Madohra Rail Engine Factory:बिहार बना मेक इन इंडिया का हब, गिनी को भेजे जा रहे शक्तिशाली रेल इंजन

Edited By Ramanjot, Updated: 24 Aug, 2025 07:30 PM

madhepura rail engine export

राज्य के मढ़ौरा में मौजूद रेल इंजन कारखाना ने नई इबारत लिख दी है। यहां तैयार हो रहा इंजन अफ्रीकी देश गिनी की पटरियों पर दौड़ने के लिए तैयार है। चार इंजन की पहली खेप वहां के लिए रवाना हो गई है।

पटना:राज्य के मढ़ौरा में मौजूद रेल इंजन कारखाना ने नई इबारत लिख दी है। यहां तैयार हो रहा इंजन अफ्रीकी देश गिनी की पटरियों पर दौड़ने के लिए तैयार है। चार इंजन की पहली खेप वहां के लिए रवाना हो गई है। मेक इन इंडिया की अवधारणा को सार्थक बनाते हुए निर्यात किए जाने वाले इन इंजनों का नाम ‘कोमो’ रखा गया है। गिनी देश का एक प्रतिनिधि मंडल इस वर्ष मई-जून में यहां आया हुआ था। इस दौरान 140 लोकोमोटिव इंजन के निर्यात का 3 हजार करोड़ रुपये एकरारनामा इस कंपनी के साथ हुआ था। इसके तहत दो महीने बाद ही पहली खेप रवाना हो रही है। जल्द ही ‘कोमो’ की अन्य खेपें रवाना की जाएगी।

4500 हार्स पॉवर है इन इंजनों की क्षमता

गिनी देश के लिए निर्यात होने वाले इन रेल इंजनों की क्षमता 4500 हार्स पॉवर है। 200 एकड़ में फैला मढ़ौरा रेल कारखाने के निर्माण की प्रक्रिया अक्टूबर 2015 से शुरू हुई थी। यहां से निर्माण का कार्य 2018 से शुरू हुआ था और अब यहां जून 2025 से निर्यात की प्रक्रिया शुरू हो गई है। यहां औसतन दो दिन में एक लोको इंजन तैयार किया जाता है। इस फैक्ट्री में दो हजार से अधिक पिलर हैं। इसकी चहारदिवारी 4.6 किमी है और इसकी आधारभूत संरचना को तैयार करने में 4500 मीट्रिक टन स्टील लगा है। फैक्ट्री के अंदर 4.8 किमी सड़क और 1.8 किमी रेल पटरी का निर्माण किया गया है। 10 हजार से अधिक मजदूर यहां काम करते हैं।

निर्यात होने वाले इंजन का रंग रखा गया नीला

इस रेल इंजन कारखाने से अभी 4500 हार्स पॉवर की क्षमता वाले इंजन का निर्माण हो रहा है। आने वाले समय में 6 हजार हार्स पॉवर तक की क्षमता वाले रेल इंजन का निर्माण करने की योजना है। भारत में सप्लाई होने वाले रेल इंजन का रंग लाल और पीला होता है। वहीं, गिनी निर्यात होने वाले रेल इंजन का रंग नीला रखा गया है। सभी इंजन का कैब पूरी तरह से एयरकंडीशन है। विदेश भेजे जाने वाले इन इंजनों में इवेंट रिकॉर्डर, लोको कंट्रोल, खास तरह का ब्रेक सिस्टम एएआर समेत अन्य कई खास तरह के उपकरण लगाए गए हैं, जिनकी उपयोगिता अलग-अलग तरह से है। इस कारखाने में 1528 कर्मचारी काम करते हैं, जिसमें 99 फीसकी कर्मी बिहार के रहने वाले हैं। साथ ही महिला कर्मियों की संख्या भी काफी है और वे कई बेहद महत्वपूर्ण कार्य मसलन वेल्डिंग, क्रेन संचारन, एसेंबली, टेस्टिंग में लगी हुई हैं। कर्मियों की औसतन उम्र 24 वर्ष है। बिहार के 17 अलग-अलग तकनीकी संस्थानों से यहां कर्मियों की नियुक्ति की जाती है।

700 इंजन का हो चुका निर्माण

मढ़ौरा रेल इंजन कारखाना से 2018 से अब तक 700 इंजन का निर्माण हो चुका है। औसतन 100 रेल इंजनों का निर्माण प्रतिवर्ष किया जाता है। इसके अलावा पिछले नौ वर्षों में यहां 250 से अधिक रेल इंजन का मेंटेनेंस किया जा चुका है, जो गांधीधाम (गुजरात) स्थित रेल इंजन कारखाना से कहीं अधिक है। यहां पिछले 4 वर्षों में 500 रेल इंजनों को मेंटेन किया गया है। यह रेल कारखाना बिहार में निजी निवेश का सबसे बड़ा उदाहरण है। रेल मंत्रालय का इस कारखाना में सिर्फ 24 फीसदी की हिस्सेदारी है। जबकि, 76 फीसदी की हिस्सेदारी इस कारखाना को संचालित करने वाली अंतरराष्ट्रीय कंपनी वेबटेक की है। इस प्लांट में 800 करोड़ का निवेश है, जिसके आने वाले कुछ वर्षों में बढ़कर 3 हजार करोड़ रुपये होने की संभावना है। 

बिहार को मिलती 900 करोड़ की जीएसटी

इस रेल इंजन कारखाने से प्रति वर्ष बिहार को 900 करोड़ रुपये की जीएसटी प्राप्त होती है। इतनी ही जीएसटी केंद्र सरकार के खाते में भी जाती है। ऊर्जा का सालाना बिल सिर्फ 50 करोड़ रुपये से अधिक की आदायती यह कंपनी करती है। इस कंपनी के खुलने से आसपास के इलाके में आर्थिक गतिविधि कई तरह से बढ़ी है। 3 होटल, 7 रेस्टुरेंट, 6 स्कूल, 3 बैंक, 6 एटीएम समेत अन्य सुविधाएं यहां विकसित हुई हैं।

*वाराणसी रेल इंजन कारखाना से पिछले 50 वर्षों में 15 से 20 इंजन का निर्यात किया गया है। जबकि, मढ़ौरा के इस कंपनी से अकेले गिनी को 140 इंजन निर्यात किए जा रहे हैं।

Related Story

Trending Topics

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!