Edited By Ramanjot, Updated: 02 May, 2025 07:10 PM

बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था ने बीते दो दशकों में एक लंबा सफर तय किया है। एक वक्त था, जब स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सीमित थी और मातृ-शिशु मृत्यु दर चिंताजनक स्तर पर थी लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है।
पटना: बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था ने बीते दो दशकों में एक लंबा सफर तय किया है। एक वक्त था, जब स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सीमित थी और मातृ-शिशु मृत्यु दर चिंताजनक स्तर पर थी लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है। सरकार की नीतियों, आशा कार्यकर्ताओं की अथक मेहनत और जन-जागरूकता अभियानों के कारण आज बिहार देश के अग्रणी राज्यों की कतार में खड़ा नजर आ रहा है।
आशा कार्यकर्ताओं की भूमिका में विस्तार
बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय ने हाल ही में घोषणा की है कि अगले तीन महीनों में राज्य में 27,375 नये आशा कार्यकर्ताओं और फैसिलिटेटरों की नियुक्ति की जाएगी। इनमें ग्रामीण क्षेत्रों में 21,009 आशा कार्यकर्ता, शहरी क्षेत्रों में 5,316 और 1,050 आशा फैसिलिटेटर शामिल हैं। इस अहम फैसले का उद्देश्य स्वास्थ्य सेवाओं को और अधिक जनसुलभ और प्रभावी बनाना है।
वर्तमान में राज्य में 91,281 आशा कार्यकर्ता, 4,361 आशा फैसिलिटेटर और 5,111 ममता कार्यकर्ता कार्यरत हैं। ये सभी मातृ और शिशु स्वास्थ्य, टीकाकरण, पोषण और अन्य प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के प्रसार में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
वर्ष 2005 के बाद आया यह बड़ा बदलाव
स्वास्थ्य सेवाओं की इस यात्रा को आंकड़ों के माध्यम से समझना ज्यादा प्रभावी होगा। वर्ष 2005-06 में हुए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-3) में बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति बेहद कमजोर थी।
• केवल 18.7 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं ने पहले त्रैमास में प्रसव पूर्व जांच (एएनसी) करवाई थी।
• संस्थागत प्रसव का प्रतिशत मात्र 19.9 प्रतिशत था।
• वर्ष 2019-20 में एनएफएचएस-5 और ताजा एचएमआईएस आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां करते हैं।
• अब 52.9 प्रतिशत महिलाएं पहली तिमाही में एएनसी सेवाएं ले रही हैं।
• एचएमआईएस के अनुसार 77 प्रतिशत महिलाएं प्रारंभिक एएनसी सेवाएं ले रही हैं।
• लगभग 85 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं चार बार प्रसव पूर्व एएनसी जांच करवा रही हैं।
• 97 प्रतिशत महिलाएं गर्भावस्था के समय पंजीकरण करवा रही हैं।
• वर्ष 2005-06 में देश में संस्थागत प्रसव का प्रतिशत मात्र 19.9 प्रतिशत था।
• वर्ष 2019-20 में आए एनएफएचएस-5 के अनुसार संस्थागत प्रसव का आंकड़ा 76.2 प्रतिशत तक पहुंच गया।
यह बदलाव केवल योजनाओं से नहीं बल्कि जमीन पर काम कर रहीं आशा कार्यकर्ताओं के साथ-साथ राज्य सरकार के समर्पण से संभव हुआ है। उन्होंने न सिर्फ दूरदराज के इलाकों तक स्वास्थ्य जानकारी पहुंचाई बल्कि महिलाओं को अस्पताल में सुरक्षित प्रसव, समय पर टीकाकरण और नवजात देखभाल के प्रति जागरूक भी किया।
सरकार की रणनीति और भविष्य की दिशा
बिहार सरकार अब इस सुधार को और गति देने के लिए आशा नेटवर्क को और मजबूत बना रही है। स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय ने यह स्पष्ट किया है कि नई नियुक्तियों की प्रक्रिया ग्राम सभाओं और नगर निकायों के माध्यम से की जाएगी ताकि चयन स्थानीय जरूरतों के मुताबिक हो। फिलहाल वर्ष 2005 से वर्ष 2025 तक की यह यात्रा बिहार को स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों तक ले जा रही है।