Edited By Swati Sharma, Updated: 03 Jul, 2025 12:14 PM

Bihar Assembly Elections: बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर ‘इंडिया' गठबंधन के घटक दलों के नेताओं ने निर्वाचन आयोग से मुलाकात कर इस कवायद को कराने के समय से जुड़ी अपनी चिंताओं से अवगत कराया। उन्होंने आरोप लगाया कि विधानसभा...
Bihar Assembly Elections: बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर ‘इंडिया' गठबंधन के घटक दलों के नेताओं ने निर्वाचन आयोग से मुलाकात कर इस कवायद को कराने के समय से जुड़ी अपनी चिंताओं से अवगत कराया। उन्होंने आरोप लगाया कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कराई जा रही इस कवायद के कारण राज्य के दो करोड़ लोग वोट डालने का अधिकार खो सकते हैं।
कांग्रेस ने कहा कि प्रधानमंत्री (नरेन्द्र मोदी) की नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था को नष्ट कर दिया, अब बिहार में निर्वाचन आयोग की वोटबंदी भारत के लोकतंत्र को तहस-नहस कर देगी। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा), राष्ट्रीय जनता दल(राजद), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) लिबरेशन समेत 11 दलों के नेताओं ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार और अन्य निर्वाचन आयुक्तों से मुलाकात की और राज्य में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले किये जा रहे विशेष पुनरीक्षण को लेकर आपत्ति जताई। ‘इंडिया' गठबंधन में शामिल दल विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया का मुखर होकर विरोध कर रहे हैं। प्रक्रिया बिहार में पहले ही शुरू हो चुकी है और इसे असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी लागू किया जाना है, जहां अगले साल चुनाव होने हैं। मुलाकात के बाद कांग्रेस नेता अभिषेक सिंघवी ने संवाददाताओं से कहा कि इस प्रक्रिया के कारण कम से कम दो करोड़ लोग मताधिकार से वंचित हो सकते हैं, क्योंकि बिहार के लगभग आठ करोड़ मतदाताओं में से कई, विशेषकर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, प्रवासी और गरीब लोग, इतने कम समय में अपने और माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र चुनाव अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत करने की स्थिति में नहीं होंगे। उन्होंने यह दावा भी किया कि वे लोग मतदाता सूची से अपने नाम हटाए जाने को चुनौती नहीं दे पाएंगे, क्योंकि तब तक चुनाव शुरू हो जाएंगे और जब चुनाव जारी हों तो अदालतें चुनौतियों पर सुनवाई नहीं करतीं।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ‘एक्स' पर एक पोस्ट में कहा, "नवंबर 2016 में प्रधानमंत्री की 'नोटबंदी' ने हमारी अर्थव्यवस्था को नष्ट कर दिया। एसआईआर को देखकर लग रहा है कि बिहार और अन्य राज्यों में निर्वाचन आयोग की 'वोट बंदी' हमारे लोकतंत्र को नष्ट कर देगी।" सिंघवी ने कहा, "हमने निर्वाचन आयोग से पूछा कि आखिरी बार संशोधन 2003 में हुआ था और 22 वर्षों में 4-5 चुनाव हो चुके हैं, क्या वे सभी चुनाव त्रुटिपूर्ण थे। 2003 में एसआईआर आम चुनावों से एक वर्ष पहले और विधानसभा चुनावों से दो वर्ष पहले आयोजित किया गया था।" उन्होंने कहा कि अधिकतम एक या दो महीने की अवधि में, आयोग भारत के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले राज्य बिहार में चुनावी पुनरीक्षण अभियान चला रहा है, जहां लगभग आठ करोड़ मतदाता हैं। उन्होंने कहा, "इस तरह मताधिकार से वंचित करना और अधिकारहीन करना संविधान के मूल ढांचे पर हमला है। भारत में 1950 में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार दिया गया, जबकि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे तथाकथित उन्नत देशों को यह 1924 और 1928 में ही मिल गया था।
पुनरीक्षण का निर्णय आयोग का तुगलकी फरमान- बिहार कांग्रेस
बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राजेश कुमार ने आरोप लगाया कि पुनरीक्षण का निर्णय आयोग का तुगलकी फरमान है। उन्होंने दावा किया, "हमें काफ़ी आश्चर्य हुआ कि निर्वाचन आयोग हमारी बात सुनने को तैयार नहीं था। चर्चा के दौरान आयोग सिर्फ अपनी बातें कहने में व्यस्त रहा और हमें पुनरीक्षण की प्रक्रिया समझाता रहा।" उन्होंने बिहार से बड़ी संख्या में लोगों के रोजगार के लिए बाहर होने का उल्लेख किया और दावा किया कि आयोग ठान बैठा है कि वह बिहार में 20 प्रतिशत वोटरों को वोट के अधिकार से वंचित करके रहेगा।
राजद नेता मनोज झा ने सवाल किया कि क्या यह कवायद लोगों को मताधिकार से वंचित करने के बारे में है? उन्होंने कहा, "क्या आप बिहार में संदिग्ध मतदाताओं को ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं?" भाकपा (माले) लिबरेशन के नेता दीपांकर भट्टाचार्य ने इस बात का उल्लेख किया कि बिहार में 20 प्रतिशत लोग काम के लिए राज्य से बाहर जाते हैं। भट्टाचार्य ने कहा, "निर्वाचन आयोग कहता है कि आपको सामान्य निवासी बनना होगा। इसलिए वे प्रवासी श्रमिक बिहार में मतदाता नहीं हैं।"