Edited By Ramanjot, Updated: 13 Feb, 2025 09:55 AM
इस परिचर्चा को मुख्य रूप से दीपंकर भट्टाचार्य, दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक प्रो. रतनलाल, दिल्ली वि.वि. के पूर्व सहायक प्राध्यापक डॉ. लक्ष्मण यादव, आटिर्कल 19 के पत्रकार नवीन कुमार, प्रो. चिंटू कुमारी, सामाजिक कार्यकर्ता वंदना प्रभा, इंसाफ मंच के...
Bihar News: भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी (CPI-ML) माले) महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य (Dipankar Bhattacharya) ने कहा कि बिहार में बदलाव की चौतरफा मांग उठ रही है। पटना के नागरिक समाज की ओर से बुधवार को आयोजित ‘बदलो बिहार विमर्श' के अंतर्गत ‘गणतंत्र के 75 साल: बिहार में बदलाव की चुनौती' विषय पर एक व्यापक परिचर्चा हुई, जिसमें शहर के नागरिक समाज की बड़ी भागीदारी रही।
इस परिचर्चा को मुख्य रूप से दीपंकर भट्टाचार्य, दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक प्रो. रतनलाल, दिल्ली वि.वि. के पूर्व सहायक प्राध्यापक डॉ. लक्ष्मण यादव, आटिर्कल 19 के पत्रकार नवीन कुमार, प्रो. चिंटू कुमारी, सामाजिक कार्यकर्ता वंदना प्रभा, इंसाफ मंच के अध्यक्ष गोपाल रविदास, प्रो. शमीम आलम आदि ने संबोधित किया। परिचर्चा का संचालन विधायक एवं बीपूटा के संरक्षक संदीप सौरभ ने किया, जबकि अध्यक्ष मंडल में कमलेश शर्मा, गालिब, विश्वनाथ चौधरी, पंकज श्वेताभ, मंजू शर्मा आदि शामिल थे।
इस अवसर पर भट्टाचार्य ने कहा कि बिहार में बदलाव की मांग पूरे राज्य में जोर पकड़ रही है। यह चर्चा 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद शुरू हुई थी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (BJP) इसे अपने हित में हड़पने की कोशिश कर रही है। हरियाणा और महाराष्ट्र में सत्ता बचाने और दिल्ली में कब्जा जमाने के बाद अब भाजपा की निगाहें पूरी तरह बिहार पर हैं। लेकिन बिहार की जनता ठोस और व्यापक आधार पर बदलाव की दिशा में आगे बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि 90 के दशक में भी भाजपा ने बिहार में सत्ता हथियाने की कोशिश की थी, लेकिन जनता ने उसे नाकाम किया। अब जब 20 वर्षों की सरकार के बाद नीतीश कुमार एक थके हुए प्रतीक बन गए हैं, तो भाजपा फिर से बिहार को अपने नियंत्रण में लेना चाहती है। लेकिन बिहार आगे बढ़ेगा, पीछे नहीं जाएगा।
माले महासचिव ने सामाजिक न्याय, आरक्षण और जाति आधारित गणना के मुद्दे उठाते हुए कहा कि बिहार में तमिलनाडु की तर्ज पर 65 प्रतिशत आरक्षण लागू होना चाहिए, और जाति गणना को पूरे देश में लागू करना चाहिए। बिहार का आगामी चुनाव सिर्फ राजनीतिक साजिशों के खिलाफ नहीं होगा, बल्कि जनता के असली मुद्दों पर केंद्रित होना चाहिए। 2 मार्च को गांधी मैदान में होने वाला ‘महाजुटान' इस बदलाव का एक अहम पड़ाव होगा। परिचर्चा में विश्वविद्यालयों के शिक्षक, बुद्धिजीवी, विभिन्न आंदोलनों के कार्यकर्ता, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता बड़ी संख्या में शामिल हुए।