Edited By Swati Sharma, Updated: 12 Apr, 2024 10:27 AM
जाने-माने सामाजिक चिंतक एवं भाषाविद डॉ. आर एन चौरसिया ने कहा कि मानव की विकास प्रक्रिया में मातृभाषा का सर्वाधिक योगदान होता है, जो मानवीय भावनाओं को सहजता एवं पूर्णता से व्यक्त करने का एक बेहतरीन माध्यम है।
दरभंगा: जाने-माने सामाजिक चिंतक एवं भाषाविद डॉ. आर एन चौरसिया ने कहा कि मानव की विकास प्रक्रिया में मातृभाषा का सर्वाधिक योगदान होता है, जो मानवीय भावनाओं को सहजता एवं पूर्णता से व्यक्त करने का एक बेहतरीन माध्यम है।
'मातृभाषा का हमारे जीवन में सर्वाधिक महत्व'
सिन्धी मातृभाषा दिवस के अवसर पर पूज्य सिंधी पंचायत, दरभंगा द्वारा आयोजित ‘व्यक्तित्व के विकास में मातृभाषा का योगदान' विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डॉ. चौरसिया ने कहा की मातृभाषा का हमारे जीवन में सर्वाधिक महत्व होता है, क्योंकि इसे हम मां का दूध पीते तथा उसकी गोद में खेलते हुए बिना किसी विशेष परिश्रम के स्वत: ही सीख जाते हैं। अपनी मातृभाषा से ही किसी व्यक्ति का संपूर्ण विकास संभव है। यह हमारे अस्तित्व से जुड़ी हुई होती है। उन्होंने कहा कि भारत में 19 हजार पांच सौ से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें करीब 2900 मातृभाषाएं विलुप्त होने के कगार पर है। पूरे विश्व में 14 दिन में कोई ना कोई एक भाषा विलुप्त हो रही है।
डॉ. चौरसिया ने लोगों का आह्वान किया कि वह मातृभाषा की संरक्षण एवं संवर्धन के लिए आगे आए तभी उनको विलुप्त होने से बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि 10 अप्रैल, 1967 को 21वें संविधान संशोधन के द्वारा सिन्धी भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था। इस दिन को सिन्धी समाज पर्व के रूप में मनाता है। डॉ. चौरसिया ने कहा कि सिन्धी मुख्यत: भारत के पश्चिमी हिस्से और सिन्ध प्रांत में बोली जाने वाली प्रमुख भाषा है। भारत में सिंधी को मातृभाषा के रूप में बोलने वाले गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश तथा नई दिल्ली के साथ ही छिटपुट पूरे भारतवर्ष में रहते हैं, जिनकी संख्या 70 लाख से अधिक है।