झारखंड में 'मुर्गा लड़ाई' का खेल है काफी लोकप्रिय, लाखों रुपए की लगाई जाती है सट्टेबाजी

Edited By Khushi, Updated: 01 Jan, 2023 12:08 PM

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झारखंड से अनोखा मामला सामने आया है जहां ‘मुर्गा लड़ाई‘ के खेल का आयोजन किया जाता है, जिसमें मुर्गों को आपस में लड़ाया जाता है। मुर्गों के ऊपर हजारों- लाखों रुपए के दांव लगाए जाते है।

रांची: झारखंड से अनोखा मामला सामने आया है जहां ‘मुर्गा लड़ाई‘ के खेल का आयोजन किया जाता है, जिसमें मुर्गों को आपस में लड़ाया जाता है। मुर्गों के ऊपर हजारों- लाखों रुपए के दांव लगाए जाते है। राज्य में इस खेल की काफी लोकप्रियता है।

इस खेल की है काफी लोकप्रियता 
दरअसल, राज्य के पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, लातेहार, लोहरदगा, गुमला, रांची सहित कई अन्य जिलों में धड़ल्ले से ‘मुर्गा लड़ाई‘ का खेल साप्ताहिक हाट बाजारों में चल रहा है। मुर्गा लड़ाई के लिए मुर्गों को विशेष तौर पर लड़ाकू बनाने के लिए न सिर्फ उन्हें हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है, बल्कि उनके खानपान पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। साथ ही लड़ाई के लिए तैयार किए जाने वाले मुर्गों को अंधेरे में रखा जाता है, जिससे उसका स्वभाव गुस्सैल और चिड़चिड़ा हो जाता है।

मुर्गों का रखा जाता है खास ख्याल
इस दौरान मुर्गों को ताकतवर बनाने के लिए उन्हें उबला हुआ मक्का, किसमिस और विटामिन के इंजेक्शन तक दिए जाते हैं। मुर्गा लड़ाई के लिए करीब 20 -22 फुट के घेरे में 2 लड़ाकू मुर्गों को एक दूसरे के साथ लड़वाया जाता है जहां लड़ाई का एक चक्र 8 से 10 मिनट तक चलता है। मुर्गा लड़ाई शुरू होते ही गोल घेरे के अंदर मौजूद मुर्गाबाज (मुर्गा का मालिक ) होता है। वह तरह-तरह की उत्तेजक आवाज निकालता है, जिससे मुर्गा और खूंखार और खतरनाक हो जाता है। मुर्गा लड़ाई से पूर्व लड़ाकू मुर्गे के एक पैर में ” यू” आकार का एक छोटा तेज धारदार हथियार बांधा जाता है, जिसे “कत्थी” कहा जाता है। कत्थी नामक हथियार को मुर्गे के पैरों में बांधने वाला भी एक विशेषज्ञ होता है जिसे “कातकीर” कहा जाता है। लड़ाकू मुर्गे द्वारा मुर्गा लड़ाई की खेल के दौरान पैरों में बांधी गई “कत्थी” की मदद से वे एक दूसरे पर वार करते हैं।

आदिवासी समाज में इस खेल की है मान्यता 
मुर्गों की लड़ाई शुरू होते ही सट्टेबाजों द्वारा मुर्गों पर दांव लगाया जाता है। कई बार लाखों रुपए के भी दांव लग जाते है। वहीं, आदिवासी समाज में ऐसी मान्यता है कि उनकी कई पीढ़ियों से मुर्गा लड़ाई उनकी जिंदगी का एक मनोरंजक हिस्सा है। आदिवासी समाज से जुड़े जानकारों के मुताबिक उनके पूर्वज मनोरंजन के रूप में अपने -अपने घरों में पाले गए मुर्गों को लड़वाते थे।

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