तुलसीदास और प्रेमचंद की जयंती पर साहित्यिक संगोष्ठी, रचनाओं के लोककल्याण पक्ष पर हुआ विमर्श

Edited By Ramanjot, Updated: 31 Jul, 2025 09:40 PM

tulsidas jayanti 2025

:मुंशी प्रेमचंद और संत तुलसीदास के जयंती के मौके पर गुरुवार को मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग(राजभाषा) की ओर से एक साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

पटना:मुंशी प्रेमचंद और संत तुलसीदास के जयंती के मौके पर गुरुवार को मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग(राजभाषा) की ओर से एक साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। अभिलेख भवन स्थित सभागार में कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्जवलन और माल्यार्पण के साथ बिहार गीत से हुई। विभाग के निदेशक एस.एम. परवेज आलम ने सवागत भाषण में कहा कि तुलसीदास ने समाज के नैतिक उत्थान के लिए काम किया। उनकी रचनाओं में श्रृंगार और भक्ति रस के साथ धर्म और नीति समाहित थे। वहीं, प्रेमचंद की 145वीं जयंती पर उन्होंने कहा कि उनकी कहानियां दीन-दुखियों, शोषितों और भारतीय किसानों की पीड़ा को दर्शाती हैं। उनकी रचनाओं में यथार्थ और करुणा का जीवंत चिंत्रण है, जो मानव कल्याण की भावना को दर्शाता है।

प्रेमचंद के उपन्यास सदैव जीवन रहेंगे: डॉ. शिप्रा शर्मा

कार्यक्रम में दरभंगा हाउस के हिंदी विभाग (स्नातकोत्तर) की प्रोफेसर डॉ. शिप्रा शर्मा ने प्रेमचंद की भाषा शैली पर विमर्श किया। उन्होंने प्रेमचंद के उपन्यासों को सदैव जीवंत रहने वाला बताते हुए कहा कि उनके उपन्यासों, कहानियों पर आज भी शोधकार्य होते हैं। प्रेमचंद ने किसानों और मजदूरों को अपने लेखन का केंद्र बनाया, जिसे हमेशा पढ़ा जाएगा। उन्होंने हिंदी को सरल और सहज बनाने पर जोर देते हुए कहा कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद प्रेमचंद की रचनाएं आज भी पढ़ी जा रही हैं।

तुलसीदास और प्रेमचंद की जयंती एक साहित्यिक संयोग: डॉ. राम सिंहासन सिंह

राम लखन सिंह यादव कॉलेज से सेवानिविर्त प्रोफेसर डॉ. राम सिंहासन सिंह ने तुलसीदास और प्रेमचंद जयंती एक ही दिन होने को साहित्यिक संयोग बताया। उन्होंने कहा कि दोनों के साहित्य में लोककल्याण और लोकभावना बसती है। तुलसीदास ने मर्यादा और ज्ञान का चित्रण किया, जबकि प्रेमचंद ने गाय, बैल, कुत्ते जैसे पशुओं के प्रति संवेदना जाहिर करने वाली रचनायें लिखी। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि इनकी रचनाओं को जीवन में उतारकर सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है। 

मुरारिका संस्कृत कॉलेज, पटना सिटी से सेवानिविर्त चन्द्रभूषण मिश्र ने तुलसीदास के व्यक्तित्व पर विचार रखे। रांची विवि के हिंदी विभाग (स्नातकोत्तर) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. जंग बहादुर पांडेय ने कहा कि रामचरितमानस की रचनाएं सुमति को अपनाने और कुमति से बचने का संदेश देती हैं। कार्यक्रम में जिज्ञासु बाल विद्यालय के प्राचार्य शशिकांत शर्मा ने तुलसीदास के पदों का गायन किया। मंच संचालन विभाग के उप निदेशक डॉ. प्रमोद कुंवर ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन अनिल कुमार लाल ने किया।
 

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