Edited By Khushi, Updated: 26 Jun, 2025 01:57 PM

रांची: आपातकाल के 50 वर्ष होने पर आजसू पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष और झारखंड के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो ने कहा कि आपातकाल कांग्रेस की सत्ता की भूख का परिणाम था।
रांची: आपातकाल के 50 वर्ष होने पर आजसू पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष और झारखंड के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो ने कहा कि आपातकाल कांग्रेस की सत्ता की भूख का परिणाम था। उन्होंने कहा कि 25 जून 1975 को भारत के इतिहास में एक काला अध्याय लिखा गया, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू कर लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को कुचल दिया। आज जब राहुल गांधी संविधान बचाओ की बात करते हैं तो यह हास्यास्पद लगता है।
महतो ने कहा कि आपातकाल वह दौर था जब नागरिकों के मौलिक अधिकारों को छीन लिया गया, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ताला लगा दिया गया और लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया गया। सुदेश महतो ने इस घटना को भारतीय लोकतंत्र पर एक गहरा आघात बताया, जिसने देश की जनता को मजबूर और असहाय बना दिया। महतो ने कहा कि तत्कालीन सरकार ने अपनी शक्ति को बनाए रखने के लिए लोकतंत्र की आत्मा को दबाने का प्रयास किया। प्रेस पर सेंसरशिप, विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी और संवैधानिक अधिकारों का हनन उस दौर की सबसे दुखद तस्वीर थी। उन्होंने कहा कि यह समय हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र कितना नाजुक हो सकता है और इसे संरक्षित करने के लिए हमें सतर्क और संगठित रहना होगा। मुख्य प्रवक्ता डॉ देवशरण भगत ने कहा कि आपातकाल ने देश के युवाओं और सामान्य नागरिकों को यह सिखाया कि सत्ता का दुरुपयोग कितना खतरनाक हो सकता है। झारखंड जैसे राज्य, जहां लोग अपनी पहचान और अधिकारों के लिए लंबे समय से संघर्ष करते रहे हैं, वहां लोकतंत्र की रक्षा करना और भी महत्वपूर्ण है।
महतो ने कहा कि उन्होंने आपातकाल के दौरान जेल में बंद उन नेताओं और कार्यकर्ताओं को याद किया, जिन्होंने लोकतंत्र की बहाली के लिए संघर्ष किया। झारखंड आंदोलनकारी प्रवीण प्रभाकर ने कहा कि 1975 की थोड़ी बहुत यादें उनके जेहन में हैं, क्योंकि वह उस वक्त 7 वर्ष के थे और दुमका में आंदोलनकारियों का जुलूस निकलता देख प्रेरित होते थे। आपातकाल में उनके पिता को दुमका और मामा को रांची में बिना कारण गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने वर्तमान संदर्भ में आपातकाल से सीख लेकर लोकतंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आज भी कई बार झारखंड में भी सत्ता पक्ष द्वारा जनता की आवाज को दबाने की कोशिश की जाती है। ऐसी स्थिति में जनता को जागरूक और संगठित होकर अपने अधिकारों की रक्षा करनी होगी।