Darbhanga News: शिक्षा बोर्ड अध्यक्ष भोला यादव ने कहा- संस्कृत के संवर्धन के लिए प्रयास जरूरी

Edited By Swati Sharma, Updated: 29 Aug, 2023 10:48 AM

efforts necessary for the promotion of sanskrit

बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष भोला यादव ने कहा कि संस्कृत के संवर्धन के लिए प्रयास जरूरी है। यादव ने सोमवार को कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के दरबार हॉल में आयोजित संस्कृत सप्ताह समारोह को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘ मैंने भी...

दरभंगा: बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष भोला यादव ने कहा कि संस्कृत के संवर्धन के लिए प्रयास जरूरी है। यादव ने सोमवार को कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के दरबार हॉल में आयोजित संस्कृत सप्ताह समारोह को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘ मैंने भी माध्यमिक तक संस्कृत पढ़ा है। इसमें मेरी गहरी रुचि भी थी लेकिन विज्ञान पढ़ने के कारण मैं संस्कृत को लेकर आगे नहीं पढ़ सका। विभिन्न स्तर पर संस्कृत को संवर्धित करने का प्रयास बोर्ड द्वारा किया जा रहा है।

'संस्कृत को पढ़ने के तौर तरीके में बदलाव की जरूरत'
बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष ने कहा कि बोर्ड की व्यवस्था भी अपडेट कर दी गई है और इसका प्रभाव जल्द सभी को देखने को मिलेगा। उन्होंने कहा कि संस्कृत अध्यापकों को भी स्कूल कॉलेजों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। संस्कृत को पढ़ाने के तौर तरीके में भी बदलाव की जरूरत है। तभी बच्चे इस ओर ज्यादा झुकेंगे। साथ ही, संस्कृत विद्यालयों को सभी रूप से संपन्न बनाने की भी आवश्यकता है।  कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ0 शशिनाथ झा ने कहा कि संस्कृत की विश्व में सर्वाधिक प्रतिष्ठा है। इसमें ही सारे शास्त्र नीहित हैं। इसलिए इसके संवर्धन व संरक्षण के लिए रोज प्रयास होना चाहिए। कुलपति डॉ0 शशिनाथ झा ने कहा कि इस मामले में संस्कृत भारती का प्रयास प्रशंसनीय है।

संस्कृत कार्यपद्धति यानी सिस्टम की भाषा नहीं: प्रो.सिद्धार्थ शंकर सिंह
डॉ0 शशिनाथ झा ने कहा कि दैनिक, सप्ताहिक एवं पाक्षिक कार्यक्रमों के द्वारा समाज को जोड़ते हुए विद्यार्थियों को संस्कृत के प्रति प्रेरित करना चाहिए। प्रति कुलपति प्रो.सिद्धार्थ शंकर सिंह ने कहा कि संस्कृत कार्यपद्धति यानी सिस्टम की भाषा नहीं है, इसलिए भी विद्यार्थियों की संख्या इसमें घट रही है जो बेहद ही चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि संस्कृत की जड़ बहुत ही गहरी है। इसे अन्य भाषाओं के साथ भी जोड़कर और मजबूत किया जा सकता है।

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