‘बिहार राज्य की जलवायु अनुकूलन एवं न्यून कार्बन उत्‍सर्जन विकास रणनीति’ के तहत छपरा में आयोजित की गई कार्यशाला

Edited By Swati Sharma, Updated: 22 Aug, 2024 06:44 PM

workshop organized in chhapra under low carbon emission development strategy

गुरुवार को छपरा समाहरणालय में कार्बन न्यूट्रल राज्य बनाने की दिशा में 'बिहार राज्य की जलवायु अनुकूलन एवं न्यून कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति' के क्रियान्वयन संबंधित क्षमता विकास कार्यक्रम अंतर्गत प्रमंडलीय स्तर प्रसार कार्यशाला का आयोजन किया गया।...

छपरा: गुरुवार को छपरा समाहरणालय में कार्बन न्यूट्रल राज्य बनाने की दिशा में 'बिहार राज्य की जलवायु अनुकूलन एवं न्यून कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति' के क्रियान्वयन संबंधित क्षमता विकास कार्यक्रम अंतर्गत प्रमंडलीय स्तर प्रसार कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रियंका रानी, उप-विकास आयुक्त, सारण द्वारा की गई।

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कयूम अंसारी, डायरेक्टर, जिला ग्रामीण विकास एजेंसी, सारण ने उद्घाटन उद्बोधन में कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव वार्षिक बाढ़, सूखा और अत्यधिक तापमान में वृद्धि, इत्यादि के रूप में देखे जा रहें हैं। उन्होंने आगे कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए बिहार 2070 तक कार्बन न्यूट्रल राज्य बनने के लिए प्रयासरत है। राम सुंदर एम, सारण वन प्रमंडल पदाधिकारी ने उद्घाटन उद्बोधन में कहा कि इस कार्यशाला का उद्देश्य जिला स्तरीय अधिकारियों और विषय विशेषज्ञों के बीच संवाद स्थापित करना है, ताकि विकास को जलवायु-अनुकूल बनाने के लिए नवीन विचार प्राप्त किए जा सके और चुनौतियों की पहचान की जा सके। कार्यशाला की विस्तृत जानकारी डब्लू.आर.आई. इंडिया के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक डॉ. शशिधर कुमार झा एवं कार्यक्रम प्रबंधक मणि भूषण कुमार झा द्वारा दी गई। मणि भूषण ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए ‘बिहार राज्य की जलवायु अनुकूलन एवं न्यून कार्बन उत्‍सर्जन विकास रणनीति’ के तहत ऊर्जा, परिवहन, अपशिष्ट, भवन, उद्योग, कृषि, वन सहित आपदा प्रबंधन, जल और मानव स्वास्थ्य क्षेत्रों में शमन और अनुकूलन गतिविधियां निर्धारित की हैं। बिहार के माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 04 मार्च 2024 को इस रिपोर्ट का विमोचन किया था। डॉ शशिधर ने अपने संबोधन में कहा कि बिहार में पिछले 50 सालों में तापमान में 0.8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है और 2030 तक तापमान में 0.8- 1.3 डिग्री सेल्सियस, 2050 तक 1.4- 1.7 डिग्री सेल्सियस और 2070 तक 1.8-2.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने का अनुमान है। जलवायु परिवर्तन अनुकूलन उपायों के बारे में बताते हुए उन्होंने फसल एवं कृषि प्रणाली में विविधता, सतही और भूजल का एकीकृत प्रबंधन, वन पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा, संरक्षण और पुनर्जनन, निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने की रणनीति पर चर्चा की।

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डब्लू.आर.आई. इंडिया के रौशन मिश्रा ने प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों में दीर्घकालिक मौसम संबंधी जानकारी को एकीकृत करने के महत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने यह भी बताया कि भारत सरकार की वार्षिक आकाशीय बिजली से संबंधित रिपोर्ट के अनुसार, बिहार आकाशीय बिजली से होने वाली मौतों के मामले में तीसरे स्थान पर है, जबकि आकाशीय बिजली की आवृत्ति के मामले में यह दसवें स्थान पर है। उत्तर-पश्चिम बिहार (शिवहर, बांका, कैमूर और किशनगंज जिले) विशेष रूप से संवेदनशील हैं। राजेंद्र कॉलेज, छपरा के भूगोल के सहायक प्रोफेसर अनुपम कुमार सिंह ने विशेषज्ञ के रूप में संबोधित करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन के पीछे मानवीय गतिविधियां सबसे बड़े कारण हैं। उन्होंने कहा कि सिवान, गोपालगंज और सारण उत्तर बिहार के सबसे संवेदनशील जिलों में शामिल हैं। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।

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अधिकारीगण एवं अन्य हितधारकों ने भी अपने विचार किए साझा
कार्यक्रम में उपस्थित विभिन्न विभागों के अधिकारीगण एवं अन्य हितधारकों ने भी अपने विचार साझा किये। सारण सिविल सर्जन डॉ. सागर दुलाल सिन्हा ने बढ़ते तापमान और जलजमाव के कारण डेंगू और काला-अजार जैसी गैर-संचारी बीमारियों में वृद्धि का उल्लेख किया। सिवान वन प्रमंडल पदाधिकारी पंकज कुमार ने वृक्षारोपण बढ़ाने पर जोर दिया, क्योंकि पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं। कार्यशाला के अंत में बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद के क्षेत्रीय पदाधिकारी एस एन ठाकुर ने सभी को धन्यवाद प्रेषित किया। इस श्रृंखला में आखिरी दो कार्यशालाएं गया और पटना में आयोजित की जाएंगी।

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