Navratri Special: बिहार के इस मंदिर में होती है मां सती के नेत्र की पूजा, भक्तों को नेत्र संबंधी विकार से मिलती है मुक्ति

Edited By Ramanjot, Updated: 02 Oct, 2022 01:46 PM

in this temple of bihar the eyes of mother sati are worshipped

नेत्र रोग से पीड़ित भक्तगण चंडिका मंदिर में नेत्र-रोग से मुक्ति की आशा लेकर आते हैं। मान्यता है कि कोई भी भक्त निराश नहीं लौटता है। संतान की चाहत और जीवन की अन्य इच्छाओं की पूर्ति के लिए भक्त राज्य के कोने-कोने से इस मंदिर में पहुंचते हैं। ऐसी...

मुंगेरः बिहार के मुंगेर जिले में मां चंडिका मंदिर में मां सती के एक नेत्र की पूजा की जाती है और श्रद्धालुओं को नेत्र संबंधी विकार से मुक्ति मिलती है। मुंगेर जिला मुख्यालय से करीब दो किलोमीटर पूरब गंगा किनारे पहाड़ी गुफा में अवस्थित मां चंडिका का मंदिर लाखों भक्तों के लिए ‘आस्था‘ का केन्द्र बना हुआ है। ऐसी मान्यता है कि इस स्थल पर माता सती की बाईं आंख गिरी थी। यहां आंखों के असाध्य रोग से पीड़ित लोग पूजा करने आते हैं और यहां से काजल लेकर जाते हैं। लोग मानते हैं कि यह काजल नेत्ररोगियों के विकार दूर करता है।

हर प्रकार के नेत्रविकार होते हैं दूर
नेत्र रोग से पीड़ित भक्तगण चंडिका मंदिर में नेत्र-रोग से मुक्ति की आशा लेकर आते हैं। मान्यता है कि कोई भी भक्त निराश नहीं लौटता है। संतान की चाहत और जीवन की अन्य इच्छाओं की पूर्ति के लिए भक्त राज्य के कोने-कोने से इस मंदिर में पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के काजल से हर प्रकार के नेत्रविकार दूर होते हैं। दूर-दूर से पीड़ित भक्तजल यहां मंदिर का काजल लेने पहुंचते हैं। नवरात्र-पूजा के दौरान नवमी तक इस मंदिर में भक्तों की भीड़ देखने को मिलती हैं। कतार में लगकर भक्त इस व्यवस्था से मां चंडिका के नेत्र पर जल-अर्पण करते हैं। मंदिर में भगवान शंकर, माता पार्वती, नौ ग्रह देवता, मां काली और मां संतोषी और भगवान हनुमान के अलग-अलग मंदिर भी हैं, जहां भक्तजन पूजा-अर्चना करते हैं।

PunjabKesari

महाभारत काल से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
सामान्य दिनों में प्रत्येक मंगलवार को मंदिर में काफी संख्या में भक्तजन पहंचते हैं। मंदिर के पूर्व और पश्चिम में शमशान है। इसी कारण इस मंदिर को शमशान चंडिका' के रूप में भी जाना जाता है। नवरात्र पूजा के दौरान तांत्रिक यहां तंत्र-सिद्धि के लिए भी जमा होते हैं। इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा बताया जाता है। ऐसी जनश्रुति है कि अंग देश के राजा कर्ण मां चंडिका के भक्त थे और हर दिन खौलते हुए तेल की कड़ाह में कूदते थे। इस प्रकार अपनी जान देकर वह मां चंडिका की पूजा किया करते थे। माता उनके इस बलिदान से अत्यंत प्रसनन हो जाती थी और हर रोज वह राजा कर्ण को जीवित कर देती थीं। इसके अलावा माता कर्ण को सवा मन सोना भी देती थीं। राजा कर्ण उस सोने को मुंगेर के कर्णचैड़ा पर ले जाकर गरीबों में बांट देते थे।

PunjabKesari

इस बात की जानकारी उज्जैन के राजा विक्रमादित्य को मिली। एक दिन राजा विक्रमादित्य वेश बदलकर अंग देश पहुंच गए। उन्होंने देखा कि महाराजा कर्ण ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान कर मां चंडिका के सामने रखे खौलते तेल के कड़ाह में कूद जाते हैं और माता उनके अस्थि-पंजर शरीर पर अमृत छिड़ककर उन्हें पुनर्जीवित कर देती हैं। माता उन्हें पुरस्कार स्वरूप सवा मन सोना भी देती थीं। एक दिन चुपके से राजा विक्रमादित्य राजा कर्ण के आगमन के पहले ही मंदिर पहुंच गए और खौलते तेल के कड़ाह में कूद गए। बाद में रोजाना की भांति मां ने उन्हें जीवित कर दिया। उन्होंने लगातार तीन बार कड़ाह में कूदकर अपना शरीर समाप्त किया और माता ने उन्हें हर बार जीवित कर दिया। चौथी बार माता ने उन्हें रोका और वर मांगने को कहा। राजा विक्रमादित्य ने माता से सोना देनेवाला थैला और अमृत कलश मांग लिया। ऐसी मान्यता है कि माता ने दोनों चीज देने के बाद वहां रखे कड़ाह को उलट दिया और उसी के अन्दर विराजमान हो गईं।

Related Story

Trending Topics

IPL
Lucknow Super Giants

Royal Challengers Bengaluru

Teams will be announced at the toss

img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!