Edited By Mamta Yadav, Updated: 25 Nov, 2024 04:32 AM
कोलकाता मेडिकल कॉलेज में एक चौंकाने वाला भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है, जहां जिंदगी बचाने वाले मेडिकल डिवाइस खुद मरीजों की जान जोखिम में डाल रहे हैं। मामला सेंट्रल वेनस कैथेटर्स (CVCs) से जुड़ा है, जो जटिल सर्जरी के दौरान गर्दन या कमर के जरिए...
नई दिल्ली: कोलकाता मेडिकल कॉलेज में एक चौंकाने वाला भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है, जहां जिंदगी बचाने वाले मेडिकल डिवाइस खुद मरीजों की जान जोखिम में डाल रहे हैं। मामला सेंट्रल वेनस कैथेटर्स (CVCs) से जुड़ा है, जो जटिल सर्जरी के दौरान गर्दन या कमर के जरिए दवाएं देने के लिए उपयोग किए जाते हैं। ये कैथेटर मरीजों की देखभाल में अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन हालिया रिपोर्ट्स में खुलासा हुआ है कि टेंडर में तय उच्च गुणवत्ता वाले उपकरणों की जगह निम्न गुणवत्ता के कैथेटर सप्लाई किए जा रहे हैं।
आरोप: घटिया उत्पादों की आपूर्ति
सूत्रों के अनुसार, एक बहुराष्ट्रीय कंपनी वायगॉन को राज्य के अस्पतालों में प्रीमियम क्वालिटी के कैथेटर सप्लाई करने का टेंडर दिया गया था। लेकिन, इस कंपनी के लोकल डिस्ट्रीब्यूटर पर आरोप है कि वह निम्न गुणवत्ता वाले, लोकल निर्मित कैथेटर सप्लाई कर रहा है। इस गड़बड़ी का असर एसएसकेएम, एमआर बांगुर हॉस्पिटल और बांकुरा मेडिकल कॉलेज जैसे प्रमुख अस्पतालों पर पड़ा है।
सप्लाई चेन पर गंभीर आरोप
स्वास्थ्य विभाग के अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि प्रोक्योरमेंट प्रक्रिया में भारी अनियमितताएं हुई हैं। प्रोटोकॉल के अनुसार, ऑर्डर सीधे बहुराष्ट्रीय कंपनी को दिया जाना चाहिए, जो अधिकृत डिस्ट्रीब्यूटर के माध्यम से सप्लाई सुनिश्चित करती है। लेकिन सवाल यह उठता है कि ये निम्न गुणवत्ता के उत्पाद सप्लाई चेन में कैसे शामिल हो गए। इससे वायगॉन कंपनी के गुरुग्राम (दिल्ली के पास) स्थित लोकल मैनेजमेंट की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। कंपनी की भारतीय शाखा में तीन निदेशक फ्रांस मूल के हैं और केवल एक भारतीय मूल के हैं, जो इसके मैनेजिंग डायरेक्टर भी हैं।
चौंकाने वाले खुलासे
कथित तौर पर कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर ने ऐसे मामलों की लीपापोती के उद्देश्य से कर्मचारियों से चुप रहने के गंभीर प्रतिबंध लगाए हैं।
समस्या की व्यापकता
ये आरोप बहुराष्ट्रीय कंपनी के लोकल और ग्लोबल मैनेजमेंट में गहरी खामियों की ओर इशारा करते हैं। अगर ये आरोप साबित होते हैं, तो यह न केवल सार्वजनिक विश्वास को कमजोर करेगा, बल्कि मरीजों की जान को भी खतरे में डालेगा। यह मामला मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री में कड़े नियामक नियंत्रण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।