Edited By Swati Sharma, Updated: 07 Aug, 2024 03:52 PM
भागलपुर समाहरणालय में स्थित समीक्षा भवन में कार्बन न्यूट्रल राज्य बनाने की दिशा में 'बिहार राज्य की जलवायु अनुकूलन एवं न्यून कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति' प्रोजेक्ट के तहत प्रसार कार्यशाला का आयोजन बुधवार को किया गया।
भागलपुर: भागलपुर समाहरणालय में स्थित समीक्षा भवन में कार्बन न्यूट्रल राज्य बनाने की दिशा में 'बिहार राज्य की जलवायु अनुकूलन एवं न्यून कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति' प्रोजेक्ट के तहत प्रसार कार्यशाला का आयोजन बुधवार को किया गया।
कुमार अनुराग की अध्यक्षता में किया गया कार्यक्रम का शुभारंभ
कार्यक्रम का शुभारंभ भागलपुर के उप-विकास आयुक्त कुमार अनुराग की अध्यक्षता में किया गया। कार्यशाला में अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि एक विकासशील देश के रूप में, हमारी विकास की गति विकसित देशों की तुलना में अधिक होगी, लेकिन कार्बन और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन जैसे पहलुओं को भी ध्यान में रखना होगा। सभी हितधारक विभागों को सड़क और भवन निर्माण जैसे कार्यों में जलवायु अनुकूल प्रथाओं को अपनाना चाहिए, ताकि विकास सतत रूप से हो। उन्होंने प्लास्टिक के उपयोग को रोकने और नवकरणीय ऊर्जा और अन्य पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देने का आग्रह किया। भागलपुर के वरीय उप- समाहर्ता कृष्ण मुरारी ने स्वागत उद्बोधन में जलवायु परिवर्तन, इसके प्रतिकूल प्रभावों और सुधारात्मक क़दमों बारे में बताया। इस साल गर्मियों में अत्यधिक तापमान की स्थिति का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि बिहार अत्यधिक मौसमी घटनाओं और आपदाओं के प्रति अति- संवेदनशील है। उन्होंने आगे कहा कि यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम बिहार को नेट ज़ीरो राज्य बनाने के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से सभी आवश्यक प्रयास करें। कार्यशाला की विस्तृत जानकारी डब्लूआरआई इंडिया के प्रोग्राम प्रबन्धक डॉ. शशिधर कुमार झा एवं श्री मणि भूषण कुमार झा द्वारा दिया गया।
ये है इस कार्यशाला का उद्देश्य
मणि भूषण ने कहा कि पिछले ढाई वर्षों के दौरान बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) और डब्ल्यू.आर.आई. इंडिया तथा अन्य संगठनों की तकनीकी सहायता से बिहार राज्य के उक्त संकल्प को पूर्ण करने हेतु राज्य स्तरीय दीर्घकालीन रणनीति में अनुकूलन और शमन दोनों ही उपायों को जोड़कर राज्य में जलवायु संरक्षण से संबंधित रणनीति प्रस्तावित की हैं। इस कार्यशाला का उद्देश्य रणनीति का जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन हेतु स्थानीय हितधारकों को इसके बारे में संवेदित करना, क्रियान्वयन में आने वाली चुनौतियों और कठिनाइयों की पहचान करना तथा उनके समाधान के रास्तों पर विचार विमर्श करना है। डॉ शशिधर ने अपने संबोधन में कहा कि बिहार में पिछले 50 सालों में तापमान में 0.8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है और 2030 तक तापमान में 0.8- 1.3 डिग्री सेल्सियस, 2050 तक 1.4- 1.7 डिग्री सेल्सियस और 2070 तक 1.8-2.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने का अनुमान है। इसके अलावा, मानसून की शुरुआत में देरी हो रही है। जलवायु परिवर्तन अनुकूलन उपायों के बारे में बताते हुए उन्होंने फसल एवं कृषि प्रणाली में विविधता, सतही और भूजल का एकीकृत प्रबंधन, वन पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा, संरक्षण और पुनर्जनन, निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना और आपदा के समय आजीविका की सुरक्षा और संवर्द्धन का उल्लेख किया।
अविनाश कुमार ने बिहार में उद्योग की भूमिका पर दिया जोर
डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स के प्रोग्राम ऑफिसर अविनाश कुमार ने बिहार में उद्योग की भूमिका पर जोर दिया। हालांकि सीमित, बिहार के उद्योग कुल उत्सर्जन का 14% हिस्सा हैं, जिसमें ईंट निर्माण क्षेत्र औद्योगिक उत्सर्जन का 80% योगदान देता है। बिहार में लगभग 6,500 ईंट भट्टे हैं, जिनमें से 85% क्लीनर ज़िगज़ैग तकनीक का उपयोग करते हैं, लेकिन खराब निर्माण और तकनीकी विशेषज्ञता की कमी के कारण, लाभ सीमित हैं। अविनाश ने भट्ठा मालिकों और श्रमिकों के लिए जमीनी स्तर पर प्रशिक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। इसके अतिरिक्त, 600 फ्लाई ऐश ईंट इकाइयाँ उत्सर्जन को कम करने में मदद करती हैं, जो संभावित रूप से बिहार की ईंट की मांग का 50% पूरा करती हैं और उत्सर्जन को आधा कर देती हैं।
'दाल और बाजरा की फसलों से उत्सर्जन कम होता है...'
डॉ. स्वर्णा चौधरी, असिस्टेंट प्रोफेसर, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर ने विशेषज्ञ के रूप में संबोधित करते हुए विभिन्न फसलों से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बारे में बात की और दावा किया कि दाल और बाजरा की फसलों से उत्सर्जन कम होता है और उनकी खेती को बढ़ावा देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि यह पाया गया है कि तापमान में वृद्धि से फसलें जल्दी पक जाती हैं और उपज में कमी आती है। उन्होंने उर्वरक प्रबंधन और छत पर बागवानी जैसी प्रथाओं पर भी जोर दिया। कार्यक्रम में उपस्थित विभिन्न विभागों के अधिकारीगण एवं अन्य हितधारकों ने भी अपने विचार साझा किये। बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद के क्षेत्रीय पदाधिकारी, भागलपुर, शम्भू नाथ झा ने पर्यावरण संरक्षण के लिए परिषद द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में चर्चा की, जिसमें राज्य में लगभग 7000 ईंट भट्टों को स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में परिवर्तित करना तथा कोयला आधारित उद्योगों को कंप्रेस्ड प्राकृतिक गैस और पाइप्ड प्राकृतिक गैस में क्रमिक रूप से परिवर्तित करना शामिल है।