हैं। उन्होंने पत्र में कहा कि बिहार की भूमि, प्राचीन काल से ज्ञान और संस्कृति का प्रकाश स्तंभ रही है। नालंदा और विक्रमशिला के विश्वविद्यालयों ने विश्व को ज्ञान दिया था। आज भी यह संभावना जीवित है-यदि प्रत्येक शिक्षक स्वयं को एक "राष्ट्र निर्माता" के रूप में देखे और जिए।

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