Edited By Tamanna Bhardwaj, Updated: 08 Oct, 2020 05:58 PM

लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के अकेले लड़ने से बिहार विधानसभा चुनाव रोचक हो गए हैं। एनडीए से हटकर चुनाव मैदान में उतरी लोजपा को क्या हासिल होगा, यह तो आने वाले चुनाव परिणाम ही बताएंगे। वहीं अब बिहार NDA से अलग हुई ...
पटनाः लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के अकेले लड़ने से बिहार विधानसभा चुनाव रोचक हो गए हैं। एनडीए से हटकर चुनाव मैदान में उतरी लोजपा को क्या हासिल होगा, यह तो आने वाले चुनाव परिणाम ही बताएंगे। वहीं अब बिहार NDA से अलग हुई लोजपा की हर गतिविधि पर महागठबंधन नजर गाढ़ कर बैठा है। लोजपा एक के बाद एक पूर्व भाजपा नेताओं को मैदान में उतार रही है, ताकि मोदी की लोकप्रियता का भरपूर फायदा उठाया जाए। ऐसे में महागठबंधन को संकेत मिल गए हैं कि लोजपा सवर्ण वोट बैंक में सेंध लगा सकती है।
महागठबंधन में शामिल कांग्रेस का आकलन है कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से दूरी रखने वाले सवर्ण वोटरों को लोजपा के रूप में मिला नया विकल्प परोक्ष रूप से महागठबंधन को चुनावी फायदा पहुंचा सकता है। क्योंकि प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाने वाले राजेंद्र सिंह और उषा विद्यार्थी जैसे नाम इसके उदाहरण हैं जो अब लोजपा के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे।
वहीं महागठबंधन का मानना है कि चिराग पासवान के अकेले मैदान में आने से कुछ दर्जन सीटों पर उम्मीदवारों की व्यक्तिगत हैसियत और दलित समुदाय के एक वर्ग से जुड़ाव के कारण लोजपा चुनाव को त्रिकोणीय बनाएगी। त्रिकोणीय मुकाबले वाली ऐसी अधिकांश सीटें जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के खाते वाली होंगी। कांग्रेस के अनुसार, जदयू और राजद के बीच जिन सीटों पर सीधे मुकाबला होना है वहां महागठबंधन को तीसरे उम्मीदवार के आने का फायदा मिलेगा।