बिहार, झारखंड और बंगाल के बीच दशकों पुराना जल विवाद हुआ समाप्त

Edited By Ramanjot, Updated: 11 Jul, 2025 09:53 PM

bihar jharkhand water dispute resolution

केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में विगत गुरुवार को रांची में हुई पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में झारखंड और पश्चिम बंगाल के साथ जल बंटवारे को लेकर बिहार का पिछले कई दशक से चल रहा विवाद अब खत्म हो चुका है।

पटना:केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में विगत गुरुवार को रांची में हुई पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में झारखंड और पश्चिम बंगाल के साथ जल बंटवारे को लेकर बिहार का पिछले कई दशक से चल रहा विवाद अब खत्म हो चुका है। रांची में हुई पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में भाग लेकर आए बिहार के जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के बीच जल संधि को लेकर दशकों पुराने विवाद को खत्म करने के लिए गृहमंत्री अमित शाह को धन्यवाद दिया है। 

उन्होंने कहा कि इस बैठक में झारखंड के साथ सोन नदी का जल बंटवारा, पश्चिम बंगाल के साथ महानंदा नदी पर तैयबपुर बराज का निर्माण और नदियों के गाद प्रबंधन नीति को लेकर दशकों पुरानी समस्या का समाधान कर लिया गया है।  

रांची में हुई पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में बिहार सरकार की तरफ से उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने बिहार का पक्ष रखा। इस बैठक में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी मौजूद थे। 

जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने शुक्रवार को आयोजित संवाददाता सम्मेलन में बताया कि इस बैठक में झारखंड के साथ सोन नदी के जल बंटवारे का विवाद बिहार विभाजन के बाद यानि पिछले 25 वर्षों से चला आ रहा था। वर्ष 1973 में बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच हुए बाणसागर समझौते के अनुसार अविभाजित बिहार को 7.75 मिलियन एकड़ फीट आवंटित था। वर्ष 2000 में राज्य बंटवारे के बाद झारखंड द्वारा दोनों राज्यों के बीच जल बंटवारे की मांग की जा रही थी। इसी विवाद को लेकर इंद्रपुरी जलाशय परियोजना पर सहमति नहीं बन रही थी। 

चौधरी ने कहा कि बिहार ने जल बंटवारे के लिए फार्मूला भी दिया परंतु समस्या का समाधान नहीं हो सका। इस बैठक में बिहार और झारखंड के बीच सहमति बन गई है कि अविभाजित बिहार को सोन नदी से मिलने वाले 7.75 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) पानी में से 5.75 एमएएफ पानी बिहार को और 2.00 एमएएफ पानी झारखंड को दिया जाएगा। यह बिहार के दृष्टिकोण से बिहार के हित में लिया गया फैसला है। चौधरी ने कहा कि इस निर्णय से वर्षों स लंबित इंद्रपुरी जलाशय परियोजना के कार्यान्वयन का रास्ता साफ हो गया है। 

चौधरी ने बताया कि इसी तरह बिहार और पश्चिम बंगाल के बीच 1978 में समझौते के अनुसार महानंदा बेसिन में पश्चिम द्वारा फुलबारी मे बनाए जाने वाले महानंदा बराज से बिहार को 67000 एकड़ भूमि के लिए जल उपलब्ध कराने का प्रावधान है। इस प्रावधान के तहत बिहार द्वारा वर्ष 1983 में अपर महानंदा सिंचाई परियोजना तैयार किया गया, लेकिन बगाल द्वारा सकारात्मक रुख नहीं रखने के कारण इस योजना का कार्यान्वयन नहीं हो रहा था। बैठक मे सहमति बनी कि तैयबपुर बराज के लिए पश्चिम बंगाल सरकार की सहमति की जरूरत नहीं है। तैयबपुर बराज के निर्माण से बिहार के किशनगंज प्रखंड में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो जाएगी। 

जल संसाधन मंत्री ने कहा कि राज्य में हर साल आने वाली बाढ़ की विभीषिका से मुक्ति के लिए बिहार की पुरानी मांग “व्यापक गाद प्रबंधन नीति” तैयार करने पर भारत सरकार के सकारात्मक रुख से महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। केन्द्रीय जल आयोग द्वारा तैयार नेशनल फ्रेमवर्क फॉर सेडिमेंट मैनेजमेंट में कहा गया है कि नदियों से गाद हटाना आर्थिक रूप से संभाव्य एवं वांछनीय नहीं है। बैठक के दौरान निष्कर्ष निकला कि गाद को हटाए बिना बाढ़ की समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता है। इसलिए व्यापक गाद प्रबंधन नीति का बनना जरूरी है। गंगा नदी में कोशी, कमला, बागमती, गंडक आदि नदियों से आने वाली गाद के कारण बिहार को हर साल बाढ़ की विभीषिका झेलनी पड़ती है। गाद के कारण नदियों के जल वहन क्षमता में लगातार कमी आ रही है।

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