Edited By Ramanjot, Updated: 01 Dec, 2023 04:37 PM
बिहार की सत्ता से बाहर होने के बाद मुकेश सहनी ने जनता के बीच अपना जनाधार बढ़ाने की रणनीति पर काम किया। पांच करोड़ के उनके रथ की चर्चा पूरे देश में हुई। आरक्षण की मांग को लेकर मुकेश सहनी इसी रथ पर सवार होकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में सौ दिवसीय...
पटनाः बिहार की राजनीति में बहुत तेजी से सन ऑफ मल्लाह यानी मुकेश सहनी का उभार हुआ है। सहनी लगातार अपनी ताकत का एहसास विरोधियों को करा रहे हैं। सहनी ना केवल खुद को निषाद मल्लाह का नेता बताते हैं बल्कि वे खुद को अत्यंत पिछड़ी जाति का नेता कहने से भी नहीं हिचकते हैं। धीरे धीरे मुकेश सहनी ने बिहार की सियासत में अंगद की तरह अपना पांव जमा दिया है।

बिहार की सत्ता से बाहर होने के बाद मुकेश सहनी ने जनता के बीच अपना जनाधार बढ़ाने की रणनीति पर काम किया। पांच करोड़ के उनके रथ की चर्चा पूरे देश में हुई। आरक्षण की मांग को लेकर मुकेश सहनी इसी रथ पर सवार होकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में सौ दिवसीय निषाद आरक्षण यात्रा शुरू किया था। सहनी के इस रथ के आगे पीछे मौजूद जनसैलाब ने उनकी सियासी ताकत का अहसास सब को करा दिया है। इस सफल यात्रा के बाद मुकेश सहनी 14 रैली भी निकाल रहे हैं। सत्ता में नहीं होने के बावजूद मुकेश सहनी की जनसभा में भारी भीड़ उमड़ रही है। ये भीड़ इस बात का सबूत है कि सहनी ने लोकप्रियता का ठीक ठाक ग्राफ हासिल कर लिया है। वहीं बीजेपी जैसी मजबूत संगठन वाली पार्टी पान समुदाय की बैठक में दो सो लोगों की भीड़ तक नहीं जुटा पाती है जबकि मुकेश सहनी जहां जाते हैं वहीं पूरा मैदान लोगों से अटा रहता है।
निषाद, मल्लाह और नोनिया के नेता बने सहनी
मुकेश सहनी निषादों के साथ अत्यंत पिछड़ी जाति की राजनीति में भागीदारी का सवाल उठाते रहे हैं। देखा जाए तो निषाद की उपजातियों बिंद, बेलदार, चाई, तीयर, खुलवट, सुरहिया, गोढ़ी, वनपर और केवट समाज में मुकेश सहनी की लोकप्रियता आसमान छू रही है। आप जहां भी सर्वे करेंगे तो पाएंगे कि निषाद की तमाम उपजातियां भी सहनी को अपना नेता मान चुकी हैं।
10 लोकसभा सीट के नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं मुकेश सहनी
मल्लाह, निषाद और नोनिया जाति का प्रभाव बिहार की दस लोकसभा सीटों पर है। दरभंगा, सुपौल, मधुबनी, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, छपरा, सीवान और गोपालगंज जिले में इनकी संख्या अधिक है। यानी लोकसभा की करीब 10 सीटों पर मुकेश सहनी चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं।
तेजस्वी और बीजेपी दोनों को एक साथ चुनौती दे रहे हैं मुकेश सहनी
मुकेश सहनी एक तरह से तेजस्वी यादव और बीजेपी दोनों के लिए कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं। तेजस्वी यादव कभी नहीं चाहते हैं कि अत्यंत पिछड़ी जाति से मुकेश सहनी जैसा कद्दावर नेता सामने आए तो बीजेपी भी मुकेश सहनी के विधायकों को तोड़ कर ये भ्रम पाल बैठी थी कि वीआईपी खत्म हो गई लेकिन बाद में जब बीजेपी आलाकमान को अपनी भूल का एहसास हुआ तो उन्होंने मुकेश सहनी पर डोरे डालने शुरू कर दिए। माय समीकरण को टक्कर देने के लिए बीजेपी मुकेश सहनी जैसे जनाधार वाले नेता को अपने पाले में करना चाहती है इसलिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सहनी को वाई-प्लस सुरक्षा प्रदान करने का प्रस्ताव दिया लेकिन ऐसा लगता है कि फिलहाल मुकेश सहनी अपने पत्ते खोलने के मूड में नहीं हैं क्योंकि अब उन्हें अपनी सियासी ताकत का अंदाजा हो गया है। उन्हें पता है कि वे अब बिहार की राजनीति के उभरते हुए सितारे हैं और 2024 के लोकसभा चुनाव में चाहे वह इंडिया गठबंधन हो या फिर एनडीए दोनों को उनकी जरूरत पड़ेगी।