Edited By Diksha kanojia, Updated: 13 Jun, 2021 11:50 AM
राज्य सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि झारखंड के पिछड़े और नक्सलवाद प्रभावित इलाके में भी सरकार के जागरूकता अभियान का असर नजर आने लगा है, उदाहरण के तौर पर दुमका के मसलिया प्रखंड स्थित रांगा पंचायत के गांवों में 85 प्रतिशत से अधिक टीकाकरण हो चुका है।...
रांचीः झारखंड में कोविड-19 के टीकाकरण को लेकर जागरूकता बढ़ रही है और शुरू में टीकाकरण का विरोध करने वाले दूरवर्ती नक्सल प्रभावित गांवों में भी 85 प्रतिशत तक लोगों ने टीकाकरण करवा लिया है जबकि कुछ अन्य दूरदराज के गांवों में सौ प्रतिशत तक टीकाकरण कराये जाने की पुष्टि हुई है।
राज्य सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि झारखंड के पिछड़े और नक्सलवाद प्रभावित इलाके में भी सरकार के जागरूकता अभियान का असर नजर आने लगा है, उदाहरण के तौर पर दुमका के मसलिया प्रखंड स्थित रांगा पंचायत के गांवों में 85 प्रतिशत से अधिक टीकाकरण हो चुका है। वहीं शिकारीपाड़ा, दुमका और काठीकुंड प्रखंड के कई गांवों में 70 प्रतिशत से अधिक टीकाकरण हो चुका है। लातेहार जिले के उग्रवाद प्रभावित प्रखंड गारू में भी तेजी से टीकाकरण कार्य जारी है। लगभग 36 हजार आबादी वाले इस प्रखंड में निवास करने वाले ग्रामीण भी टीकाकरण के प्रति गंभीर हो रहे हैं और यहां 18 वर्ष से अधिक उम्र के लगभग 40 प्रतिशत लोगों का टीकाकरण कार्य हो चुका है।
प्रवक्ता ने बताया कि गांव में जाकर उनकी ही भाषा, बोली में टीकाकरण के महत्व को समझाने से भ्रम और अफवाहों का असर खत्म होने लगा है। उन्होंने बताया कि लोग खुद टीकाकरण अभियान में बढ़-चढ़कर भागीदारी निभाने लगे हैं, यही कारण है कि कुछ गांवों को शत-प्रतिशत टीकाकरण का तमगा मिल चुका है। ऐसा ही एक गांव है, बनमारा। यह झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित सिमडेगा जिले के कुल्लू केरा पंचायत में है। यहां निवास करने वाले शत-प्रतिशत लोगों ने आगे आकर कोरोना से बचाव हेतु टीका ले लिया है।
उन्होंने बताया कि यही जागरूकता सिमडेगा के ओडिशा बॉर्डर से सटे कुरडेग प्रखंड के चडरी मुंडा पंचायत स्थित जींस जरा कानी गांव के लोगों ने भी दिखाई है। सुदूरवर्ती गांव होने के बावजूद यहां के ग्रामीणों ने खुद के और अपने परिवार के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए शत-प्रतिशत टीकाकरण करा लिया है। यहां के ग्रामीण इतने जागरूक हैं कि वे अपने गांवों में दूसरे राज्यों और जिला से गांव वापस आ रहे लोगों एवं उनके परिजनों को सामुदायिक भवन में 14 दिनों तक का पृथकवास भी कराते हैं। भाषा इन्दु