Chhath: माता सीता ने बिहार के मुंगेर में किया था पहला छठ, यहां आज भी मौजूद हैं माता के चरण चिह्न

Edited By Ramanjot, Updated: 05 Nov, 2024 12:47 PM

mother sita performed the first chhath in munger bihar

वाल्मीकी रामायण के अनुसार, ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी मां सीता ने छह दिनों तक रह कर छठ पूजा की थी। श्री राम जब 14 वर्ष वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला...

पटना: धार्मिक मान्यता के अनुसार, माता सीता ने सर्वप्रथम पहला छठ पूजन बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर संपन्न किया था, जिसके बाद महापर्व की शुरुआत हुई। छठ को बिहार का महापर्व माना जाता है। यह पर्व बिहार के साथ देश के अन्य राज्यों में भी बड़े धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। बिहार के मुंगेर में छठ पर्व का विशेष महत्व है। छठ पर्व से जुड़ी कई अनुश्रुतियां हैं लेकिन धार्मिक मान्यता के अनुसार, माता सीता ने सर्वप्रथम पहला छठ पूजन बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर संपन्न किया था। इसके बाद से महापर्व की शुरुआत हुई। इसके प्रमाण-स्वरूप आज भी माता सीता के चरण चिह्न मौजूद हैं। 

माता सीता ने छह दिनों तक की थी सूर्यदेव भगवान की पूजा 
वाल्मीकी रामायण के अनुसार, ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी मां सीता ने छह दिनों तक रह कर छठ पूजा की थी। श्री राम जब 14 वर्ष वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया। इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता स्वयं यहां आए और उन्हें इसकी पूजा के बारे में बताया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता को गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। यहीं रह कर माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। 

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हर वर्ष गंगा की बाढ़ में डूबता है यह मंदिर 
ऐसी मान्यता है कि माता सीता ने जहां छठ पूजा संपन्न की थी, वहां आज भी उनके पदचिह्न मौजूद हैं। कालांतर में जाफर नगर दियारा क्षेत्र के लोगों ने वहां पर मंदिर का निर्माण करा दिया। यह सीताचरण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर हर वर्ष गंगा की बाढ़ में डूबता है। महीनों तक सीता के पदचिह्न वाला पत्थर गंगा के पानी में डूबा रहता है। इसके बावजूद उनके पदचिह्न धूमिल नहीं पड़े हैं। श्रद्धालुओं की इस मंदिर एवं माता सीता के पदचिह्न पर गहरी आस्था है। ग्रामीणों का कहना है कि दूसरे प्रदेशों से भी लोग पूरे साल यहां मत्था टेकने आते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंदिर के पुरोहित के अनुसार सीताचरण मंदिर आने वाला कोई भी श्रद्धालु खाली हाथ नहीं लौटता है। 

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