देश के विकास को देखते हुए 'एक देश एक चुनाव' समय की मांग: विजय कुमार सिन्हा

Edited By Harman, Updated: 13 Dec, 2024 08:39 AM

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केंद्रीय कैबिनेट द्वारा 'एक देश एक चुनाव' से जुड़े विधेयक को मिली मंजूरी का स्वागत करते हुए बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि यह एक बहुप्रतीक्षित निर्णय है, जिसकी अनुशंसा पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी की अध्यक्षता वाले पैनल...

पटना: केंद्रीय कैबिनेट द्वारा 'एक देश एक चुनाव' से जुड़े विधेयक को मिली मंजूरी का स्वागत करते हुए बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि यह एक बहुप्रतीक्षित निर्णय है, जिसकी अनुशंसा पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी की अध्यक्षता वाले पैनल द्वारा भी की गई थी। अब इस विधेयक को यदि देश की संसद पारित कर दे तो यह एक ऐतिहासिक चुनाव सुधार होगा। 

"आज के समय की मांग है एक देश एक चुनाव"
सिन्हा ने आगे कहा कि वर्तमान स्थिति में देश के त्रिस्तरीय लोकतंत्र से जुड़ा कोई न कोई चुनाव पूरे साल होता रहता है । चूंकि हर चुनाव की प्रक्रिया से किसी न किसी रूप में एक आदर्श आचार संहिता जुड़ी होती है । जिससे राजकाज और समाज के विकास से जुड़े कामों में काफी बाधा होती है। साथ ही छोटे-छोटे अंतराल पर होने वाले इन चुनावों के कारण सरकारी धन और संसाधनों की क्षति भी होती है । चुनावी ड्यूटी के चलते सरकारी कार्यों में काफी अड़चनें आती हैं । यही नहीं इस सुधार से खर्च कम, भ्रष्टाचार कम होता है और योजनाएं समय से पूरी हो पाती हैं । लिहाजा 'एक देश एक चुनाव' देश के विकास को देखते हुए समय की मांग है ।

"देशहित में निर्णायक सुधार है"
विजय सिन्हा ने कहा कि पिछले करीब तीन दशकों से चुनाव आयोग, संविधान समीक्षा आयोग,विधि आयोग से लेकर नीति आयोग ने इसकी वकालत की है ।  आजादी के बाद 1952 से लेकर 1967 तक पूरे देश में लोकसभा और राज्यसभा के चुनाव साथ होते थे । इसलिए यह परिपाटी हमारे लोकतंत्र में 'जांची, परखी और खरी' रही है । हमारे पड़ोसी राज्य ओडिशा में 1999 से अबतक सारे चुनाव साथ होते हैं । इससे वहां आचार संहिता की कम समयावधि और सरकारी संसाधनों का लागत प्रभावी जिसका व्यापक लाभ इस कालखंड में वहां देखने को मिला है । कोविंद पैनल में भी 100 दिनों के भीतर तीनों स्तरों के चुनाव कराने की अनुशंसा की गई है । यदि इस सुझाव को मान लिया गया तो यह पूरे देश के व्यापक हित में साबित होगा ।

"जिन्हें सत्ता की जागीर गंवाने का भय वही नहीं चाहते"
सिन्हा ने कहा  इस ऐतिहासिक सुधार का विरोध केवल वे ही लोग कर रहे हैं जिन्हें या तो अपने 'सत्ता की जागीर' गंवाने का भय है या फिर जिनका कोई 'हिडेन एजेंडा' है । यही वो लोग हैं जो खुद के चुनाव जीतने पर जश्न मनाते हैं और जब हारते हैं तो EVM पर सवाल उठाते हैं । ये दरअसल 'सोरोसवादी' लोग हैं जो देश के हर सुधार और विकास पर ग्रहण लगाने की जुगत में रहते हैं ।
 

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