Edited By Khushi, Updated: 19 Oct, 2025 06:11 PM

Diwali 2025: झारखंड की राजधानी रांची में दीपोत्सव को लेकर बाजारों में धूम मची हुई है। लालपुर, अपर बाजार, कांटाटोली, मेन रोड, हरमू और हटिया चौक सहित शहर के सभी प्रमुख बाजार दीपावली की रौनक से जगमगा उठे हैं। हर गली और सड़क रंग-बिरंगी झालरों, रोशनी और...
Diwali 2025: झारखंड की राजधानी रांची में दीपोत्सव को लेकर बाजारों में धूम मची हुई है। लालपुर, अपर बाजार, कांटाटोली, मेन रोड, हरमू और हटिया चौक सहित शहर के सभी प्रमुख बाजार दीपावली की रौनक से जगमगा उठे हैं। हर गली और सड़क रंग-बिरंगी झालरों, रोशनी और सजावटी लाइटों से जगमगा रही है।
मिठाइयों की खुशबू, पूजा सामग्री और दीपक खरीदने आए लोगों की भीड़ ने बाजारों की रौनक दुगनी कर दी है। दीपावली के खास अवसर पर लोग भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं, इसलिए पूजा की सभी जरूरी वस्तुओं की बिक्री में भी तेजी देखी जा रही है। बाजारों में पूजा थाल, अगरबत्ती, कपूर, कलश, धूप, देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बड़े पैमाने पर उपलब्ध हैं। इसके साथ ही मिट्टी के दीये, घरौंदा, करंज का तेल, रंगोली, तोरण और कैंडल खरीदने वालों की संख्या भी बढ़ी है। इस बार सबसे अधिक भीड़ मिट्टी के दीयों की दुकानों पर नजर आ रही है। लालपुर चौक, अपर बाजार और कांटाटोली के कुम्हारों और कारीगरों ने अपने स्टॉल रंग-बिरंगी रोशनी और पारंपरिक सजावट से सजाए हैं। पारंपरिक मिट्टी के दीयों के साथ-साथ रंगीन, डिजाइनर और बिजली से चलने वाले निराले दीयों की मांग भी खूब बढ़ी है। हालांकि इस बार मिट्टी और तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण दीयों की कीमतों में 20 से 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
पिछले साल जहां दीयों की कीमत प्रति सैकड़ा 120 से 130 रुपये थी, वहीं अब यह 150 से 200 रुपये तक पहुंच गई है। कुम्हारों का कहना है कि इस बार बारिश की वजह से कच्ची मिट्टी खराब हो गई थी, जिससे दीये बनाने में दिक्कत आई। तेल व परिवहन की लागत में भी वृद्धि हुई है, जिसका सीधा असर दामों पर पड़ा है। दीपावली की खरीदारी कर रहे लोग बताते हैं कि महंगाई के बावजूद वे पारंपरिक मिट्टी के दीयों को ही अधिक पसंद करते हैं। खरीदारी करने आयी सुमित्रा देवी ने कहा कि दीयों के साथ दीपावली का खास आनंद जुड़ा है और कीमत बढ़ने से कोई फर्क नहीं पड़ता। दीपोत्सव से स्थानीय कुम्हारों और ग्रामीण कारीगरों को रोजगार मिला है। महिला स्वयं सहायता समूह भी मोमबत्तियां और हस्तनिर्मित साज-सज्जा की वस्तुएं बेचकर आत्मनिर्भर बन रहे हैं।