Edited By Diksha kanojia, Updated: 15 Oct, 2022 06:42 PM

झारखंड में ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन्होंने घरेलू प्रदूषण के प्रति महिलाओं को जागरूक करने की दिशा में सराहनीय कदम उठाये हैं। राज्य की राजधानी से करीब 80 किलोमीटर दूर हेंडलासो गांव की रहने वाली कुजरा को एस्बेस्टस की छत वाले रसोईघर में बने चूल्हे से...
रांचीः झारखंड के लोहरदगा जिले की 48-वर्षीय सुमन वर्मा कुजरा ने अपने सात-सदस्यीय परिवार के लिए भोजन पकाने के लिए वर्षों तक ठोस ईंधन, ज्यादातर लकड़ी, का इस्तेमाल किया, लेकिन उन्हें जब घरेलू वायु प्रदूषण की स्थिति का भान हुआ तो उन्होंने इसके खिलाफ जंग छेड़ दी।
झारखंड में ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन्होंने घरेलू प्रदूषण के प्रति महिलाओं को जागरूक करने की दिशा में सराहनीय कदम उठाये हैं। राज्य की राजधानी से करीब 80 किलोमीटर दूर हेंडलासो गांव की रहने वाली कुजरा को एस्बेस्टस की छत वाले रसोईघर में बने चूल्हे से निकलने वाले धुएं के कारण आंखों में सूजन और सांस लेने में तकलीफ जैसी स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। लेकिन, उन्होंने सोचा कि यह सामान्य है और हर रसोईघर में ऐसा ही होता है। तब तक, वह घरेलू वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव के बारे में अनभिज्ञ थी। कुजरा ने कहा, ‘‘मैंने कभी नहीं सुना कि चूल्हे से निकलने वाला धुआं स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है और इससे कई बीमारियां हो सकती हैं।'' कुजरा ने कहा, ‘‘हालांकि, झारखंड स्थित एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा दो दिसंबर, 2020 को आयोजित वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन पर एक कार्यक्रम में भाग लेने के बाद गृहिणी की धारणा बदल गई, जहां उन्हें पहली बार घरेलू वायु प्रदूषण के बारे में पता चला।
उन्होंने कहा, “बाद में, हमें घर के अंदर की वायु गुणवत्ता मापने और प्रदूषण के प्रभाव को कुछ हद तक कम करने के तरीकों के बारे में प्रशिक्षित किया गया। हमें एक वायु गुणवत्ता निगरानी उपकरण भी दिया गया था।'' जब उन्होंने चूल्हे को जलाने के बाद पहली बार इस तरह के उपकरण से अपनी रसोई की हवा की गुणवत्ता मापी, तो प्रदूषक कण पीएम 2.5 की संख्या लगभग 900 यूजी/एम3 थी, जबकि सामान्य सीमा 40यूजी/एम3 होती है। उन्होंने कहा, “मुझे बताया गया था कि यह स्तर स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक है। प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के लिए, मैंने तुरंत रसोई में उचित वेंटिलेशन के लिए एक खिड़की का निर्माण किया और चूल्हे में प्लास्टिक, कागज जलाना बंद कर दिया। वर्तमान में, मैं खाना पकाने के लिए एलपीजी संचालित चूल्हों का इस्तेमाल करती हूं।''
कुजरा राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) परियोजनाओं के कार्यान्वयन संबंधी नोडल एजेंसी झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) के तहत एक स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) चलाती हैं। उन्होंने कहा, ‘‘चूंकि मैं एसएचजी से जुड़ी हूं, इसलिए मैंने एनजीओ के सहयोग से गांवों में महिलाओं के बीच घरेलू वायु प्रदूषण के बारे में जागरूकता पैदा करने का फैसला किया। अब तक मैं करीब 400 महिलाओं से संपर्क कर चुकी हूं और वे भी प्रदूषण के खिलाफ अभियान में शामिल हुई हैं।'' ऐसा ही नजरिया हरिहरपुर गांव निवासी रीना उरांव ने जाहिर किया। उरांव ने कहा, ‘‘मुझे पहले घरेलू प्रदूषण की जानकारी नहीं थी। अब, मैंने लिविंग रूम के बाहर एक किचन बनाने का फैसला किया, ताकि धुआं आसानी से निकल जाए। मैं अपने गांव में वायु प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में लोगों को जागरूक करने के मिशन में भी शामिल हुई हूं।''