बिहार आरक्षण मामला: RJD की याचिका पर SC ने जारी किया नोटिस, केंद्र एवं राज्य सरकार से मांगा जवाब

Edited By Ramanjot, Updated: 06 Sep, 2024 02:42 PM

supreme court issued notice on the petition for 65 reservation in bihar

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने राजद की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन की दलील पर संज्ञान लिया कि याचिका पर फैसले की आवश्यकता है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ नोटिस...

नई दिल्ली/पटनाः उच्चतम न्यायालय ने बिहार में संशोधित आरक्षण कानून को रद्द करने संबंधी पटना उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की एक याचिका पर केंद्र एवं राज्य सरकार से शुक्रवार को जवाब मांगा। इस कानून में दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने का प्रावधान था। 

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने राजद की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन की दलील पर संज्ञान लिया कि याचिका पर फैसले की आवश्यकता है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ नोटिस जारी करें और इसे लंबित याचिकाओं के साथ जोड़ दें।'' शीर्ष अदालत ने 29 जुलाई को इसी तरह की 10 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बिहार में संशोधित आरक्षण कानून को रद्द करने के उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। इस कानून के कारण नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राज्य सरकार आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर पाई थी। पीठ ने हालांकि फैसले के खिलाफ बिहार सरकार की याचिकाओं को सुनने पर सहमति जताई। राज्य सरकार ने भी उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया है। 

उच्च न्यायालय ने 20 जून के अपने फैसले में घोषित किया था कि आरक्षण संबंधी संशोधित कानून ‘‘संविधान'' के खिलाफ हैं, ‘‘कानून सम्मत'' नहीं हैं और इससे ‘‘समानता के विचार का उल्लंघन'' होता है। पिछले साल नवंबर में राज्य विधायिका के दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से आरक्षण संबंधी संशोधित कानून पारित किया था। उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने बिहार पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए) (संशोधन) अधिनियम, 2023 तथा बिहार (शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई की अनुमति दी थी। 

करीब 87 पन्नों के विस्तृत फैसले में उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि उसे ‘‘ऐसी कोई परिस्थिति नहीं दिखती है'' जिससे कि राज्य सरकार को इंदिरा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आरक्षण पर निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करना आवश्यक हो जाए। यह संशोधन एक जातिगत सर्वेक्षण के बाद किया गया था, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की आबादी राज्य की कुल आबादी का 63 प्रतिशत और अनुसूचित जाति (एससी) एवं अनुसूचित जनजाति (एसटी) की संख्या कुल आबादी का 21 प्रतिशत बताई गई थी। केंद्र द्वारा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अलावा अन्य जातियों की नए सिरे से जनगणना करने में असमर्थता जताने के बाद बिहार सरकार ने यह गणना कराई थी। आखिरी बार 1931 की जनगणना के साथ जातिगत जनगणना कराई गई थी।

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