राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बावजूद मजबूती से उभरे हेमंत सोरेन, सत्ता में आने तक का सफर नहीं था आसान

Edited By Khushi, Updated: 29 Nov, 2024 12:19 PM

despite political ups and downs hemant soren emerged strongly

झारखंड के सबसे युवा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का सियासी करियर उतार-चढ़ाव भरा रहा है, जिसमें उन्हें कानूनी लड़ाई से लेकर पार्टी में आंतरिक कलह तक का सामना करना पड़ा है। हालांकि, सोरेन (49) राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में मजबूती से उभरे हैं और खुद को...

रांची: झारखंड के सबसे युवा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का सियासी करियर उतार-चढ़ाव भरा रहा है, जिसमें उन्हें कानूनी लड़ाई से लेकर पार्टी में आंतरिक कलह तक का सामना करना पड़ा है। हालांकि, सोरेन (49) राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में मजबूती से उभरे हैं और खुद को आदिवासी अधिकारों के प्रबल पैरोकार के रूप में स्थापित किया है, लेकिन सत्ता में उनका आना बिल्कुल भी आसान नहीं था। अपने कंधों पर आदिवासी उम्मीदों और आकांक्षाओं का भार लेकर, सोरेन को एक मुश्किल लड़ाई का सामना करना पड़ा। उन्हें पार्टी के भीतर अंदरूनी कलह, बाहरी दबाव और अथक विपक्षी ताकतों से निपटना पड़ा। उनकी कहानी दृढ़ इरादों, धैर्य और अटूट संकल्प की कहानी है- एक ऐसे नेता की गाथा, जिसने हर लड़ाई लड़ी, न केवल सत्ता के लिए, बल्कि अपने लोगों के सम्मान के लिए।

सोरेन ने बीते गुरुवार को यहां एक भव्य समारोह में राज्य के 14वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। झामुमो नेता रिकॉर्ड चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं। हाल में हुए चुनाव में हेमंत सोरेन ने अपनी पत्नी कल्पना सोरेन के साथ पिछले दो महीनों में लगभग 200 चुनावी रैलियों को संबोधित किया। सोरेन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)-नीत केंद्र सरकार पर उनके प्रशासन को अस्थिर करने का प्रयास करने का आरोप लगाते रहे हैं। दस अगस्त 1975 को हजारीबाग के निकट नेमरा गांव में जन्मे हेमंत सोरेन के शुरुआती जीवन पर उनके पिता एवं झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के सह-संस्थापक शिबू सोरेन की राजनीतिक विरासत का प्रभाव रहा। हालांकि, हेमंत को शुरुआत में अपने पिता के उत्तराधिकारी के तौर पर नहीं देखा जाता था। उनके बड़े भाई दुर्गा झारखंड की राजनीति में शिबू सोरेन के नामित उत्तराधिकारी थे, लेकिन 2009 में उनकी असामयिक मौत के बाद हेमंत ने राज्य में पार्टी की कमान संभाली। हेमंत ने पटना हाईस्कूल से इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा में दाखिला लिया, लेकिन पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। हेमंत ने 2009 में राज्यसभा सदस्य के रूप में अपनी सियासी पारी की शुरुआत की। हालांकि, 2010 में अर्जुन मुंडा के नेतृत्व वाली तत्कालीन भाजपा-झामुमो सरकार में उपमुख्यमंत्री बनने के लिए उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। वर्ष 2012 में भाजपा और झामुमो की राहें जुदा होने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।

वर्ष 2013 में हेमंत ने कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के समर्थन से 38 साल की उम्र में झारखंड के सबसे युवा मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। हालांकि, उनका पहला कार्यकाल बहुत छोटा था। दिसंबर 2014 में भाजपा ने झारखंड की सत्ता में वापसी की और हेमंत विधानसभा में विपक्ष के नेता बने। वर्ष 2016 में हेमंत के सियासी करियर में उस वक्त एक अहम मोड़ आया, जब भाजपा-नीत सरकार ने आदिवासी भूमि की रक्षा करने वाले कानूनों, मसलन- छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम, में संशोधन की कोशिश की। हेमंत सोरेन ने आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए एक बड़े आंदोलन का नेतृत्व किया, जिससे न केवल उन्हें व्यापक समर्थन मिला, बल्कि सत्ता में उनकी वापसी का मंच भी तैयार हुआ। हेमंत दिसंबर 2019 में कांग्रेस और राजद के सहयोग से एक बार फिर मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुए। उनकी पार्टी ने झारखंड विधानसभा चुनाव में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए कुल 81 सीट में से 30 पर कब्जा जमाया, जो उनके नेतृत्व की बढ़ती लोकप्रियता की तरफ भी इशारा करता था। हालांकि, हेमंत का कार्यकाल विवादों से घिरा रहा है। वर्ष 2023 की शुरुआत में भूमि घोटाले से जुड़े कथित धनशोधन मामले में उनका नाम उछला। इस साल 31 जनवरी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के कुछ देर बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। झारखंड उच्च न्यायालय ने जून में यह कहते हुए हेमंत की जमानत अर्जी मंजूर कर ली कि उनके अपराध करने की कोई संभावना नहीं थी। हेमंत लगातार कहते आए हैं कि उनकी गिरफ्तारी राजनीति से प्रेरित थी और वह उनकी सरकार को गिराने की साजिश का शिकार हुए। इन चुनौतियों के बावजूद राज्य की आदिवासी आबादी के हक के लिए उनकी मुखर आवाज ने उनकी राजनीतिक पहचान को मजबूती दी।

हेमंत ने कई ऐसी पहल की है, जिनका मकसद आदिवासियों को सशक्त बनाना और यह सुनिश्चित करना है कि उन्हें राज्य की आर्थिक वृद्धि का फायदा मिले। उनके नेतृत्व में राज्य सरकार ने ‘आपके अधिकार, आपकी सरकार, आपके द्वार' योजना शुरू की, जिससे सरकारी सेवाएं लोगों के दरवाजे तक पहुंच गईं। इसके अलावा, राज्य की पेंशन योजना के विस्तार और ‘मुख्यमंत्री मईया सम्मान योजना' ने उनकी सरकार को और मजबूत किया। इस योजना के तहत 18 साल से 51 साल की महिलाओं को प्रतिमाह 1,000 रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। हेमंत ने दावा किया कि सामाजिक कल्याण के प्रति उनकी सरकार की प्रतिबद्धता 2023 में घोषित किसान ऋण माफी से स्पष्ट है, जिसका उद्देश्य 1.75 लाख से अधिक किसानों को लाभ पहुंचाना है। इसके अलावा, उनकी सरकार ने बकाया बिजली बिल माफ कर दिया है और 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली प्रदान करने वाली योजना शुरू की है। अपने पूरे सियासी सफर में हेमंत को भाजपा के तीखे विरोध का सामना करना पड़ा है और उन्होंने केंद्र सरकार पर बिना उचित क्षतिपूर्ति के बार-बार झारखंड के संसाधनों का दोहन करने का आरोप लगाया है। हेमंत ने केंद्र पर 1.36 लाख करोड़ रुपये के कोयला खनन बकाये का भुगतान न करने का आरोप लगाया है। हेमंत को अपने सियासी सफर में झामुमो में आंतरिक कलह की मार भी झेलनी पड़ी। वर्ष 2022 में अवैध खनन पट्टे से जुड़े आरोपों के कारण वह विधायक के रूप में अयोग्य ठहराए जाने से बाल-बाल बचे और मुख्यमंत्री के रूप में अपना पद बरकरार रखने में भी कामयाब रहे। 

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