भारतीय न्याय संहिता की नई किताब में मुद्रण त्रुटि, झारखंड उच्च न्यायालय ने प्रकाशन कंपनी को जारी किया नोटिस

Edited By Ramanjot, Updated: 02 Jul, 2024 04:22 PM

jharkhand high court issued notice to the publishing company

झारखंड उच्च न्यायालय ने भारतीय न्याय संहिता में त्रुटि करने के लिए एक प्रकाशन कंपनी को नोटिस जारी किया है। इस त्रुटि से कानून की व्याख्या में बदलाव हो गया। न्यायाधीश आनंद सेन और न्यायाधीश सुभाष चंद की खंडपीठ ने मेसर्स यूनिवर्सल लेक्सिजनेक्सिस द्वारा...

रांची:झारखंड उच्च न्यायालय ने भारतीय न्याय संहिता में त्रुटि करने के लिए एक प्रकाशन कंपनी को नोटिस जारी किया है। इस त्रुटि से कानून की व्याख्या में बदलाव हो गया। न्यायाधीश आनंद सेन और न्यायाधीश सुभाष चंद की खंडपीठ ने मेसर्स यूनिवर्सल लेक्सिजनेक्सिस द्वारा प्रकाशित भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 103 (2) में मुद्रण की गलती को ध्यान में रखते हुए मामले में स्वत: संज्ञान लिया था।

बीएनएस की धारा 103 (2) की गलत व्याख्या
बीएनएस की धारा 103 (2) हत्या के लिए सजा से संबंधित है। राजपत्र अधिसूचना के अनुसार: "जब पांच या अधिक व्यक्तियों का समूह एक साथ मिलकर नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास, या किसी अन्य समान आधार पर हत्या करता है, तो ऐसे प्रत्येक सदस्य समूह को मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा होगी और जुर्माना भी देना होगा।" लेकिन यूनिवर्सल लेक्सिजनेक्सिस द्वारा प्रकाशित बेयर एक्ट्स में "समान" शब्द गायब है, जो कि कानून की व्याख्या में एक बड़ी त्रुटि है।


कोर्ट ने प्रतियों को ना बेचने का आदेश दिया
अदालत ने प्रकाशन कंपनी को निर्देश दिया कि वह प्रकाशित की गई प्रतियों के लिए तुरंत सुधारात्मक कदम उठाए और उन्हें ग्राहकों को ना बेचें। एक छोटी सी टाइपोग्राफिक त्रुटि या चूक से काफी गलत मतलब निकल सकते हैं। ऐसी गलतियों के कारण वकीलों और अदालतों सहित सभी पक्षों के साथ अन्याय होगा।"

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