Edited By Ramanjot, Updated: 28 Apr, 2025 08:07 PM

पूर्णिया जिला, जिसकी ऐतिहासिक पहचान 250 वर्षों से बनी हुई है, अब अपनी दुर्लभ मछली प्रजातियों को खोने की कगार पर पहुंच चुका है।
पूर्णिया जिला, जिसकी ऐतिहासिक पहचान 250 वर्षों से बनी हुई है, अब अपनी दुर्लभ मछली प्रजातियों को खोने की कगार पर पहुंच चुका है। कभी यहां की गंगा, कोसी, महानंदा, पनार, मेची और सौरा नदियों में 200 से अधिक प्रकार की मछलियां पाई जाती थीं। इन नदियों की विविधता ने सीमांचल के कई गांवों को उनकी मछलियों के आधार पर पहचान भी दिलाई, जैसे- पोठिया, सिंघिया, कबैया, रहुआ, मांगुर जान और बुआरी।
लेकिन आज हालात बदल गए हैं। जागरूकता की कमी और अनियंत्रित शिकार के चलते स्थानीय मछलियों की कई प्रजातियां विलुप्ति की ओर बढ़ रही हैं। स्थिति यह है कि पूर्णिया सहित सीमांचल के बड़े हिस्से में अब आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल से मछलियों की आपूर्ति पर निर्भरता बढ़ गई है।
संरक्षण के लिए सरकार ने उठाए कदम
मछलियों की घटती संख्या को देखते हुए सरकार ने संरक्षण पहल तेज कर दी है। जिला मत्स्य पदाधिकारी डॉ. जय शंकर ओझा ने बताया कि बिहार सरकार ने जून, जुलाई और अगस्त महीनों में मछली पकड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया है। ये तीन महीने मछलियों के प्रजनन के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। रोकथाम से न सिर्फ मछली की उपलब्धता में संतुलन बना रहेगा, बल्कि संकटग्रस्त प्रजातियों को भी संरक्षित किया जा सकेगा।
मछुआरों को आर्थिक सहायता
सरकार ने मछुआरों को प्रोत्साहित करने के लिए तीन महीने मछली न पकड़ने की शर्त पर 4500 रुपये की आर्थिक सहायता देने का प्रावधान किया है। अधिकारियों का मानना है कि अगर स्थानीय मछुआरे और आमजन इस पहल में सहयोग नहीं करेंगे, तो आने वाले समय में क्षेत्र से कई प्राचीन प्रजातियां हमेशा के लिए खत्म हो सकती हैं।
सरकार और प्रशासन का प्रयास है कि जागरूकता फैलाकर मछलियों के इस समृद्ध पारंपरिक संसार को बचाया जाए और सीमांचल के ऐतिहासिक गांवों की पहचान बरकरार रहे।