लाखों लोगों ने दिशोम गुरु को नम आंखों से दी अंतिम विदाई, सड़क पर खड़ी भीड़ ने 'गुरुजी अमर रहें' के लगाए नारे

Edited By Khushi, Updated: 06 Aug, 2025 03:52 PM

lakhs of people bid a tearful farewell to dishom guru the crowd

Jharkhand News: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का बीते मंगलवार को उनके पैतृक गांव नेमरा में पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। इस मौके पर हजारों लोगों ने ‘दिशोम गुरु' को नम आखों से अंतिम विदाई दी जिनमें ग्रामीण, राजनीतिक...

Jharkhand News: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का बीते मंगलवार को उनके पैतृक गांव नेमरा में पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। इस मौके पर हजारों लोगों ने ‘दिशोम गुरु' को नम आखों से अंतिम विदाई दी जिनमें ग्रामीण, राजनीतिक हस्तियां और समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल थे। शिबू सोरेन को लोग प्यार से ‘दिशोम गुरु' (भूमि के नेता) कहते थे। उनका सोमवार को 81 वर्ष की आयु में दिल्ली के एक निजी अस्पताल में गुर्दे संबंधी बीमारी के इलाज के दौरान निधन हो गया था।

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झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के सह संस्थापक और राज्य के आदिवासी आंदोलन का प्रमुख चेहरा रहे शिबू सोरेन को झारखंड सशस्त्र पुलिस (जेएपी) के जवानों ने सलामी दी। उनका कड़ी सुरक्षा के बीच पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके बड़े पुत्र ने जब चिता को मुखाग्नि दी तब ‘गुरुजी अमर रहें' के नारे गूंज उठे। रामगढ़ जिले के नेमरा में गमगीन माहौल था, जहां परिवार, समर्थक, राजनीतिक नेता और ग्रामीण सहित हजारों लोग नम आंखों से अंतिम विदाई देने के लिए एकत्र हुए थे।

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लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सके, क्योंकि उनका हेलीकॉप्टर रांची से उड़ान नहीं भर सका, जहां वे दिल्ली से अपराह्न करीब 3.30 बजे उतरे। हालांकि, कांग्रेस के दोनों वरिष्ठ नेता सड़क मार्ग से नेमरा के लिए रवाना हुए और शाम करीब 6.45 बजे हेमंत सोरेन से मिलने पहुंचे और उन्हें सांत्वना दी। बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव भी नेमरा पहुंचे, जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और ऑल झारखंड स्टुडेंट्स यूनियन (आजसू) पार्टी प्रमुख सुदेश महतो सड़कों पर भारी यातायात जाम की वजह से मोटरसाइकिल से नेमरा पहुंचे। जब दिग्गज आदिवासी नेता के पार्थिव शरीर को पूरे आदिवासी रीति-रिवाज के साथ गांव में उनके पैतृक घर पर फूलों से सजी चारपाई पर रखा गया, तो उनके करीबी और प्रियजन कफन, चादर, शॉल और गुलदस्ते चढ़ाने के लिए उमड़ पड़े।

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शिबू सोरेन के पार्थिव शरीर को जिस ताबूत में रखा गया था, उसे तिरंगे और झामुमो के झंडे में लपेटा गया था। व्हीलचेयर पर बैठी शिबू सोरेन की पत्नी रूपी सोरेन अपने आंसू नहीं रोक पा रही थीं, जबकि उनके पुत्र मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और विधायक बसंत सोरेन तथा विधायक बहू कल्पना सोरेन शांतचित्त थे और उनके चेहरे पर गहरे दुख का भाव साफ देखा जा सकता था। कल्पना सोरेन अपने दोनों बेटों को सांत्वना देती नजर आईं। सोरेन का पैतृक आवास अंतिम दर्शन के लिए आए लोगों से भरा हुआ था और कई लोग अपने आंसू नहीं रोक पा रहे थे। इससे पहले, जब शिबू सोरेन का पार्थिव शरीर रांची स्थित राज्य विधानसभा से करीब 75 किलोमीटर दूर पैतृक गांव नेमरा ले जाया जा रहा था, तो लोग सड़क के दोनों ओर अंतिम श्रद्धांजलि देने के लिए कतार में खड़े थे और ‘गुरुजी अमर रहें' के नारे लगा रहे थे।

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शिबू सोरेन के पुत्र एवं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सफेद कुर्ता-पायजामा पहने और कंधे पर पारंपरिक आदिवासी गमछा डाले हुए, हाथ जोड़े वाहन में बैठे दिखाई दिए। उनके काफिले के पीछे वाहनों की कतार लगी थी। दिवंगत नेता के सम्मान में रांची में अधिकतर दुकानें और प्रतिष्ठान दिन के पहले पहर बंद रहे। अंतिम संस्कार के लिए विशेष यातायात व्यवस्था की गई थी। दलों से इतर आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद संजय सिंह, तृणमूल कांग्रेस की सांसद शताब्दी रॉय और पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव समेत कई अन्य नेता रांची पहुंचकर शिबू सोरेन को श्रद्धांजलि अर्पित की। शिबू सोरेन पिछले 38 वर्षों से झामुमो के नेता थे। शिबू सोरेन के सम्मान में झारखंड सरकार ने छह अगस्त तक तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया है। झारखंड के अधिकतर स्कूल मंगलवार को बंद रहे और कई विद्यालयों में दिवंगत नेता की शांति के लिए विशेष प्रार्थना सभाएं की गईं।

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राज्यसभा की कार्यवाही भी सोमवार को वर्तमान सांसद शिबू सोरेन के निधन के बाद उनके सम्मान में पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई थी। झारखंड विधानसभा का मौजूदा मानसून सत्र उनके निधन की घोषणा के बाद अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। मानसून सत्र एक अगस्त से शुरू हुआ था। इससे पहले दिन में शिबू सोरेन का पार्थिव शरीर राज्य विधानसभा लाया गया, जहां राज्यपाल संतोष गंगवार और विधानसभा अध्यक्ष रवींद्र नाथ महतो ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। केंद्रीय मंत्री जुएल ओराम, अन्नपूर्णा देवी और संजय सेठ, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, राज्य के मंत्री इरफान अंसारी, दीपिका पांडे सिंह, शिल्पी नेहा तिर्की और कई विधायकों, नौकरशाहों, पुलिस महानिदेशक अनुराग गुप्ता और मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव अविनाश कुमार, झामुमो कार्यकर्ताओं और आम लोगों ने विधानसभा परिसर में शिबू सोरेन को श्रद्धांजलि अर्पित की।

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शिबू सोरेन का पार्थिव शरीर दिल्ली से एक विशेष विमान द्वारा रांची लाया गया। उनके साथ उनके बेटे हेमंत और बसंत तथा बहू कल्पना भी थीं। फूलों से सजे एक खुले वाहन में पार्थिव शरीर को हवाई अड्डे से रांची के मोरहाबादी क्षेत्र में सोरेन के आवास तक ले जाया गया। इस दौरान मुख्यमंत्री और उनके विधायक भाई पिता के पार्थिव शरीर के पास बैठे रहे। कल्पना सोरेन वाहन में आगे बैठी नजर आईं। लगभग चार दशकों तक झामुमो का नेतृत्व करने वाले शिबू सोरेन झारखंड राज्य आंदोलन के प्रमुख शिल्पकार और आदिवासी समुदायों के बीच बेहद पूजनीय थे। शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी, 1944 को हुआ था। वह देश के आदिवासी और क्षेत्रीय राजनीतिक परिदृश्य के सबसे शक्तिशाली राजनीतिक व्यक्तित्वों में से एक थे। उनका राजनीतिक जीवन आदिवासियों के अधिकारों के लिए निरंतर संघर्ष में बीता। शिबू सोरेन के परिवार के अनुसार, उनका प्रारंभिक जीवन व्यक्तिगत त्रासदी और गहरे सामाजिक-आर्थिक संघर्षों से भरा था।

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शिबू सोरेन जब 15 वर्ष के थे, तब उनके पिता शोबरन सोरेन की 27 नवंबर, 1957 को गोला प्रखंड मुख्यालय के निकट लुकैयाटांड जंगल में साहूकारों द्वारा कथित तौर पर हत्या कर दी गई थी। इसने उन पर गहरा प्रभाव डाला और यह उनके भविष्य के राजनीतिक सफर के लिए उत्प्रेरक बना। शिबू सोरेन ने 1973 में बंगाली मार्क्सवादी ट्रेड यूनियनिस्ट ए के रॉय और कुर्मी-महतो नेता बिनोद बिहारी महतो के साथ धनबाद के गोल्फ ग्राउंड में एक सार्वजनिक बैठक के दौरान झामुमो की सह-स्थापना की। झामुमो जल्द ही एक अलग आदिवासी राज्य की मांग की प्रमुख राजनीतिक आवाज बन गया और उसे छोटानागपुर और संथाल परगना क्षेत्रों में समर्थन मिला। कहा जाता है कि सामंती शोषण के खिलाफ सोरेन की जमीनी स्तर पर लामबंदी ने उन्हें एक आदिवासी प्रतीक के रूप में स्थापित किया। उनके और अन्य लोगों द्वारा चलाए गए दशकों के आंदोलन के बाद अंततः 15 नवंबर 2000 को झारखंड के गठन के साथ पृथक राज्य की मांग पूरी हुई। वह दुमका सीट से कई बार लोकसभा के लिए चुने गए और बाद में राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए। उन्होंने कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग)सरकार में केंद्रीय कोयला मंत्री के रूप में भी कार्य किया। 

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