Edited By Ramanjot, Updated: 30 Jul, 2025 08:17 PM

राज्य में मानव तस्करी से जुड़े मामले बेहद संजिदा होते हैं। इनकी रोकथाम में पुलिस की भूमिका बेहद अहम होती है। डीएसपी समेत अन्य पुलिस पदाधिकारी की भूमिका अहम समझी जा रही है।
पटना:राज्य में मानव तस्करी से जुड़े मामले बेहद संजिदा होते हैं। इनकी रोकथाम में पुलिस की भूमिका बेहद अहम होती है। डीएसपी समेत अन्य पुलिस पदाधिकारी की भूमिका अहम समझी जा रही है। सभी पदाधिकारी संवेदनशीलता के साथ इन मामलों का निपटारा करें। इसमें आम लोगों की भूमिका भी काफी बढ़ जाती है। लोगों को भी सजग होकर ऐसे मामलों में मुखर रूप से सामने आना चाहिए। ये बातें डीजीपी विनय कुमार ने बुधवार को पुलिस मुख्यालय सरदार पटेल भवन के सभागार में कही। वे मानव तस्करी के विरुद्ध विश्व दिवस के मौके पर मानव तस्करी और ट्रांसजेंडर मामलों पर आयोजित राज्य स्तरीय कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे।
डीजीपी कुमार ने कहा कि मादक पदार्थों की तस्करी के बाद मानव तस्करी दूसरा ऐसा सबसे बड़ा अपराध है। पहले यह प्राथमिकताओं में नहीं होता था, लेकिन हाल के वर्षों में इसके प्रति संवेदनशीलता काफी बढ़ी है। हाल के वर्षों में बिहार में 150 ट्रैफिकर्स को गिरफ्तार किया गया है। इस तरह के मामलों में लगातार कार्रवाई की जा रही है। सभी जिलों में वर्ष 2013 से एंटी ट्रैफिकिंग यूनिट (एटीयू) गठित है। अगर कोई बच्चा लगातार तीन महीने तक बरामद नहीं होता है, तो ऐसे मामले इस इकाई को ट्रांसफर हो जाते हैं।
डीजीपी ने कहा कि 2018-19 के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार से प्रति वर्ष करीब 7 हजार बच्चे लापता होते हैं, जिसमें 4 से 5 हजार बरामद हो जाते हैं। परंतु 2-3 हजार बच्चों का कोई अतापता नहीं होता है। ऐसे गुमशुदा बच्चों को भिक्षावृत्ति से लेकर अन्य तरह के अनैतिक कार्यों में धकेल दिया जाता है। ये बच्चे किसी न किसी रूप में अपराधियों या माफियाओं के चंगुल में ट्रैप हो जाते हैं। इसके लिए एक पोर्टल भी है, जिसकी मदद से आपराधिक चंगुल में फंसे ऐसे बच्चों को बाहर निकाला जाता है। इसके लिए 2008 में अस्तित्व नाम से एक कार्ययोजना भी बनी है।
विनय कुमार ने कहा कि मानव खासकर बच्चों की तस्करी के कई मामलों में सफेदपोश भी शामिल होते हैं। ऐसे लोगों की पहचान होने पर इनके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की जाती है। समाज को भी ऐसे मामलों में उद्वेलित होने की जरूरत है। बाल तस्करी को विकराल समस्या बताते हुए उन्होंने कहा कि इस पर अंकुश लगाना बेहद जरूरी है। आजकल बच्चे भी तेजी से अपराध की तरफ आकर्षित होते जा रहे हैं। इसके लिए अभिभावक भी काफी हद तक दोषी हैं। उन्हें बच्चों का ध्यान रखना चाहिए कि उनके बच्चे क्या कर रहे हैं, किसकी संगत में हैं जैसी अन्य जरूरी बातें शामिल हैं।
इस मौके पर ट्रैफिकिंग के चंगुल से मुक्त कराकर लाई गई समस्तीपुर के खानपुर की रहने वाली रतना ने अपनी आपबीती साझा करते हुए बताया कि घर से नाराज होकर वह भागकर समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पहुंची थी। वहां उसे एक महिला ने बहला-फुसला कर कैसे तस्कर रोशनी खातून के हाथों 1 लाख में बेच दी। 2 साल बाद उसे इस दलदल से निकाला गया। इसी तरह जहानाबाद के मखदूमपुर निवासी अमृत कुमार और गया के चेकरी निवासी सत्येंद्र कुमार ने भी अपनी-अपनी आपबीती बताई। इन वैरियर को डीजीपी ने सम्मानित भी किया गया।
इसके अलावा रेल एसपी अमृतेंशु शेखर ठाकुर, सारण एसपी डॉ. कुमार आशीष, पटना सिटी एसपी भानु प्रताप सिंह और रोहतास एसपी रौशन कुमार को भी उल्लेखनीय कार्य करने के लिए डीजीपी ने सम्मानित किया। इस मौके पर एडीजी (कमजोर वर्ग) अमित कुमार जैन, एडीजी (सीआईडी) पारसनाथ समेत अन्य मौजूद थे।